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कोरोना संकट और अमेरिका की कड़ी कार्रवाई के बाद तबाह हो गया ईरान
कोरोना वायरस ने दुनिया की अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया है। इस महामारी ने मध्य-पूर्व में ईरान को सबसे अधिक प्रभावित किया है। कोरोना वायरस ने ईरान की अर्थव्यवस्था को चौपट कर रख दिया है।
नई दिल्ली: कोरोना वायरस ने दुनिया की अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया है। इस महामारी ने मध्य-पूर्व में ईरान को सबसे अधिक प्रभावित किया है। कोरोना वायरस ने ईरान की अर्थव्यवस्था को चौपट कर रख दिया है। कोरोना संकट की वजह से तेल के खर्च में काफी कमी आ गई है और अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से ईरान मुद्रा की हालत खराब हो गई है।
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले ईरान की मुद्रा रियाल की हालत बेहद खराब हो गई है। एक रिपोर्ट के मुताबिक अनाधिकारिक बाजार में ईरान की मुद्रा में सितंबर 2018 के बाद से सबसे बड़ी गिरावट हुई है।
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रिपोर्ट में बताया गया है कि एक अमेरिकी डॉलर के बदले 1,70,000 रियाल देने पड़ रहे हैं, लेकिन ईरान के केंद्रीय बैंक की वेबसाइट में बताया गया है कि आधिकारिक बाजार में एक डॉलर की कीमत 42,000 रियाल है।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर लगाम लगाने के लिए बहुपक्षीय परमाणु डील को रद्द कर दिया। इसके बाद ईरान पर कई कड़े प्रतिबंध लगा दिए थे। अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण ईरान को दूसरे देशों को अपना तेल बेचना मुश्किल हो गया। ईरान के तेल के प्रमुख आयातक देश भारत ने भी उससे तेल खरीदना करीब-करीब बंद कर दिया।
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उप-राष्ट्रपति एशाक जहांगीरी की दलील
ईरान के उप-राष्ट्रपति एशाक जहांगीरी का कहना है कि अमेरिकी प्रतिबंध, कोरोना वायरस की महामारी, तेल की कीमतों में गिरावट और वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुस्ती की के कराण ईरान की अर्थव्यवस्था पर बहुत बड़ा खतरा पैदा हो गया है।
कोरोना महामारी से ईरान बुरी तरह प्रभावित है, लेकिन इसके बावजूद वह अपनी अर्थव्यवस्था को धीरे-धीरे खोलना शुरू कर दिया है। इस फैसले पर स्वास्थ्य अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि अर्थव्यवस्था के लिए पाबंदियों को हटाने से संक्रमण फैल सकता है।
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डॉलर की भारी मांग के चलते रियाल की कीमत हो गई कम
ईरान के अधिकारियों के मुताबिक अमेरिकी प्रतिबंधों ने कोरोना वायरस महामारी से निपटने की उसकी कोशिशों को बेहद नुकसान पहुंचाया है। 2018 में ईरान की कमजोर अर्थव्यवस्था, स्थानीय बैंकों की वित्तीय समस्याएं और ईरानियों के बीच डॉलर की भारी मांग के चलते रियाल की कीमत में 70 फीसदी तक कम हो गई थी।
लोगो को पहले से ही डर सता रहा था कि अमेरिका के न्यूक्लियर डील से बाहर होने और उसके प्रतिबंधों लागू करने की वजह से ईरान के तेल व अन्य सामानों का निर्यात मुश्किल में पड़ जाएगा। इस वजह से ईरान में डॉलर की मांग और बढ़ गई थी।