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इमरान की नाक में दम! पाक में सियासी कुर्सी के लिए काल है ये मौलाना  

मौलाना फजलुर रहमान पाकिस्तान की सबसे बड़ी धार्मिक पार्टी और सुन्नी कट्टरपंथी दल जमिअत उलेमा-ए-इस्लाम (जेयूआई-एफ) के चीफ हैं। पाकिस्तान की राजनीति से उनका पुराना नाता रहा है, उनके पिता खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के सीएम रह चुके हैं।

SK Gautam
Published on: 13 Aug 2023 7:43 AM IST (Updated on: 14 Aug 2023 7:44 AM IST)
इमरान की नाक में दम! पाक में सियासी कुर्सी के लिए काल है ये मौलाना  
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इस्लामाबाद: पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार पर काफी दिनों से संकट के बादल मंडरा रहे हैं। अर्थव्यवस्था से लेकर विदेश नीति के मोर्चे पर इमरान खान चारो कोने चित होते दिखाई दे रहे हैं। सेना प्रमुख बाजवा इमरान सरकार के पैरलल सरकार चलाकर ये संकेत भी दे चुके हैं। सैन्य तख्तापलट की बस औपचारिकता भर बाकी रह गयी है। लेकिन इन सबके बीच इमरान सरकार पर सबसे बड़ी मार पड़ी है 'मौलाना फैक्टर' की।

हम बात कर रहे हैं मौलाना फजलुर रहमान की

मौलाना फजलुर रहमान ने कहा कि इमरान सरकार के खात्मे तक हमारा विरोध जारी रहेगा और 27 अक्टूबर को इस्लामाबाद मार्च का ऐलान करते हुए कहा है कि सभी कार्यकर्ता इस्लामाबाद के डी-चौक पर जमा हों।

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आजादी मार्च के साथ कौन-कौन खिलाफ

पाकिस्तान की दो प्रमुख विपक्षी पार्टियां नवाज शरीफ की पीएमएल-एन और बिलावल भुट्टो की पीपीपी इस समर्थन का ऐलान कर चुकी है। इसके अलावा तमाम और दल भी इस समर्थन को तैयार हैं।

मौलाना के आगे झुकते नजर आ रहे हैं इमरान

मौलाना की विरोधात्मक तैयारियों को देखते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपनी पार्टी पीटीआई को मौलाना से बातचीत के रास्ते खोलने के निर्देश दिए हैं। इस मार्च को लेकर पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद के लोगों को 2014 का वो मंजर भी याद आ रहा है जब विपक्षी नेता के रूप में इमरान खान मार्च लेकर इस्लामाबाद पहुंचे थे और पूरा शहर जैसे अस्त-व्यस्त हो गया था। अब आने वाले दिनों में तय होगा कि मौलाना का ये मार्च किस हद तक पाकिस्तान की सियासत में हलचल मचा पाता है।

कौन हैं मौलाना फजलुर रहमान

मौलाना फजलुर रहमान पाकिस्तान की सबसे बड़ी धार्मिक पार्टी और सुन्नी कट्टरपंथी दल जमिअत उलेमा-ए-इस्लाम (जेयूआई-एफ) के चीफ हैं। पाकिस्तान की राजनीति से उनका पुराना नाता रहा है, उनके पिता खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के सीएम रह चुके हैं। वहां की सियासत में उनके परिवार का खासा प्रभाव रहा है। मौलाना पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में नेता विपक्ष भी रह चुके हैं।

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पिछले कुछ साल से उदारवादी होने का दावा करते हैं

मौलाना फजलुर रहमान संसद में विदेश नीति पर स्टैंडिंग कमेटी के चीफ, कश्मीर कमेटी के मुखिया रह चुके हैं। वे तालिबान समर्थक माने जाते हैं लेकिन पिछले कुछ साल से उदारवादी होने का दावा करते हैं। इसके अलावा 2018 के चुनाव के बाद इमरान को सत्ता में आने से रोकने के लिए साझा पहल कर सुर्खियों में आए थे। पिछले साल राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की ओर से उम्मीदवार भी थे। सत्ता में नहीं रहते हुए भी नवाज शरीफ की सरकार ने मौलाना को केंद्रीय मंत्री का दर्जा दे रखा था।

धार्मिक कार्ड और तालिबान कनेक्शन

मौलाना का धार्मिक कार्ड सबसे मजबूत रहा है। वे खुले तौर पर देश की सबसे बड़ी धार्मिक पार्टी चलाते हैं। कभी तालिबान के खिलाफ अमेरिकी अभियान को इस्लाम विरोधी बताकर वे जेहाद का ऐलान किया करते थे। पहली बार 1988 में जब बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनी थीं तो मौलाना ने एक महिला के देश की अगुवाई करने के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। हालांकि बाद में बेनजीर भुट्टो से मुलाकात के बाद मौलाना ने अपना विरोध वापस ले लिया था।

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जॉर्ज बुश के खिलाफ जेहाद का ऐलान कर तालिबान के पक्ष में रैलियां कर चुके हैं

मुशर्रफ के शासन काल में भी मौलाना फजलुर रहमान हमेशा विरोध का झंडा बुलंद किए रहे। 2001 में अमेरिका में हुए 9/11 के हमले के बाद जब पाकिस्तान को मजबूरन तालिबान के खिलाफ अमेरिकी ऑपरेशन में साथ होना पड़ा तो मौलाना ने मुशर्रफ के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। जॉर्ज बुश के खिलाफ जेहाद का ऐलान कर पाकिस्तान के कई शहरों में तालिबान के पक्ष में रैलियां की। परवेज मुशर्रफ ने तब मौलाना को नजरबंद भी करवा दिया था।

मौलाना ने अमेरिकी राजदूत को सीक्रेट डिनर पर बुलाया

बाद में अमेरिकी केबल्स लीक से हुए खुलासों से ये बात भी सामने आई कि 2007 में मुशर्रफ की सत्ता को उखाड़ फेंकने के अपने प्लान के तहत मौलाना ने अमेरिकी राजदूत को सीक्रेट डिनर पर बुलाकर पीएम बनने के लिए अमेरिकी समर्थन मांगा था। डिनर में मौलाना ने ऑफर किया था कि तालिबान का समर्थन छोड़ वे पाकिस्तान का पीएम बनना चाहते हैं और अमेरिका की यात्रा करना चाहते हैं। ये वो दौर था जब मुशर्रफ की सत्ता कमजोर हो रही थी और सियासी पटल पर तमाम दल अपने लिए जगह बनाने की कोशिश कर रहे थे। तब मौलाना ने अमेरिकी समर्थन हासिल कर सत्ता पर कब्जे का सीक्रेट प्लान बनाया था।

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इमरान से इतना नाराज क्यों

2018 के जिन चुनावों में बिना बहुमत हासिल किए सेना की रहम पर इमरान खान सत्ता में आ गए उन चुनावों को मौलाना फजलुर रहमान धांधली वाला चुनाव बताते हैं। चुनाव के समय से ही मौलाना ने इमरान खान के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। पहले साझा विपक्षी सरकार बनाने की कोशिश, फिर राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी गोलबंदी और अब आजादी मार्च का ऐलान... मौलाना एक तरफ जहां एक साल में पाकिस्तान में नासूर बन चुके आर्थिक संकट का कारण इमरान खान की नीतियों को बताते हैं वहीं नए सिरे से चुनाव कराकर नई सरकार के गठन की मांग पर अड़े हुए हैं।



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