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लेफ्ट और राइट में बंटा अमेरिका का सोशल मीडिया
सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्म्स में जो अलग-अलग विचारधाराएं हैं वो अमेरिकी समाज की मनःस्थिति को दर्शाती हैं। लोग दो विचारों में बंटे हुये हैं।
नीलमणि लाल
लखनऊ: जब डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका के प्रेसिडेंट चुने गए उसके बाद से फेसबुक पर एक पैटर्न सामने आने लगा जो इस कंपनी के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ था। वो यह कि दसियों लाख युवा फेसबुक को छोड़ने लगे। वो या तो पूरी तरह फेसबुक को अपने फोन और अन्य डिवाइसेज से डिलीट कर रहे थे या अपना फेसबुक अकाउंट ही बंद कर रहे थे। उस समय एक थ्योरी चल रही थी कि फेसबुक उम्रदराज लोगों और बोरिंग पोस्ट्स वाली जगह है।
जबकि इंस्टाग्राम, ट्विटर और स्नैपचैट जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म कहीं ज्यादा जवान और मजेदार हैं। हाल के हफ्तों में लगा है कि फेसबुक से युवाओं का पलयान किसी और कारण से था। कारण ये है कि सोशल मीडिया दक्षिणपंथी और वामपंथी विचारधारा में बंटा हुआ है। फेसबुक को अब दक्षिणपंथी अमेरिका का चेहरा या गढ़ माना जा रहा है जबकि ट्विटर और स्नैपचैट लेफ्ट विचारधारा के घर हो गए हैं।
फेसबुक और ट्वीटर के मालिक भिड़े
सोशल मीडिया में खेमेबंदी पिछले ही हफ्ते और भी साफ हो गई जब ट्विटर के मालिक जैक डोरसे ने अपने प्लेटफार्म पर डोनाल्ड ट्रम्प की पोस्ट्स को हिंसा को बढ़ावा देने वाले के तौर पर लेबल करना शुरू कर दिया। इसके अलावा ट्रम्प की अन्य पोस्ट्स को फ़ैक्ट चेक के साथ टैग किया जाने लागा कि लोग ट्रम्प की पोस्ट पर यकीन न करें, पहले उसके तथ्य चेक कर लें। जहां ट्विटर ये काम कर रहा था वहीं फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्ग ने एकदम विपरीत दिशा का रास्ता पकड़ लिया। जुकरबर्ग ने पोस्ट लिखा कि उनका काम अभिव्यक्ति की आज़ादी को जज करना नहीं है।
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यही नहीं, जुकरबर्ग ने डोनाल्ड ट्रम्प से बात की और फेसबुक के रवैये के बारे में उनको बताया। जुकरबर्ग का कहना है कि फेसबुक की नीति अभिव्यक्ति की आज़ादी की रही है और ट्रम्प के कथित भड़काऊ पोस्ट के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया जाएगा। जुकरबर्ग ने ये बात उस संदर्भ में कही जब फेसबुक के कई कर्मचारी ट्रम्प की पोस्ट्स के खिलाफ एक्शन लेने की मांग कर रहे थे। इस विवाद के बीच स्नैपचैट के सीईओ इवान स्पेगल ने अपने कर्मचारियों को भेजे एक संदेश में कहा कि वो स्नैपचैट प्लेटफार्म पर ट्रम्प की किसी पोस्ट को प्रोमोट नहीं करेंगे क्योंकि जो लोग हिंसा को बढ़ावा देते हैं उनको हम अपने प्लेटफार्म पर जगह नहीं दे सकते।
बंट गया इंटरनेट
अब फेसबुक को रूढ़िवादी दक्षिणपंथ का घर माना जा रहा है। यहाँ न्यूयॉर्क टाइम्स, फॉक्स न्यूज़, फॉर अमेरिका, जैसे मीडिया संस्थानों से लेकर मशहूर दक्षिणपंथी थ्योरिस्ट दिनेश डीसूजा के पोस्ट प्रमुखता से छाए रहते हैं। जबकि ट्रम्प की खिल्ली, पुलिस की बर्बरता के वीडियो, रिपब्लिकन सीनेटरों की कड़ी निंदा आदि की पोस्ट ट्विटर में खूब जगह पाती हैं और वाइरल होती हैं। ट्विटर पर किसी भी दिन के ट्रेंडिंग टॉपिक वामपंथी विचार वाले होते हैं। वहीं फेसबुक पर दूसरा रुख रहता है। मिसाल के तौर पर 4 जून को फेसबुक पर रूढ़िवादी टिप्पणीकार और पोलिटिकल एक्टिविस्ट कैनडेस ओवेंस ने जॉर्ज फ्लोएड पर तीखा बयान दिया। और पुलिस की बर्बरता को मात्र एक भ्रम करार दिया। जॉर्ज फ्लोएड की हत्या से ही अमेरिका में हिंसा भड़की है।
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ओवेंस की पोस्ट खूब वाइरल हुई और इसे अमेरिका में एक दिन में ढाई करोड़ बार देखा गया। सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्म्स में जो अलग-अलग विचारधाराएं हैं वो अमेरिकी समाज की मनःस्थिति को दर्शाती हैं। लोग दो विचारों में बंटे हुये हैं। और यही बंटवारा सोशल मीडिया कंपनियों के कर्मचारियों में भी है। जुकरबर्ग की नीति से नाराज कर्मचारी फेसबुक छोड़ रहे हैं तो ट्विटर के कर्मचारी भी अपने सीईओ से नाराज हैं। जानकारों और विश्लेषकों का कहना है कि ऐसा हमेशा से होता है। सोशल मीडिया न तो पूरी तरह नेगेटिव है और न ही पूरी ततरह पॉज़िटिव है। सब अपनी अपनी विचारधारा को प्रोमोट करते हैं।