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धरती में खतरनाक बदलाव: आखिर ये परेशानी क्या है, जिससे वैज्ञानिक भी परेशान

बीते कई दिनों से धरती में हैरान कर देने वाली हलचलों ने सभी डरा के रख दिया है। धरती में कुछ ऐसे परिवर्तन हो रहे हैं जोकि बेहद खतरनाक हैं। जमीन के एक बड़े हिस्से में धरती का मैग्नेटिक शक्ति धीरे-धीरे कमजोर हो गई है।

Vidushi Mishra
Published on: 21 May 2020 2:11 PM GMT
धरती में खतरनाक बदलाव: आखिर ये परेशानी क्या है, जिससे वैज्ञानिक भी परेशान
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नई दिल्ली। बीते कई दिनों से धरती में हैरान कर देने वाली हलचलों ने सभी डरा के रख दिया है। धरती में कुछ ऐसे परिवर्तन हो रहे हैं जोकि बेहद खतरनाक हैं। जमीन के एक बड़े हिस्से में धरती का मैग्नेटिक शक्ति धीरे-धीरे कमजोर हो गई है। ये शक्ति अब इतनी ज्यादा कमजोर हो गई है कि इन क्षेत्रों में धरती के ऊपर तैनात सैटेलाइट्स और उड़ने वाले विमानों के साथ संचार करना मुश्किल हो सकता है। तो इस बात ने हैरानी में डाल दिया न आपको। चलिए देखते हैं कि आखिर ये परेशानी क्या है और ये आई कैसे?

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चुंबकीय क्षेत्र की शक्ति में कमी

दुनिया इस समय कोरोना के भीषण संकट से घिरी हुई है। धरती के एक बहुत बड़े हिस्से में चुंबकीय शक्ति कमजोर हो गई है। धरती का ये हिस्सा लगभग 10 हजार किलोमीटर में फैला हुआ है। इस इलाके के 3000 किलोमीटर नीचे धरती के आउटर कोर तक चुंबकीय क्षेत्र की शक्ति में कमी आई है।

ऐसे में अफ्रीका से लेकर दक्षिण अमेरिका तक लगभग 10 हजार किलोमीटर की दूरी में धरती के अंदर मैग्नेटिक क्षेत्र की शक्ति कम हो चुकी है। आमतौर पर इसे 32 हजार नैनोटेस्ला होना चाहिए थी, लेकिन 1970 से 2020 तक यह कम होकर 24 हजार से 22 हजार नैनोटेस्ला तक जा पहुंची है।

धरती के बारे में ये जानकारी यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ईएसए) के सैटेलाइट स्वार्म से मिली है। धरती के इस हिस्से पर चुंबकीय क्षेत्र में आई कमजोरी से धरती के ऊपर तैनात सैटेलाइट्स और उड़ने वाले विमानों के साथ संचार करना मुश्किल हो सकता है।

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साउथ अटलांटिक एनोमली

इसी सिलसिले में वैज्ञानिकों ने बताया कि बीते 200 सालों में धरती की चुंबकीय शक्ति में 9 प्रतिशत की कमी आई है। लेकिन अफ्रीका से दक्षिण अमेरिका तक चुंबकीय शक्ति में काफी कमी देखी जा रही है। वैज्ञानिक इसे साउथ अटलांटिक एनोमली कहते हैं।

ऐसे में आप सोच रहे होंगे कि धरती की चुंबकीय शक्ति से हमें क्या लेना-देना। लेकिन नहीं आपको बता दें कि धरती की चुंबकीय शक्ति से ही हम अंतरिक्ष से आने वाली रेडिएशन से बचे रहते हैं। इसी चुंबकीय शक्ति के बल पर सभी प्रकार की संचार प्रणालियां जैसे सैटेलाइट, मोबाइल, चैनल आदि काम कर रही हैं।

इलेक्ट्रोमैंग्नेटिक फील्ड

अब बात है कि धरती का मैग्नेटिक क्षेत्र कैसे पैदा होता है। तो सुनिए धरती के अंदर गर्म लोहे का बहता हुआ समंदर है। यह धरती की सतह से लगभग 3000 किलोमीटर नीचे होता है। यह घूमता रहता है। इसके घूमने से धरती के अंदर से इलेक्ट्रिकल करंट बनता है जो ऊपर आते-आते इलेक्ट्रोमैंग्नेटिक फील्ड में बदल जाता है।

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अभी हाल ही में हुई कुछ स्ट़डीज से पता चला कि धरती का मैग्नेटिक नॉर्थ पोल अपनी जगह बदल रहा है। यह पोल कनाडा से साइबेरिया की तरफ जा रहा है। यह इसी गर्म पिघले हुए लोहे के घूमने से हो रहा है।

चुंबकीय सुरक्षा लेयर कमजोर

लेकिन अफ्रीका से दक्षिण अमेरिका तक के इलाके में जो मैग्नेटिक फील्ड की कमी आई है। उससे उस इलाके के ऊपर हमारी चुंबकीय सुरक्षा लेयर कमजोर हो गई है। मतलब की इस इलाके में अंतरिक्ष से आने वाली रेडिएशन का असर ज्यादा हो सकता है।

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इस कड़ी में जर्मन रिसर्च सेंटर शोधकर्ता जर्गेन मात्ज्का ने बताया कि यूरोपियन स्पेस एजेंसी का स्वार्म सैटेलाइट इसीलिए बनाया गया था कि वह धरती की चुंबकीय शक्ति का सही आकलन कर सके। बीते कुछ दशकों में अफ्रीका से दक्षिण अमेरिका तक के इलाके में चुंबकीय शक्ति तेजी से कम हो रही है।

आगे शोधकर्ता जर्गेन ने बताया कि अब सबसे बड़ा मुद्दा ये है कि हमें यह पता करना होगा कि धरती के केंद्र में हो रहे बदलावों से कितना बड़ा बदलाव आएगा। क्या इससे धरती पर कोई बड़ी आपदा आएगी। आमतौर पर धरती की चुंबकीय शक्ति 2.50 लाख साल में बदलती है। हालांकि अभी इसमें बहुत साल बचे है।

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