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फूट फूट कर रोया अमेरिका, भारत की वाह, आखिर क्या है राज

परिणाम सबके सामने है। भारत ने जितनी तेजी से इस कोरेनटाइन यानी लक्ष्मण रेखा को अपनाया और अपने देशवासियों के लिए लागू किया। आज विश्व में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाह- वाह हो रही है। दुनिया के तमाम देश मोदी की तरफ उम्मीद की निगाह से देखने लगे है।

राम केवी
Published on: 25 April 2020 2:56 PM IST
फूट फूट कर रोया अमेरिका, भारत की वाह, आखिर क्या है राज
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आज हम आपको उस गोपनीय योजना के बारे में बताने जा रहे हैं जिस पर चौदह साल पहले काम करके भी अमेरिका अपने गलत फैसले से फिसड्डी बन गया और उसे भारी जनहानि का सामना करना पड़ा गया। वहीं भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तात्कालिक सूझबूझ से बड़े खतरे की आहट को समझते हुए भारत में न केवल कोरोना के प्रसार की गति को थाम लिया, बल्कि अपने सीमित संसाधनों को देखते हुए होने वाली बड़ी जनहानि को भी रोक लिया।

द न्यू यार्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार 14 साल पहले अमेरिका की संघीय सरकार के 2 डॉक्टर रिचर्ड हैशे और कार्टर मेकर वाशिंगटन के एक बर्गर शॉप में अपने एक सहयोगी के साथ मिलते हैं। यह मुलाकात उस प्रस्ताव की अंतिम समीक्षा से संबंधित थी जिसमें यह तय किया जाना था अगली बार अमेरिका पर अगर किसी विनाशकारी महामारी का हमला होता है तो लोग घर से काम करेंगे।

सबको लगा सबसे बड़ा मजाक

डॉक्टरों ने जब यह प्रस्ताव वरिष्ठ अधिकारियों के सामने रखा तो उन्हें ये बड़ी हास्यास्पद बात लगी। उन्हें लगा कि इतनी ताकतवर महाशक्ति कैसे इतनी अशक्त हो जाएगी कि उसे अपने लोगों को घरों में बैठने को कहना पड़े। दूसरे उन्हें अपने दवा उद्योग की मजबूती को लेकर भी गुमान था। उन्हें लग रहा था कि किसी भी वायरस हमले की चुनौती का हम इलाज करने, नई दवा ईजाद करने में हम सक्षम है।

रिचर्ड हैसे और कार्टर मेकर महामारी के समय अमेरिकियों को ठीक उसी तरह क्वॉरेंटाइन किए जाने पर जोर दे रहे जैसे मध्यकाल में अपनाया गया था। उस समय संक्रामक बीमारियों का मुकाबला करने के लिए लोगों को अलग-थलग कर दिया गया था।

बुश की पहल, ट्रंप ने नकार दी सारी मेहनत

संक्रामक बीमारी से मुकाबला करने के लिए तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्लू बुश की पहल ही कोरोना बीमारी से लड़ने का किस तरह सशक्त हथियार बनी यह कोरोना वायरस के दौर की तमाम अनकही कहानियों में से एक है।

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सोशल डिस्टेंसिंग की धारणा से आज सभी लोग परिचित हैं। 2006 और 2007 में जब इसकी जरूरत बताई गई थी तब किसी की समझ में नहीं आया लोगों ने इसे गैरजरूरी, असंभव तक करार दिया लेकिन बुश प्रशासन ने इस सोच पर काम किया और ओबामा प्रशासन ने इस सोच का दस्तावेजीकरण किया लेकिन मौजूदा ट्रंप प्रशासन इसका फायदा नहीं उठा सका। उसने कोरोना के खतरे को कम करके आंका, चेतावनी को अनसुना कर दिया।

लक्ष्मण रेखा मान, न मान

नतीजा यह हुआ कि अमेरिका में संक्रमण बेतहाशा गति से बढ़ा और मौतों के ढेर लग गए। ट्रंप ने बहुत देर में राज्यों में लॉक डाउन को बढ़ावा दिया। अमेरिकन ने जहां अपने देश में जन्मी इस सोच के प्रति लापरवाही बरती, वहीं भारत में इसे मंत्र के रूप में लिया और कोरोना की आहट और खतरे को पहचानते हुए क्वॉरेंटाइन को अपनाया पूरे देश में प्रचारित किया और इस पर अमल किया।

परिणाम सबके सामने है। भारत ने जितनी तेजी से इस कोरेनटाइन यानी लक्ष्मण रेखा को अपनाया और अपने देशवासियों के लिए लागू किया। आज विश्व में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाह- वाह हो रही है। दुनिया के तमाम देश मोदी की तरफ उम्मीद की निगाह से देखने लगे है। और डोनाल्ड ट्रंप भी अंततः क्वारंटाइन पर ही लौटे हैं।



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राम केवी

राम केवी

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