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यहां ओस की बूंदों से बनता हैं पानी, हो रहा इस टेकनीक का इस्तेमाल

फॉग कैचिंग की तकनीक को कई देशों में ने अपनाया हैं। जैसे- पेरू, मोरक्को, घाना, अफ्रीका और कैलीफोर्निया जैसे देश भी शामिल हैं। समय के साथ-साथ इस तकनीक में कई नए बदलाव भी हुए। जिसे क्लाउड-फिशर कहा जाता हैं।

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Published on: 19 Dec 2020 3:19 PM IST
यहां ओस की बूंदों से बनता हैं पानी, हो रहा इस टेकनीक का इस्तेमाल
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नई दिल्ली:सर्दियों के मौसम में होना कोहरा आम बात है। कोहरे को फॉग भी कहा जाता हैं। देखा जाएं तो सर्दियों का मौसम बहुत मजेदार होता हैं। परतु सभी के लिए नहीं कह सकतें हैं । इन दिनों अक्सर देर रात और सुबह धरती के ऊपर धुएं जैसा आवरण छा जाता है। सर्दियों के मौसम में घने कोहरे की वजह साफ दिखाई नहीं देता हैं। जिसकी वजह से इस मौसम में दुर्घटना होने की संभावना अधिक हो जाती हैं। सड़क पर न दिखने की वजह से जो दुर्घटनाएं होती हैं। इससे बचने के लिए सरकार तरीके ढूढ़ती नजर आती हैं।

तकनीक को यूज़ कर कोहरे का बनता हैं पानी

वैसे कुछ देश कोहरेसे बहुत लाभ भी हो रहा हैं। खासकर उन जगहों पर जो सूखाग्रस्त होता हैं कोहरा किसी वरदान से कम नहीं। जैसा की आप लोग जानतें हैं मरुस्थलीय जगहों पर पानी की कमी बहुत होती हैं। पानी की कमी को दूर करने के लिए कोहरा उनके लिए वरदान साबित हुआ हैं। मोरक्को में तो कोहरे की बूंदो को इकठ्ठा करने के लिए खास तकनीक से बड़े-बड़े जाल बनाए जाते हैं। जो की जाल में कोहरे की बूंदों को जमा के बाद उससे पानी बनाया जाता है। इस तकनीक को फॉग कैचिंग कहा जाता हैं। इस तकनीक में इसके विशेषज्ञ इस जमे कोहरे को पानी में बदलने का प्रयास करते हैं। जो की पानी की कमी को पूरा किया जा सके।

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स्टडी के दौरान रोज बनाया जाता था पानी

फॉग कैचर पर बेलाविस्टा और पेरू में बहुत काम किया जा रहा हैं। आपको बता दें कि बेलाविस्टा में नदी, झील या ग्लेशियर नहीं पाया जाता हैं। इसी वजह से पानी की कमी से जूझना पड़ता हैं। बेलाविस्टा में फॉग कैचर का काम साल 2006 से शुरू किया। इसलिए किया गया पानी की कमी से थोड़ी रहत मिल सके। इस टेकनीक को सबसे पहले साल 1969 में दक्षिण अफ्रीका में देखा गया था। शोधकर्ताओ ने 14 महीने की उस स्टडी में कोहरे से रोज 11 लीटर पानी बनाते थे। कोहरे में क्यूबिक-मीटर में लगभग 0.5 ग्राम पानी होता है।

फॉग कैचर में किये जा रहें हैं बदलाव

कोहरा पानी के साथ बहते हुए नीचे आ जाता हैं। फॉग को जब खास तकनीक से बने जाल में जमा किया जाता हैं तो इसके बाद पानी बनाने की प्रकिया को शुरू किया जाता हैं। फॉग कैचिंग की तकनीक को कई देशों में ने अपनाया हैं। जैसे- पेरू, मोरक्को, घाना, अफ्रीका और कैलीफोर्निया जैसे देश भी शामिल हैं। समय के साथ-साथ इस तकनीक में कई नए बदलाव भी हुए। इस तरह अब यह नई तकनीक सामने आई हैं जिसे क्लाउड-फिशर कहा जाता हैं। कनाडा की एक सामाजिक संस्था फॉगक्वेस्ट ने इस फॉग कैचिंग की तकनीक को तैयार कर अफ्रीकी देश के उन लोगों तक पहुंचा रहा है जिसको पानी की भीषण समस्या हैं।

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