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श्रीलंका चुनावः मजबूत हुए राजपक्षे, संविधान में बदलाव का रास्ता साफ
श्रीलंका के प्रभावशाली राजपक्षे परिवार की श्रीलंका पीपुल्स पार्टी ने संसदीय चुनाव में भारी बहुमत से जीत हासिल की है। इस चुनाव नतीजे के बाद राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के लिए संविधान में बदलाव करने का रास्ता साफ हो गया।
कोलम्बो श्रीलंका के प्रभावशाली राजपक्षे परिवार की श्रीलंका पीपुल्स पार्टी ने संसदीय चुनाव में भारी बहुमत से जीत हासिल की है। इस चुनाव नतीजे के बाद राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के लिए संविधान में बदलाव करने का रास्ता साफ हो गया।
श्रीलंका पीपुल्स पार्टी (एसएलपीपी) और उसके सहयोगियों ने दो तिहाई बहुमत से जीत हासिल की है। कोरोना वायरस महामारी के बीच श्रीलंका में 5 अगस्त को आम चुनाव हुए थे। इससे पहले दो बार महामारी के कारण चुनाव टाल दिए गए थे। गोटबाया राजपक्षे ने चुनाव से पहले ही दो तिहाई बहुमत से जीत का भरोसा जताया था। वे बतौर राष्ट्रपति अपनी शक्तियों को बढ़ाना चाहते हैं ताकि वे संविधान में बदलाव कर पाएं। उनका कहना है कि संविधान में बदलाव कर वे छोटे से देश को आर्थिक और सैन्य रूप से सुरक्षित कर पाएंगे।
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भाई को बनाएंगे प्रधानमंत्री
इन नतीजों के बाद पूरी संभावना है कि वे अपने बड़े भाई और पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को दोबारा प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठाएंगे। दोनों भाइयों को 2009 में एलटीटीई को देश से खत्म करने के लिए जाना जाता है। चरमपंथी संगठन एलटीटीई अल्पसंख्यक तमिलों के लिए अलग राज्य के लिए लड़ाई लड़ रहा था। 2009 में जब गृहयुद्ध खत्म हुआ तो उस वक्त छोटे भाई राष्ट्रपति थे। उन पर यातना और आम नागरिकों की हत्या के आरोप भी लगे थे।
पर्यटन पर निर्भर दो करोड़ से अधिक आबादी वाला देश पिछले साल चर्च, होटल पर हुए आतंकी हमले के बाद से ही अपनी अर्थव्यवस्था को लेकर जूझ रहा है। इस आतंकी हमले की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट ने ली थी। इसके बाद कोरोना वायरस के कारण देश में लॉकडाउन लगाया गया जिससे आर्थिक गतिविधियां ठप सी हो गईं।
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भारत के लिए क्या मायने
महिंदा राजपक्षे करीब दस साल तक श्रीलंका के राष्ट्रपति रह चुके हैं, लेकिन पार्टी में विरोध के कारण उनकी कुर्सी चली गई। फिर उनके भाई राष्ट्रपति बन गए और महिंदा खुद प्रधानमंत्री बन गए। इस बार चुनाव में जाते हुए श्रीलंका पोदुजना पार्टी का मुद्दा था संविधान में बदलाव का। जिसमें राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के कार्यकालों की संख्या में बढ़ोतरी, कुछ ऐसे कानून जो पहले से देश में लागू हैं उन्हें बदलने का मसला। इसके अलावा सिंहली, बौद्ध मतदाताओं बनाम मुस्लिम-तमिल मतदाताओं के मसले ने जोर पकड़ा था।
महिंदा राजपक्षे की पार्टी को शुरुआत से ही चीन की करीबी माना जाता रहा है। उसका सबसे बड़ा मकसद चीन के द्वारा बड़े स्तर पर किया जा रहा निवेश है, जिसे राजपक्षे की पार्टी ने अपने देश में विकास के मॉडल के रूप में पेश किया और मतदाताओं को यकीन दिला दिया कि बाहरी निवेश से श्रीलंका की सूरत बदल सकती है। श्रीलंकाई राष्ट्रपति गोतबया राजपक्षे ने कुछ वक्त पहले भारत के साथ बंदरगाह को लेकर हुए समझौते की समीक्षा करने का आदेश दिया था, तब महिंदा अंतरिम प्रधानमंत्री थे और उन्होंने इसका खुले तौर पर साथ दिया था। इसके अलावा ईस्टर के वक्त चर्च में हुए हमले पर भी श्रीलंकाई राष्ट्रपति ने भारत विरोधी बयान दिए थे।
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चीन और श्रीलंका
चीन लगातार हिन्द महासागर में अपनी पैठ तेज कर रहा है, साथ ही कई मोर्चों पर भारत को घेरने की योजना बना रहा है। फिर चाहे पाकिस्तान में बढ़ता निवेश हो, बांग्लादेश में पैर जमाने की कोशिश हो या फिर नेपाल को डराना धमकाना हो।
इसी तरह चीन ने बंदरगाहों के रास्ते श्रीलंका में निवेश बढ़ाया है। चीन के इसी निवेश के लालच में आकर राजपक्षे बंधुओं की सरकार ने भारत-ऑस्ट्रेलिया – जापान -अमेरिका से संबंध वाले कई प्रोजेक्टों से किनारा किया, हिन्द महासागर में चीन को अपनी ओर आने की इजाजत दी। हालांकि, श्रीलंका भी लगातार कर्ज के तले दबता जा रहा है और कुल कर्ज का करीब दस फीसदी हिस्सा चीन से ही है।
अब देखना होगा कि दोनों देशों के बीच आगे के संबंध किस तरह आगे बढ़ते हैं क्योंकि भारत और चीन के बीच लगातार संबंध बिगड़े हैं और उनका असर पड़ोसी मुल्कों के साथ भी संबंधों पर असर पड़ा है।
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