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फिर सवालों के घेरे में चीन, कोरोना वायरस के शुरुआती सैंपल नष्ट करने की बात मानी
चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ आयोग के मेडिकल अफसर लियू डेनफेंग ने कहा कि देश के कानून के अनुसार कई लैब संक्रामक रोगों के सैंपल को संभालने के लिए तैयार नहीं हैं।
अंशुमान तिवारी
बीजिंग। आखिरकार चीन ने कोरोना वायरस के शुरुआती मरीजों के सैंपल नष्ट करने की बात मान ली है। चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग का कहना है कि बायोसेफ्टी कारणों से यह कदम उठाना जरूरी था। चीन पर दुनिया भर में कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलाने का गंभीर आरोप है और चीन के स्वास्थ आयोग की स्वीकारोक्ति से अमेरिकी आरोपों को और मजबूती मिली है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग के अफसर के ताज़ा बयान के बाद कोरोना के संक्रमण को लेकर चीन फिर सवालों के घेरे में है।
स्वास्थ्य आयोग के अफसर की स्वीकारोक्ति
चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ आयोग के मेडिकल अफसर लियू डेनफेंग ने कहा कि देश के कानून के अनुसार कई लैब संक्रामक रोगों के सैंपल को संभालने के लिए तैयार नहीं हैं। उन्होंने कहा कि संक्रामक रोगों से जुड़े नमूनों के स्टोरेज, अध्ययन और उन्हें नष्ट करने के संबंध में देश में काफी सख्त मानक बनाए गए हैं। ऐसे में या तो सैंपल पेशेवर संस्थानों को सुपुर्द कर दिया जाता है या उन्हें नष्ट कर दिया जाता है।
अमेरिकी आरोपों को किया खारिज
लियू का कहना है कि सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए एहतियात के तौर पर सैंपल को नष्ट किया गया था। उन्होंने कहा कि चीन पर सवाल उठाने के संबंध में अमेरिका का बयान पूरी तरह गुमराह करने वाला है। उन्होंने कहा कि अगर किसी लैब में वायरस को स्टोर करने के लिए जरूरी सुविधाएं नहीं हैं तो उन्हें वही नष्ट कर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि चीनी में ऐसे नियमों का सख्ती से पालन किया जाता है।
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दूसरी श्रेणी का निमोनिया माना
जानकारों का कहना है कि चीन के वुहान शहर में कोरोना के शुरुआती मामलों को दूसरी श्रेणी का निमोनिया मानकर इलाज का प्रबंध करने का फैसला लिया गया था। फरवरी में सरकार ने सैंपल लेने वाली लैब्स को आदेश दिया था कि वे बिना अनुमति के सैंपल किसी भी शोध संस्थान या उन्नत लैब को ना सौंपे। उसके बाद ये अनधिकृत लैब्स सैंपल लेकर उन्हें अपने स्तर पर नष्ट कर देती थीं। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार के इस कदम से ही इस वायरस का संक्रमण बहुत तेजी से फैला।
डब्ल्यूएचओ को देर से दी जानकारी
चीन पर इस वायरस की सूचना देरी से विश्व स्वास्थ्य संगठन को देने के आरोप भी लगते रहे हैं। इस बीच चीन के एक मीडिया आउटलेट ने दावा किया है कि दिसंबर के अंत में किए गए टेस्ट्स में सार्स जैसे घातक वायरस की आशंका सामने आई थी। इसके बाद ही नमूनों को नष्ट किया गया था। इस रिपोर्ट में यह बात भी कही गई है कि तब तक चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को इस बारे में कोई सूचना नहीं थी। करीब दो हफ्ते बाद इस वायरस का जीनोम शेयर किया गया था।
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अमेरिका का हमलावर रुख
अमेरिका चीन पर कई दिनों से यह आरोप लगाता रहा है कि उसने कोरोना वायरस के संबंध में पूरी दुनिया को अंधेरे में रखा और पारदर्शी नीति नहीं अपनाई। उसने कभी यह खुलासा नहीं किया कि यह वायरस कैसे फैला। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने चीन पर यह आरोप भी लगाया है कि चीन ने महामारी के संबंध में अंतरराष्ट्रीय पारदर्शिता को ताक पर रखा।
वहीं अमेरिका का यह भी आरोप है कि चीन ने वायरस के सैंपल नष्ट कर दिए और इस कारण वायरस की उत्पत्ति के बारे में पता लगाना काफी मुश्किल हो गया है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी इस वायरस को लेकर चीन पर हमेशा हमलावर रहे हैं। उन्होंने इसे चीनी वायरस तक की संज्ञा दी। उनका कहना है कि जांच के बाद ही यह पता चल सकेगा कि चीन ने इस बारे में दुनिया को किस हद तक अंधेरे में रखा।
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