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सूंघने का लक्षण: सामने आई ये खुलासा करने वाली रिपोर्ट, इसलिए होता है संक्रमितों में
दुनियाभर में कोरोना वायरस ने तबाही मचा रखी है। बीते कई महीनों से अभी तक इस वायरस की गिरफ्त में आने से लाखों लोगों की जान जा चुकी है। बदलते मौसम की वजह से कोविड-19 और सामान्य फ्लू में फर्क कर पाना लोगों के लिए इन दिनों काफी मुश्किल हो रहा है।
नई दिल्ली। दुनियाभर में कोरोना वायरस ने तबाही मचा रखी है। बीते कई महीनों से अभी तक इस वायरस की गिरफ्त में आने से लाखों लोगों की जान जा चुकी है। बदलते मौसम की वजह से कोविड-19 और सामान्य फ्लू में फर्क कर पाना लोगों के लिए इन दिनों काफी मुश्किल हो रहा है। कोरोना के लक्षण भी सामान्य फ्लू की तरह यानी सूखी खांसी, जुकान और बुखार होता है। लेकिन इसके अलावा भी पूरी दुनिया में ये भी सामने आया है कि कोरोना के मरीजों में सूंघने की क्षमता बिल्कुल खत्म हो जाती है। जबकि और कोई लक्षण ऐसे मरीजों में नहीं दिखता है।
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सूंघने की क्षमता खत्म
कोरोना वायरस के इस लक्षण के बारे में कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा, इसके लिए दुनिया भर के वैज्ञानिक और डॉक्टर रिसर्च कर रहे हैं। इस बीच अमेरिका के जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के कई वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उन्होंने इस बात का पता लगा लिया है कि कोरोना संक्रमित होने पर क्यों लोगों में सूंघने की क्षमता भी खत्म हो जाती है।
रिसर्च में वैज्ञानिकों ने पाया कि नाक का जो हिस्सा सूंघने में हमारी मदद करता है, वहां एंजियोटेनसिन (angiotensin-converting enzyme II (ACE-2) का लेवल बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। सामान्यत् इस एंजाइम को कोरोना संक्रमण का एंट्री प्वाइंट' माना जाता है।
क्योंकि यहीं से कोरोनो वायरस शरीर की कोशिकाओं में जाकर संक्रमण फैलाता है। कई वैज्ञानिकों का मानना है कि एंजियोटेनसिन का लेवल इस जगह बाकी हिस्सों के अपेक्षा 200 से 700 गुना बढ़ जाता है।
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एंजियोटेनसिन का स्तर 200 से 700 गुना ज्यादा
साथ ही कई वैज्ञानिकों ने नाक के पिछले हिस्से से 23 मरीजों के सैंपल लिए थे। ये सैंपल मुख्य तौर पर नाक के उस हिस्से से लिया गया, जिसे इंडोस्कोपिक सर्जरी के दौरान हटाया जाता है। ये सारे मरीज कोरोना वायरस से संक्रमित नहीं थे।
फिर इसके बाद वैज्ञानिकों ने कुछ सैंपल कोरोना संक्रमित मरीजों के भी लिए गए। दोनों की तुलना करने पर पता चला कि जो लोग कोरोना से संक्रमित हैं उनमें एंजियोटेनसिन का स्तर 200 से 700 गुना ज्यादा है।
ऐसे में डॉक्टर लेन का कहना है कि अब तक के रिसर्च से ये पता चला है कि नाक के इसी हिस्से से कोरोना वायरस की एंट्री शरीर के दूसरे हिस्से में होती है। अब हम लैब में अधिक प्रयोग कर रहे हैं ये देखने के लिए कि क्या वायरस वास्तव में इन कोशिकाओं का उपयोग शरीर तक पहुंचने और संक्रमित करने के लिए कर रहा है। अगर ऐसा है, तो हम एंटीवायरल थेरेपी के जरिए से संक्रमण से निपटने में सक्षम हो सकते हैं'।
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