सस्ते में कच्चा तेल: अब संग्रह करेगी सरकार, इनको सौंपी जिम्मेदारी

कच्चे तेल का भंडारण के सम्बन्ध में भारत की तरफ से सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और इराक से कच्चा तेल खरीदे जाने के सम्बन्ध में केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्री द्वारा अधिकारियों बात चल रही है। गौरतलब है कि देश में कच्चे तेल के भंडारण के लिए तीन भंडारगृह हैं।

SK Gautam
Published on: 12 April 2020 10:57 AM GMT
सस्ते में कच्चा तेल: अब संग्रह करेगी सरकार, इनको सौंपी जिम्मेदारी
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नई दिल्ली: कोरोना के कारण पूरे विश्व में संकट का का दौर चल रहा है। जाहिर सी बात है कि विश्व के सभी देश लॉकडाउन की वजह से आने वाले दिनों में आर्थिक संकट का भी सामना करेंगे। इस बीच अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल (crude oil) के दामों में लगातार कमी आ रही है। ऐसे में भारत ने लाखों टन कच्चे तेल का भंडारण करने का फैसला लिया है। कम कीमत में मिल रहे कच्चे तेल का संग्रह भूमिगत भंडार गृहों में किया जायेगा।

देश में कच्चे तेल के भंडारण के लिए तीन भंडारगृह

कच्चे तेल का भंडारण के सम्बन्ध में भारत की तरफ से सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और इराक से कच्चा तेल खरीदे जाने के सम्बन्ध में केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्री द्वारा अधिकारियों बात चल रही है। गौरतलब है कि देश में कच्चे तेल के भंडारण के लिए तीन भंडारगृह हैं। ये भंडारगृह विशाखापत्तनम, मंग्लूरू और पडूर में स्थित हैं। तेल के भूमिगत भण्डारण को अधिकृत भाषा में स्ट्रेटेजिक पेट्रोलियम रिजर्वेस कहा जाता है और अभी मंगलूरू और पडूर के भण्डार गृह आधे खाली हैं। विशाखापत्तनम का भण्डारण भी कुछ खाली है।

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सरकार ने दी विदेशी कंपनियों को दिया है जिम्मेदारी

बता दें कि इन भूमिगत भंडारगृहों में तेल भण्डारण की जिम्मेदारी सरकार ने विदेशी कंपनियों को सौंपी है। आबुधाबी नेशनल आयल कंपनी इनमे से एक है। लेकिन तेल के इस भंडार का उपयोग भारत सिर्फ आपातकाल परिस्थितियों में ही कर पायेगा। एक रिपोर्ट के अनुसार, आबुधाबी नेशनल आयल कंपनी की और से मंगलूरू में 15 लाख टन तेल भरा गया है। अब ओड़िशा व कर्नाटक के नई भूमिगत भंडारगृहों में कच्चे तेल का संग्रह किया जाना है। इन भूमिगत भंडारगृहों में 65 लाख टन का भण्डार किया जाना है।

स्ट्रेटेजिक भंडार भरने के लिए 2700 करोड़ रूपये की आवश्यकता

मंगलूरू, विजग और पडूर में तेल का स्ट्रेटेजिक भंडार भरने के लिए 2700 करोड़ रूपये की आवश्यकता होगी। लेकिन इसमें अभी केवल 700 करोड़ रूपये ही केंन्द्र की ओर से मंजूर किये गए हैं। बाकी रुपये तेल कंपनियों की तरफ से दिया जायेगा, जिसका भुगतान सरकार बाद में करेगी।

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