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बला की खुबसूरत गांव की छोरियां, बिना इजाजत घुसे तो सेना करेगी बुरा हाल

Shivani Awasthi
Published on: 15 Jan 2020 4:26 PM IST
बला की खुबसूरत गांव की छोरियां, बिना इजाजत घुसे तो सेना करेगी बुरा हाल
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दिल्ली: दुनिया के किसी भी देश में जाने के लिए भी ज्यादातर शासन-प्रशासन की अनुमति की जरूरत होती है न कि सेना की। लेकिन एक गाँव ऐसा भी है, जहां बिना सेना की अनुमति आप प्रवेश तक नहीं कर सकते। इस गांव के लोग भी अपने को ख़ास मानते हैं। गाँव के लोगों को अलग नाम से पुकारा जाता है। इन्हें 'ड्रोग्पा या ब्रोकपा' भी कहा जाता है। ये लंबे-चौड़े और गोर होते है। वहीं प्रक्रति और आग की पूजा करते हैं।

दाह हनु गांव में 3 हजार की आबादी, खुद को कहते हैं शुद्ध आर्य:

हम बात कर रहे हैं, लद्दाख में बसे एक गाँव की। इस गाँव का नाम है, दाह हनु गांव। इस गांव में करीब 3 हजार आर्यों की आबादी है। यहां रहने वाले खुद को शुद्ध आर्य कहते हैं। ख़ास बात ये है कि इस गाँव में बिना सेना की अनुमति के लोग प्रवेश नहीं कर सकते। दाह और हनु गाँव लेह के उत्तर-पश्चिम में लगभग 163 किलोमीटर दूर स्थित हैं। यहां आर्यन्स की भाषा 'ब्रेक्सकाड' बोली जाती है। ये बौद्ध धर्म को मानते हैं लेकिन प्रकृति के साथ देवी-देवताओं को भी पूजते हैं।

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बेहद सुंदर होती है यहां की महिलाएं:

यहां के लोग कठ-काठी में लंबे सुंदर और चौड़े होते हैं। पुरुष और महिलाएं दोनों ही रंगबिरंगे और खास तरह के कपड़े पहनते हैं। महिलाएं ख़ास तरीके के फूलों से अपने बालों को सजाती हैं। ये फूल गाँव में ही उगते हैं, इन्हें 'मोन्थू थो या शोक्लो' कहा जाता है। शादीशुदा महिलाएं गूंथकर चोटी करती हैं जिसकी वजह से वो कुछ-कुछ ग्रीक महिलाओं जैसी दिखती हैं। यहां कि महिलाएं बहुत खूबसूरत दिखती हैं। वहीं पुरुष अपने कान में मोती पहनते हैं।

ब्रोकपा होते हैं शाकाहारी:

आमतौर पर यहां के निवासी भेड़ की स्किन से बने कपड़े पहने हैं। बालों में ऑरेंज फूल और सिल्वर गहने एक ट्रेडिशनल ब्रोकपास ड्रेस के तौर पर प्रसिद्ध है। रहन सहन की बात करें तो ब्रोकपा शाकाहारी होते हैं। वहीं गाय का दूध और दूध से बनी चीजें नहीं खाते। यहां गाय नहीं बल्कि बकरी के दूध को प्रमुखता दी जाती है। खाने में जौ की रोटी, हरी पत्ते वाली सब्जियां लेते हैं। ये लोग गाते नाचते और खुश रहते हैं।

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प्रक्रति के बेहद करीब:

ब्रोकपा लोग प्रकृति से मिलने वाली चीजों का इस्तेमाल करते हैं। वो टमाटर और एप्रिकोट का तेल आर्मी और दूसरे लोगों को सप्लाई करते हैं। अंगूर की वाइन भी बनाते हैं। ये काफी फुर्तीले होते हैं और लंबी जिंदगी जीते हैं।

तीन साल में एक बार मनाते हैं 'बोनोनाह फेस्टिवल'

दाह हनु गाँव में तीन साल में एक बार 'बोनोनाह फेस्टिवल' मनाया जाता हैं। जिसमें आसपास के गाँवों के लोग एकत्र होते हैं, उत्सव में अच्छी फसल को लेकर पूजा की जाती है। यहां लड़के-लड़कियों में अपना साथी चुनने की छूट होती है।इस इलाके में बादाम, एप्रिकोट और अखरोट बहुतायत में होते हैं।

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यहां के ग्रामीणों के पास अनूठे जेवरात हैं और बहुत ही आकर्षक सिर के सजावट की वस्तुएं हैं। जिनसे अनूठे चित्र बनते हैं. दाह और हनु गांव लेह के ब्रोकपा इलाके में स्थित हैं. ये दोनों गांव भारत के अंतिम आर्य गांवों के रूप में प्रसिद्ध हैं।

गाँव में इतिहास को लेकर मान्यता:

यहां एक किंवदंती बताई जाती है कि जब सिकंदर, विजेता, सिंधु घाटी में आया और फिर ब्यास में चला गया, तो उसने अपने कुछ वंशजों को यहां छोड़ दिया, जो यहां बस गए थे। वैसे तो इस गांव में बिना इजाजत आने की अनुमति नहीं है, फिर भी इन आर्यों को देखने के लिए बड़े पैमाने पर लोग वहां पहुँचने लगे हैं। ये लोग खुद को उन आर्यों का शुद्ध रक्त मानते हैं। जो ईसा से पहले भारत आ गए थे।

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Shivani Awasthi

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