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नर कंकाल सड़कों पर: 10 लाख मौतों की गवाह है ये रोड ऑफ बोन्स, दुनिया में एकमात्र

क्या आपने कभी सुना है कि ईंट, पत्थर से लेकर सीमेंट और डामर इन सब चीजों के अलावा भी सड़क किसी और चीज से बन सकती है। तो दुनिया में एक ऐसी भी सड़क है, जिसे बनाने में इंसानी हड्डियों का भी इस्तेमाल किया गया है।

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Published on: 11 March 2021 1:17 PM GMT
नर कंकाल सड़कों पर: 10 लाख मौतों की गवाह है ये रोड ऑफ बोन्स, दुनिया में एकमात्र
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नर कंकाल सड़कों पर: 10 लाख मौतों की गवाह है ये रोड ऑफ बोन्स, दुनिया में एकमात्र

नई दिल्ली। पूरी दुनिया में तमाम ऐसी सड़कें, रास्तें हैं जिनके पीछे कोई न कोई खास वजह है। कोई सड़क ज्यादा लंबी होती है, कोई बहुत चौड़ी, तो कोई बहुत छोटी। सामान्यत् सड़क के निर्माण में ईंट, पत्थर से लेकर सीमेंट और डामर का इस्तेमाल किया जाता है, पर क्या आपने कभी सुना है कि इन सब चीजों के अलावा भी सड़क बनी हो। जीं हां दुनिया में एक ऐसी भी सड़क है, जिसे बनाने में इंसानी हड्डियों का भी इस्तेमाल किया गया है।

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हड्डियों की सड़क

वैसे ये बात सुनकर आपको बहुत हैरानी हुई होगी, लेकिन ये बिल्कुल सच है। हड्डियों से बने होने के कारण इस सड़क का खास नाम भी है। ये नाम है 'रोड ऑफ बोन्स' मतलब कि 'हड्डियों की सड़क'।

दरअसल ये सड़क एक हाइवे है, जो रूस के सुदूरवर्ती पूर्वी इलाके में है। इस सड़क का असली नाम कोलयमा हाइवे है। जोकि 2,025 किलोमीटर लंबा है। और इस हाइवे पर अक्सर इंसानी हड्डियां और कंकाल मिलते रहते हैं।

बीते साल नवंबर में भी इरकुटस्क इलाके में इंसानी हड्डियां मिली थीं। इस बारे में वहां के स्थानीय सांसद निकोलय त्रूफनोव ने बताया था कि सड़क पर हर जगह पर बालू के साथ इंसान की हड्डियां बिखरी पड़ी हुई थीं, वह दृश्य बहुत ही भयानक था।

Road of bones फोटो-सोशल मीडिया

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रोड ऑफ बोन्स

हड्डियों की रोड यानी 'रोड ऑफ बोन्स' नामक इस हाइवे के पीछे दिल दहला देने वाली कहानी है। इस इलाके में ठंड के मौसम में बहुत बर्फ गिरती है, जिससे सड़कें भी पूरी तरह से ढक जाती हैं। साथ ही बताया जाता है कि बर्फ की वजह से गाड़ियां सड़क पर न फिसलें, इसलिए सड़क निर्माण में बालू के साथ इंसानी हड्डियों को भी मिलाया गया था।

बताया जाता है कि इस हाइवे का निर्माण सोवियत संघ के तानाशाह कहे जाने वाले जोसेफ स्टालिन के समय में किया गया था। और तो और ये भी कहा जाता है कि इसे बनाने में ढाई से 10 लाख लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।

ऐसे में इसके पीछे की कहानी ये है कि 1930 के दशक में इस हाइवे का निर्माण शुरू हुआ। उस समय इस काम में बंधुआ मजदूरों और कैदियों को लगाया गया। जिन्हें कोलयमा कैंप में कैदी बनाकर रखा गया था। और इन्ही कैदियों से सड़क निर्माण का कार्य कराया गया।

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