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वैक्सीन लगने के बाद भी खतरा! पहनना पड़ेगा मास्क, इसलिए करना होगा ऐसा

कोरोना वायरस समेत श्वास संबंधी संक्रमणों में वायरस का एंट्री पॉइंट नाक होती है जहाँ वायरस बहुत तेजी से मल्टीप्लाई करता है। इसके बाद इम्यून सिस्टम झते से सक्री होता है

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Published on: 13 Dec 2020 5:55 AM GMT
वैक्सीन लगने के बाद भी खतरा! पहनना पड़ेगा मास्क, इसलिए करना होगा ऐसा
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वैक्सीन लगने के बाद भी खतरा! पहनना पड़ेगा मास्क, इसलिए करना होगा ऐसा (PC: social media)

लखनऊ: ब्रिटेन और अमेरिका में फाइजर की कोरोना वैक्सीन अब लोगों को लगाई जाने लगी है। ऑक्सफ़ोर्ड और मॉडर्ना की वैक्सीन भी तैयार है। इन सभी वैक्सीनों ने ह्यूमन ट्रायल के दौरान कोरोना की गंभीर बीमारी के प्रति अच्छा बचाव दिखाया है लेकिन अभी ये साफ़ नहीं है कि ये वैक्सीनें कोरोना वायरस का फैलाव रोकने में कितनी कामयाब होंगी।

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जिनको वैक्सीन दी गयी थी उनमें से कितने लोग कोरोना बीमारी से ग्रसित हुए

दरअसल, फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीनों के ट्रायल में ये देखा गया कि जिनको वैक्सीन दी गयी थी उनमें से कितने लोग कोरोना बीमारी से ग्रसित हुए। इससे ये संभावना बनी हुई है कि कई ऐसे लोग जिनको वैक्सीन दी गयी थी वो कोरोना से संक्रमित तो हुए लेकिन उनमें कोई लक्षण नहीं आया। ऐसे लोग यदि अन्य लोगों के निकट संपर्क में आये या उन्होंने मास्क पहनना छोड़ दिया होगा तो हो सकता है कि वे साइलेंट स्प्रेडर बन गए हों। जिनको वैक्सीन दी गयी वो अगर वायरस के साइलेंट स्प्रेडर बन जाते हैं तो वे उन लोगों में वायरस फैलाते रहेंगे जिनको वैक्सीन नहीं लगी है और ये एक बहुत बड़ा जोखिम बना रहेगा।

स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक इम्यूनोलोजिस्ट मिचल ताल का कहना है कि बहुत से लोग ये सोचते हैं कि एक बार कोरोना की वैक्सीन लग जाने के बाद उनको मास्क लगाने की जरूरत नहीं रहेगी। लेकिन ऐसे लोगों को ये गंभीरता से जान लेना चाहिए कि उनको वैक्सीन लेने के बाद भी मास्क पहनना होगा क्योंकि वे वैक्सीन के बाद भी संक्रमण फैला सकते हैं।

corona corona (PC: social media)

संक्रमण की सामान्य स्थिति

कोरोना वायरस समेत श्वास संबंधी संक्रमणों में वायरस का एंट्री पॉइंट नाक होती है जहाँ वायरस बहुत तेजी से मल्टीप्लाई करता है। इसके बाद इम्यून सिस्टम झते से सक्री होता है और एक खास तहर की एंटीबॉडी उत्पन्न करता है को नाक, मुंह, फेफड़ों और पेट की परत पर काम करती है। यदि ऐसा व्यक्ति वायरस के प्रति दूसरी बार एक्स्पोज होता है तो ये एंटीबाडी और इम्यून सेल उस वायरस को याद रखते हैं और तत्काल वायरस को नाक में ही घेर लेते हैं और वायरस को शरीर में कहीं और जड़ें जमाने का मौक़ा नहीं मिल पाता है।

वैक्सीन इम्यून सिस्टम को उत्तेजित करती है

इसके विपरीत कोरोना वायरस की वैक्सीन मांसपेशियों में बहुत गहरे लगाई जाती है और वह तेजी से रक्त में मिल जाती है। वहां वैक्सीन इम्यून सिस्टम को उत्तेजित करती है ताकि वे एंटीबॉडी उत्पन्न करने लगे। इससे इनसान के बीमार पड़ने के प्रति बढ़िया सुरक्षा कवच मिल जाता है। कुछ एंटीबॉडी नाक के ऊतकों की ‘म्यूकोसा’ परत तक पहुँच जाती हैं और वहां पहरेदार की तरह बनी रहती हैं। लेकिन अभी ये पता नहीं चला है कि एंटीबॉडी की कितनी मात्रा उत्पन्न और कितनी तेजी से उत्पन्न होगी। अगर एंटीबॉडी कम हुई या देर से बनी तो वायरस नाक में पनपता रहेगा और श्वास के साथ दूसरों को संक्रमित करता रहेगा।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ वाशिंगटन में इम्यूनोलोजिस्ट मैरियन पीपर का कहना है कि ये एक रेस की तरह है कि वायरस जल्दी पनपता है या इम्यून सिस्टम उसे जल्दी कंट्रोल करता है।

ऐसे में एक्सपर्ट्स का कहना है कि श्वास वाले वायरसों को कंट्रोल करने में वो वैक्सीन ज्यादा कारगर हो सकती हैं जो नक् में स्प्रे द्वारा दी जाएँ। हो सकता है कोरोना वायरस की अगली पीढी की वैक्सीन नाक और श्वास तंत्रिका में ज्यादा इम्यूनिटी उत्पन्न करें जहाँ इसकी सबसे अधिक जरूरत है। या फिर लोगों को इंजेक्शन वाली वैक्सीन के अलावा नाक के जरिये भी वैक्सीन का बूस्टर दिया जाए जिससे नाक और गले में एंटीबॉडी उत्पन्न हो सके।

कोरोना वायरस वैक्सीनों ने साबित कर दिया है

कोरोना वायरस वैक्सीनों ने साबित कर दिया है कि वे गंभीर बीमारी से बचाव करते हैं लेकिन नाक में पनपते वायरस के खिलाफ ये कितनी असरदार हैं इसकी कोई गारंटी नहीं है। कोरोना बीमारी का सबसे गंभीर लक्षण फेफड़ों में आता है और फेफड़े ही शरीर में सर्कुलेट होती एंटीबॉडी को नाक या गले की अपेक्षा सबसे आसानी से हासिल कर पाते हैं। यानी अगर किसी ने वैक्सीन लगवाई है तो भी वो कोरोना वायरस से संक्रमित हो सकता है। फर्क ये रहेगा कि ऐसा व्यक्ति गंभीर रूप से बीमार नहीं पड़ेगा। लेकिन वायरस नाक-गले में पनपेंगे जरूर।

एरिज़ोना यूनिवर्सिटी के इम्यूनोलोजिस्ट दीप्तो भट्टाचार्य के अनुसार

एरिज़ोना यूनिवर्सिटी के इम्यूनोलोजिस्ट दीप्तो भट्टाचार्य के अनुसार अगर वैक्सीन लक्षण वाली बीमारी को रोकने में 95 फीसदी प्रभावी है तब भी वो सभी संक्रमणों को रोकने में कामयाब नहीं रहेगी। फिर भी एक्सपर्ट्स को आशा है कि वैक्सीन नाक और गले में भी वायरस को दबा देगी जिससे वैक्सीन लगे लोग अन्य में संक्रमण नहीं फैला सकेंगे। भट्टाचार्य ने कहा कि सामान्य फ्लू की वैक्सीन का इंजेक्शन लगवाने वालों पर की गयी जांच से पता चला है कि ऐसे लोगों की नाक में एंटीबॉडी काफी मात्रा में मौजूद था। अब कोरोना के मरीजों पर किये गए अध्ययन में पता चला कि उनके खून और लार में एंटीबॉडी के लेवल सामान रूप से मौजूद थे। इससे संकेत मिलता है कि खून में शक्तिशाली इम्यून रेस्पोंस से म्यूकोज़ल टिश्यू का भी बचाव हो सकता है। लेकिन ये सब शोध की बात है।

ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन

ऑक्सफ़ोर्ड के साथ मिल कर वैक्सीन बना रही आस्ट्रा ज़ेनेका ने कहा है कि जिन वालंटियर्स को वैक्सीन लगाईगयी है वो कोरोना संक्रमण की नियमित रूप से जांच करा रहे हैं और इनके रिजल्ट बताते हैं कि वैक्सीन से कुछ संक्रमण रोके जा सकते हैं। लेकिन वैक्सीन लगे ऐसे लोग जिनमें किसी तरह के लक्षण नहीं होने के बावजूद भारी वायरल लोड है वे लोग सबसे बड़े संवाहक हो सकते हैं क्योंकि ऐसे लोग सुरक्षा के एक झूठे भरोसे में हो जाते हैं।

corona corona (PC: social media)

फाइजर और मॉडर्ना

फाइजर और मॉडर्ना ने कहा है कि वे इस बात की जांच कर रहे हैं कि उनकी वैक्सीन जिनको लगी है उनमें ‘एन’ वायरल प्रोटीन के खिलाफ एंटीबॉडी बनी है कि नहीं। दरअसल, वैक्सीन ‘एन’ प्रोटीन पर काम नहीं करती है और ये प्रोटीन बताती है कि वैक्सीन लगने के बाद लोग वायरस से संक्रमित हुए कि नहीं। इसके अलावा मॉडर्ना सभी वालंटियर्स की खून की जांच करके ‘एन’ प्रोटीन का पता लगाएगी। इसके रिजल्ट आने में कई हफ़्तों का समय लग सकता है।

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बहरहाल, एक्सपर्ट्स का कहना है कि कोरोना संक्रमण को प्रभावी रूप से कंट्रोल करने के लिए मास्क लगना बेहद जरूरी है। वैक्सीन लगने के बाद मास्क और अन्य एहतियात त्याग देना मूर्खता होगी। कोरोना से जंग में मास्क, हाथ धोने और अन्य एहतियातों के साथ वैक्सीन भी एक सप्लीमेंट्री हथियार है।

रिपोर्ट- नीलमणि लाल

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