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बढ़ता जा रहा कॉन्सपिरेसी थ्योरी में विश्वास

हाल के दिनों में लंदन में कई प्रदर्शन भी देखे गए, जहां कुछ लोग अपनी आजादी वापस मांग रहे थे तो कुछ ऐसे भी थे जो 'स्टॉप चाइल्ड ट्रैफिकिंग' के नारे लगा रहे थे।

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Published on: 19 Oct 2020 4:20 PM IST
बढ़ता जा रहा कॉन्सपिरेसी थ्योरी में विश्वास
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बढ़ता जा रहा कॉन्सपिरेसी थ्योरी में विश्वास (Photo by social media)

नई दिल्ली: अमेरिका से निकली साजिश की अलग अलग अफवाहें अब इंटरनेट के कारण दुनिया भर में पहुंच गई हैं। कुछ लोगों का मानना है कि हिलेरी क्लिंटन जैसे प्रभावशाली लोग बच्चों का शोषण कर उनके खून से 'यूथ सीरम' बनाते हैं। ये भी थ्योरी चलाई जा रही है कि दुनिया पर शैतान के उपासकों का राज है और यही लोग 'डीप स्टेट' हैं। कोरोना को एक अफवाह या बिजनेस का तरीका मानने की भी थ्योरी है। यानी हर चीज में कुछ षड़यंत्र मानने वालों का दायरा बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है।

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हाल के दिनों में लंदन में कई प्रदर्शन भी देखे गए, जहां कुछ लोग अपनी आजादी वापस मांग रहे थे तो कुछ ऐसे भी थे जो 'स्टॉप चाइल्ड ट्रैफिकिंग' के नारे लगा रहे थे। दरअसल ये वे लोग हैं जो खुद को क्यूएनॉन नाम के आंदोलन का हिस्सा मानते हैं और सरकार के खिलाफ किसी भी वजह से हो रहे प्रदर्शनों में जुड़ जाते हैं। वहां ये लोगों को अपने आंदोलन के बारे में बताते हैं और उनसे साथ जुड़ने का आग्रह करते हैं। ये लोग एक बहुत ही बड़ी कॉन्सपिरेसी थ्योरी में विश्वास रखते हैं जिसके अनुसार दुनिया भर के कुछ रईस लोग बच्चों की तस्करी करवा रहे हैं।

अमेरिका में शुरुआत

क्यूएनॉन मूवमेंट की शुरुआत अमेरिका में इंटरनेट पर हुई। क्यूएनॉन 2017 में सामने आया जब ‘क्यू’ या ‘क्यू क्लेअरेंस पेट्रियट’ नाम के एक अज्ञात यूज़र ने सोशल मीडिया पर कांस्पीरेसी थ्योरी पोस्ट करनी शुरू कर दीं। अमेरिकी एनर्जी डिपार्टमेंट द्वारा जब किसी टॉप सीक्रेट जानकारी को सिक्यूरिटी क्लेअरेंस दी जाती है तो उसे ‘क्यू’ नाम से रिफर किया जाता है। यानी ये कह सकते हैं कि किसी गोपनीय जानकारी का खुलासा करने को ‘क्यू’ कोड नाम दिया जाता है।

बहरहाल, सोशल मीडिया पर कांस्पीरेसी थ्योरी पोस्ट करने वाले ‘क्यू’ नमक शख्स ने दावा किया कि वो एक हाई लेवल ख़ुफ़िया अधिकारी है जिसकी ट्रम्प प्रशासन में गहरी पैठ है। इस व्यक्ति ने लिखा कि वॉशिंगटन के एक पिज्जा रेस्तरां में बच्चों का शोषण किया जा रहा था और इस मामले के तार हिलेरी क्लिंटन से जुड़ते थे। हालांकि यह अफवाह 2016 के चुनाव अभियान के दौरान से ही चल रही थी लेकिन इस व्यक्ति के पोस्ट करने के बाद यह वायरल हो गई क्योंकि इस व्यक्ति ने लिखा कि वह खुफिया एजेंसी से नाता रखता है और उसके पास गोपनीय सूचना है जिसके अनुसार हिलेरी क्लिंटन की इस मामले में गिरफ्तारी तय है। हालांकि ऐसा कभी हुआ नहीं लेकिन यह व्यक्ति अमेरिका में बेहद लोकप्रिय हो गया।

इसके बाद से ‘क्यू’ की और भी कई कॉन्सपिरेसी थ्योरी आई और लोगों ने उन पर विश्वास भी किया। जानकारों का कहना है कि इसे बकवास कह कर खारिज जरूर किया जा सकता है लेकिन इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि इसके समर्थक लगातार बढ़ते जा रहे हैं।

ख़ुफ़िया सरकार

कई वेबसाइटों पर ऐसी बातें फैलीं कि बच्चों का शोषण करने वाले कुछ रईस लोगों का नेटवर्क चुपचाप बच्चों का अपहरण करवाता है, उनका शोषण करता है और फिर उनके खून का इस्तेमाल कर एक ‘यूथ सीरम’ बनाता है। इस थ्योरी के अनुसार हिलेरी क्लिंटन जैसे दुनिया के कुछ प्रभावशाली लोग बच्चों के खून से बनी इस दवा का इस्तेमाल करते हैं और दुनिया पर राज करने की कोशिश करते हैं। क्यूएनॉन समर्थकों का दावा है कि ये रईस लोग एक तरह की खुफिया सरकार चलाते हैं।

इसे ये ‘डीप स्टेट’ का नाम देते हैं। इनके अनुसार ये लोग दुनिया भर की और विशेष रूप से अमेरिका की राजनीति को अपने इशारों पर चलाते हैं और ये लोग शैतान की उपासना करते हैं। क्यूएनॉन के समर्थक प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रम्प को मसीहा के रूप में देखते हैं जो इस गंदी राजनीति का सफाया करने में लगे हैं। इनका मानना है कि ट्रम्प गोपनीय रूप से एक योजना पर काम कर रहे हैं जिसके तहत डीप स्टेट के सदस्यों का सफाया कर दिया जाएगा। डीप स्टेट के सदस्यों में हिलरी क्लिंटन के अलावा बराक ओबामा, हॉलीवुड स्टार टॉम हैंक्स और ओपरा विनफ्रे भी शामिल हैं।

तरह तरह की अफवाहें

मिसाल के तौर पर हाल के दिनों में ये उन प्रदर्शनकारियों के साथ जुड़ गए हैं जिनका मानना है कि कोरोना से निपटने के सरकारों के प्रयास धोखा हैं। ये लोग मानते हैं कि टीकाकरण के जरिए दुनिया भर की सरकारें जनसंख्या को नियंत्रित करना चाह रही हैं। टीकाकरण विरोधी और अतिदक्षिणपंथी इस थ्योरी का समर्थन करते हैं। आंकड़े दिखाते हैं कि कोरोना महामारी ने क्यू एनॉन मूवमेंट को और हवा दे दी।

इस साल मार्च से जून के बीच ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर इन लोगों ने खूब प्रचार किया। यही वजह है कि अब अमेरिका के बाहर भी इसे काफी समर्थक मिल गए हैं। अमेरिका के बाद दूसरा नंबर है ब्रिटेन का है, इसके बाद कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और फिर जर्मनी। जर्मनी में इस आंदोलन की बढ़ती लोकप्रियता हैरान करती है क्योंकि इंटरनेट में इससे जुड़ी सभी सामग्री अंग्रेजी में है। जर्मनी के जानेमाने गायक जेवियर नायडू और स्टार शेफ अटिला हिल्डमन कोरोना लॉकडाउन के दौरान खुल कर क्यू एनॉन आंदोलन के समर्थन में आए।

ये लोग ना केवल ब्रेक्जिट से जुड़े प्रदर्शनों में, लॉकडाउन के खिलाफ प्रदर्शनों में और बच्चों की तस्करी के खिलाफ प्रदर्शनों में नजर आते हैं, बल्कि 2019 में ये इतने उग्र हो गए थे कि एफबीआई ने इन्हें संभावित आतंकवादी करार दिया था।

इसी तरह फरवरी 2020 में जर्मनी के हनाउ शहर में जिस व्यक्ति ने गोलियां चला कर 11 लोगों की जान ले ली, उसके पास मिले कागजों ने भी जिस तरह की उसकी सोच उजागर की, वह क्यू एनॉन से बहुत मेल खाती है। इस बीच फेसबुक और ट्विटर ऐसे कई अकाउंट ब्लॉक कर चुके हैं। लेकिन सोशल मीडिया के एल्गोरिदम ही कुछ इस तरह से बने होते हैं कि वे कॉन्सपिरेसी थ्योरी को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाते हैं और लोगों में इसके भरोसे को बढ़ाते हैं।

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बढ़ता दायरा

इस साल फरवरी-मार्च में प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा किये गए एक सर्वे में निकल कर आया था कि जिन लोगों के बीच सर्वे किया गया उनमें से 76 फीसदी ने कहा कि उनको कांस्पीरेसी के बारे में कुछ पता नहीं है, 20 फीसदी ने कहा कि उनको थोड़ी बहुत जानकारी है जबकि 3 फीसदी ने माना कि उनको बहुत जानकारी है। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक क्यूएनॉन इन्टरनेट के एक अनजाने कल्चर से आगे बढ़ कर अब बहुत विस्तार ले चुका है और इसकी कांस्पीरेसी थ्योरी अन यूरोप में जडें जमा रहीं हैं।

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