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तबाही झेल रहा ये देश: मातम के बाद आया सबसे बुरा दौर, ऐसे हैं हालत

पंद्रह सालों तक गृहयुद्ध झेल चुका लेबनान पहली बार इतनी खराब स्थिति का सामना कर रहा है। 1975 से 1990 तक लेबनान गृहयुद्ध की चपेट में रहा।

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Published on: 11 Aug 2020 2:56 PM GMT
तबाही झेल रहा ये देश: मातम के बाद आया सबसे बुरा दौर, ऐसे हैं हालत
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सबसे बुरे दौर में लेबनान

नीलमणि लाल

नई दिल्ली: पंद्रह सालों तक गृहयुद्ध झेल चुका लेबनान पहली बार इतनी खराब स्थिति का सामना कर रहा है। 1975 से 1990 तक लेबनान गृहयुद्ध की चपेट में रहा। इसके बाद भी दो दशक से लंबे समय तक सीरिया की सेनाएं देश में रहीं और अपना प्रभुत्व बनाए रखा। सन 2005 में लेबनान के तत्कालीन प्रधानमंत्री रफीक हरीरी की हत्या से उपजी स्थिति देश के राजनैतिक और आर्थिक इतिहास में एक बड़ा मोड़ लेकर आई।

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अब बेरुत में भयानक विस्फोट, 200 लोगों की मौतें और उसके बाद जनाक्रोश से देश में एक नया संकट पैदा हो गया है। अब भले ही लेबनान के प्रधानमंत्री हसन दियाब ने पूरी कैबिनेट के साथ इस्तीफा दे दिया है लेकिन हालत सुधर पाएंगे इसमें सभी को संदेह है। लेबनान में शिया, सुन्नी और ईसाईयों के प्रमुख गुटों से बनी सरकार का शासन चलता है और इसमें कोई बदलाव आयेगा ये नामुमकिन सा है। क्योंकि जनता का मानना है कि अब जो भी सरकार बनाएगा वो इसी भ्रष्ट और सादे गले सिस्टम की ही देन होगा।

यही वजह है कि जब 4 अगस्त के धमाके के बाद फ़्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने लेबनान का दौरा किया किया तो लोगों उनसे पुरजोर मांग की कि फ़्रांस को लेबनान का शासन अपने हाथ में ले लेना चाहिए। बता दें कि आज़ादी से पहले लेबनान फ़्रांस का उपनिवेश हुआ करता था। लेबनानी जनता अब क्रांति की आवाज उठा रही है।

आर्थिक संकट

लेबनान पर 92 अरब डॉलर का कर्ज है जो कि उसकी जीडीपी के 170 फीसदी के आसपास है। देश की आधी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीती है और करीब 35 फीसदी लोग बेरोजगार हैं।

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जनता की मांग - फ्रांस करे शासन

बेरूत धमाके के बाद देश की जनता सरकार से नाराज होकर सड़कों पर उतर आई है। उसका कहना है कि सरकार और सिस्टम कुछ नहीं कर रहा है। देश में प्रदर्शनों का सिलसिला जारी है। पुलिस और सेना पर दमन और अत्याचार के आरोप लग रहे हैं। लोगों का कहना है कि देश का सिस्टम अब सुधर नहीं सकता है, इसलिए बाकायदा ऑनलाइन जनमत संग्रह करके फ़्रांस से टेकओवर करने की मांग की गयी है। याचिका में लिखा गया है, लेबनान के अधिकारियों ने साफ तौर पर देश को सुरक्षित और प्रबंधित करने में असमर्थता दिखाई है।

विफल होता सिस्टम, भ्रष्टाचार, आतंकवाद के साथ देश अपनी अंतिम सांस तक पहुंच गया है। हम मानते हैं कि लेबनान को एक स्वच्छ और टिकाऊ शासन स्थापित करने के लिए फ्रांस के शासनादेश में होना चाहिए।

लोगों के गुस्से के बीच अंतरराष्ट्रीय नेताओं ने देश में राजनीतिक सुधार का आग्रह किया है। लेबनानियों को लगता है कि बेरुत धमाका सरकारी सिस्टम के सड़ जाने का सबूत है। 1975-1990 के गृहयुद्ध के बाद से लेबनान सबसे गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है और इस कारण लाखों लोग गरीबी में धकेले जा चुके हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने कहा है कि जब तक देश तत्काल सुधारों को लागू नहीं करता वह "डूबता ही रहेगा।"

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साल भर से अशांति

देश की बिगड़ती आर्थिक हालत और गिरती मुद्रा के कारण आम जनों को हो रही परेशानियों के चलते सितंबर 2019 में सैकड़ों लोग राजधानी बेरूत की सड़कों पर उतरे और अगले करीब डेढ़ महीने तक वहां ऐसे हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए जिनके चलते 29 अक्टूबर को हरीरी ने अपनी सरकार समेत इस्तीफा दे दिया। 19 दिसंबर को हिजबुल्लाह ने समर्थन देकर एक अंजान से व्यक्ति हसन दियाब को देश का प्रधानमंत्री बनाने के लिए आगे किया, जिसे प्रदर्शनकारियों ने फौरन नामंजूर कर दिया।

आर्थिक संकट के चरम की ओर

इसी साल 21 जनवरी को लेबनान में एक नई सरकार बनी। यह एक ही पार्टी की सरकार है, जिसमें हिजबुल्लाह और उनके सहयोगी शामिल हैं और जो संसद में भी बहुमत में हैं। 30 अप्रैल को सरकार ने माना कि लेबनान के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि वह अंतरराष्ट्रीय कर्ज चुकाने में चूक गया। इसके बाद से अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने और देश में आर्थिक सुधारों की योजना बनाई गई.लेकिन अभी तक बात एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाई है।

इतिहास के आईने में

14 फरवरी, 2005 के दिन लेबनान के प्रधानमंत्री रफीक हरीरी के दस्ते पर एक बड़ा आत्मघाती बम हमला हुआ था, जिसमें हरीरी के अलावा 21 और लोग भी मारे गए थे। विपक्ष ने इसके पीछे सीरिया का हाथ बताया था, जिससे सीरिया इनकार करता आया है। वहीं खुद लेबनान के शक्तिशाली शिया गुट हिजबुल्लाह पर भी इसका संदेह रहा है। इसके बाद देश में बहुत बड़े स्तर पर हुए विरोध प्रदर्शनों के चलते, सीरियाई सेना ने 26 अप्रैल को लेबनान छोड़ दिया। सीरियाई सेनाएं 29 साल से लेबनान में बनी हुई थीं।

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इजरायल के साथ जंग

जुलाई 2006 में हिजबुल्लाह ने दो इजराइली सैनिकों को कब्जे में ले लिया, जिसके कारण इजरायल के साथ जंग छिड़ गई। 34 दिन चली इस जंग में जो 1,400 जानें गईं, उनमें से 1,200 लेबनानी थीं। मई 2008 में एक बार फिर एक हफ्ते तक चली हिंसक झड़पों में 100 लोगों की जान चली गई थी।

यह ऐसा समय था जब लेबनान फिर से गृह युद्ध के दलदल में गिरता नजर आ रहा था। जुलाई 2008 में जाकर लेबनान में एक 30 सदस्यों वाली राष्ट्रीय एकता सरकार के गठन पर सहमति बनी, जिसमें हिजबुल्लाह और उसके सहयोगियों को वीटो करने की शक्ति दी गई। जून 2009 में रफीक हरीरी के बेटे साद हरीरी ने सीरिया-विरोधी गठबंधन के नेता के तौर पर चुनाव जीता और देश के प्रधानमंत्री चुने गए। हिजबुल्लाह के साथ कई महीनों तक चले गतिरोध के बाद साद हरीरी नवंबर में जाकर सरकार का गठन कर पाए। जनवरी 2011 में हिजबुल्लाह ने सरकार गिरा दी और जून में अपने प्रभुत्व वाली सरकार का गठन कर लिया।

अक्टूबर 2016 में हिजबुल्लाह के समर्थन से ही लेबनान में सेना के पूर्व जनरल माइकल आउन राष्ट्रपति बने। साद हरीरी को फिर से प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया।

मई 2018 में हिजबुल्लाह और उसके समर्थकों ने 2009 के बाद देश मे कराए गए संसदीय चुनावों में ज्यादातर सीटों पर जीत हासिल की। खुद प्रधानमंत्री की पार्टी को काफी नुकसान हुआ लेकिन फिर भी उन्हीं का नाम तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने के लिए आगे किया गया। हालांकि नई सरकार के गठन पर मतभेदों के चलते हरीरी-हिजबुल्लाह के बीच बातचीत जनवरी 2019 तक खिंचती चली गई।

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