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फिर ट्रम्प दिखायेंगे जादू, प्रेसिडेंट बनना तय!

डोनाल्ड ट्रम्प उन नेताओं में हैं जो केवल अपने नागरिकों और अपने अमेरिका की ही बातें करतें हैं। यही बात उनको आगे रखती है। तुलनात्मक रूप से उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी जो बिडेन उदार हैं

Newstrack
Published on: 1 Nov 2020 11:06 AM IST
फिर ट्रम्प दिखायेंगे जादू, प्रेसिडेंट बनना तय!
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फिर ट्रम्प दिखायेंगे जादू, प्रेसिडेंट बनना तय! (Photo by social media)

लखनऊ: दुनिया ने अब तक के सबसे रोमांचक, कड़े संघर्ष वाले और विवादित चुनाव को अमेरिका में होते देखा है। इस चुनाव ने दुनिया की सुपर पावर की लोकतान्त्रिक व्यवस्था को कसौटी पर कसा है लेकिन साथ ही नयी परिभाषाएं और परम्पराएं गढ़ी हैं। इसने फिर साबित किया है कि अब ग्लोबलाईज़ेशन का समय सिकुड़ता चला गया है। पैट्रियोटिज्म का दौर भी ख़त्म हो गया है और नया दौर नेशनलिज्म यानी राष्ट्रवाद का है। इस नए दौर में हर वो नेता जीतता हुआ दिख जाएगा जो अपनी और अपने राष्ट्र की बात कर रहा हो।

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डोनाल्ड ट्रम्प उन नेताओं में हैं जो केवल अपने नागरिकों और अपने अमेरिका की ही बातें करतें हैं। यही बात उनको आगे रखती है। तुलनात्मक रूप से उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी जो बिडेन उदार हैं लेकिन उनको अपने नेशनलिज्म को साबित करने का कोई अवसर नहीं मिला है। बिडेन और उनकी डेमोक्रेटिक पार्टी सोशलिज्म की बातें करती है जबकि ट्रम्प ने नेशनलिज्म की तस्वीर को दिखा दिया है।

ट्रम्प अपनी रैलियों में कहते रहे हैं कि- आप चाहे मुझे प्यार करें या घृणा करें, लेकिन आपको मुझे वोट देना ही होगा। और यही हुआ है।

भारतवंशियों का समर्थन

भारतवंशी वोट अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में काफी तादाद में हैं और निर्णायक हैं और वे ट्रम्प के साथ हैं। 2016 में जहाँ 14 फीसदी भारतवंशी ट्रम्प के समर्थन में थें वहीं इस बार ये 22 फीसदी है। बिडेन के साथ आखिरी डिबेट में ट्रम्प ने प्रदूषण के मसले का जिक्र करते हुए भारत का नाम लिया था और कहा था कि भारत की हवा 'गन्दी' है। इस तरह के बयानों से भारतवंशियों को जरूर बुरा लगा होगा लेकिन उनके सपोर्ट में कोई फर्क आया हो ये कहना गलत होगा।

अमेरिका में सिखों की बड़ी तादाद है और वे ट्रम्प के साथ हैं। इसकी वजह है कोरोना काल में ट्रम्प द्वारा लघु और माध्यम व्यवसाइयों को सहायता पैकेज दिया जाना। इस पैकेज के अलावा ट्रम्प की नीतियों से छोटे व्यवसाइयों को बहुत मदद मिली है।

दूसरी ओर भारत के साथ बिडेन के रिश्ते बहुत करीबी नहीं हैं। वैसे ट्रम्प भी भारत के करीब नहीं हैं लेकिन गाहे बगाहे वे इस बात को दिखाने में कामयाब हो जाते हैं कि वे भारत के दोस्त हैं। बिडेन की पराजय की बड़ी वजह कमला हैरिस भी हो सकती हैं। वजह उनका भारत विरोधी और पाकिस्तान परस्त रुख है।

मध्य पूर्व के देशों और इजरायल के बीच शांति समझौते कुशनर की बदौलत ही हुए हैं

अमेरिकी चुनाव में पाकिस्तान मूल के लोगों के वोट कोई मायने नहीं रखते जबकि भारतवंशी वोट हमेशा भारी पड़ते हैं। ट्रम्प के दामाद जारेड कुशनर ने भारत और मध्य पूर्व के देशों के साथ बेहतरीन समझौते कराने में मदद की है। मध्य पूर्व के देशों और इजरायल के बीच शांति समझौते कुशनर की बदौलत ही हुए हैं और कुछ वर्गों से कुशनर को नोबेल शांति समझौता देने की वकालत की जा रही है। इसके अलावा भारत – अमेरिका नयूक्लीयर समझौते में भी कुशनर की भूमिका रही है।

donald-trump-america donald-trump-america (Photo by social media)

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राष्ट्रवादी नीतियां

राजनीति में प्रायः दो ही तरह की लडाइयां होती हैं- पेट की और नाक की। अमेरिका में पेट की लड़ाई का सवाल ही नहीं उठता है। लेकिन नाक की लड़ाई बहुत मायने रखती है। ये सुप्रीमेसी का मामला है जिससे हर अमेरिकी जुडा हुआ है।

वैसे तो नाक की लड़ाई में कुछ करना भी नहीं होता है। ये लड़ाई आसान भी नहीं रह जाती जब एक सुपर पावर को नीचे गिराने की कोशिश में चीन लगा हो। लेकिन जिस तरह चीन के साथ डोनाल्ड ट्रम्प ने सामरिक और राजनयिक फैसले लिए उससे भी उन्होंने अमेरिकी लोगों का दिल जीता है।

ट्रम्प ने अपने पूरे कार्यकाल में कुछ किया हो न किया हो लेकिन अमेरिका की नाक की लडाई को ठीक से लड़ा है और इस लडाई में ट्रम्प ने हमेशा बाजी मारी है। ट्रम्प का नारा ही रहा है- मेक अमेरिका ग्रेट अगेन।

नतीजा जो हो, आसानी से कोई मानेगा नहीं

अमेरिका के चुनाव के नतीजे चाहे जो आयें लेकिन कोई भी उम्मेदवार हार जीत की बात मानेगा ही नहीं और बात अदालतों तक जायेगी। इसके लिए दोनों पक्षों ने पूरी तैयारी करके रखी हुई है। हजारों वकीलों की फ़ौज खाड़ी हुई है।

पोलिटिकल थ्रिलर

कोरोना महामारी, डोनाल्ड ट्रम्प की हैरतंगेज स्टाइल, ईरान की नापाक हरकतें, डमी बैलट बॉक्स और रहस्यमयी ईमेल - इन सबने अमेरिका के चुनाव को एक पोलिटिकल थ्रिलर बना दिया है। डेमोक्रेटिक पार्टी के सीनेटर अभी से अमेरिकी सेना से आग्रह कर रहे हैं कि वह शांतिपूर्ण सत्ता परिवर्तन में मदद करे। हालात ये हैं कि अमेरिकी के मात्र पांच फीसदी लोगों का मानना है कि इस बार का चुनाव निष्पक्ष और स्वतंत्र होगा। चुनाव के बाद हिंसा की भी आशंका है, कुछ लोग चुनाव बाद किसी अनहोनी की आशंका में खाने-पीने की चीजें और पानी का स्टॉक जमा करके रख ले रहे हैं।

दरअसल, अमेरिका में लोगों को इतने बड़े पैमाने पर चुनावी विवाद का अनुभव नहीं है, वहां कभी ऐसे हालात नहीं बने हैं जैसे इस बार के हैं। इस बार सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि डेमोक्रेट्स और उसके समर्थन वाला मीडिया इस प्रचार में पूरी ताकत से लगा हुआ है कि अगर ट्रम्प जीते तो वो फ्रॉड की बदौलत ही जीतेंगे। इस प्रचार से स्थितियां अभी से बहुत गरमायीं हुईं हैं।

हर चुनाव में कुछ व्यवधान-गड़बड़ी होती ही है

हर चुनाव में कुछ व्यवधान-गड़बड़ी होती ही है। कभी चुनाव कर्मी देर से पहुँचते हैं, बिजली कट जाती है, इलेक्ट्रॉनिक मशीन फेल हो जाती है - कुछ भी व्यवधान आ सकता है। 2018 में फीनिक्स में एक पोलिंग स्टेशन की बिल्डिंग चुनाव से एक दिन पहले कुर्क हो गई थी जिसके कारण काफी अफरातफरी मच गयी थी।

ऐसी घटनाएँ होने पर अधिकारी कोर्ट की शरण में जा कर वोटिंग का समय बढ़ाने की मांग कर सकते हैं। यदि आखिरी दिन मतदाताओं की लम्बी लाइनें लगतीं है 3 नवम्बर को सम्भवतः देर रात या अगले दिन वोटिंग बंद घोषित की जा सकती है। वैसे तो ऐसी छिटपुट घटनाओं से काउंटिंग में कोई असर नहीं पड़ता लेकिन जब हालात नार्मल नहीं हैं तो कोई समस्या क्या रूप ले लेगी, कोई नहीं बता सकता।

जीत का झूठा दावा

एक सम्भावना ये भी बनती है कि प्रत्याशी नतीजा आने से पहले ही अपने को विजयी घोषित कर दें। वोटिंग बंद होने के बाद मीडिया, विदेशी ताकतों और प्रत्याशियों में कयास और अपने अपने दावों को बताने की होड़ लगनी तय है। एरिज़ोना और फ्लोरिडा जैसे राज्यों में जिस पार्टी के प्रत्याशी को बढ़त मिलेगी वो पार्टी और उसके समर्थक अपनी जीत की घोषणा कर सकते हैं। डेमोक्रेट्स और उसके समर्थक मीडिया की आशंका है कि शुरुआती परिणामों में अच्छी स्थिति होने पर ट्रम्प जरूर अपने को विजयी घोषित कर देंगे। बाद के परिणाम अगर उनके खिलाफ गए तो वे फ्रॉड का आरोप लगा सकते हैं। डेमोक्रेट समर्थक मीडिया इस तरह से प्रोजेक्ट कर रहा मानो ट्रम्प का जीतना असंभव है और अगर वे जीतते हैं तो जरूर कोई गड़बड़ी हुई होगी।

नार्थ कैरोलिना और फ्लोरिडा इस चुनाव में बहुत महत्वपूर्ण राज्य हैं। इन दोनों राज्यों में 3 नवम्बर की रात में ही नतीजा आने का अनुमान है। इनमें से किसी भी राज्य में अगर बिडेन को शुरुआती जीत मिलती है तो इसका मतलब होगा कि एक - दो दिन में बिडेन ही स्पष्ट विजेता होने जा रहे हैं। लेकिन अगर ट्रम्प इन राज्यों में जीतते हैं तो इसका मतलब बिडेन की हार नहीं होगी। इसका मतलब होगा कि देश को अनिश्चितता के लम्बे दौर से गुजरना होगा। और जितनी देर होगी उतनी ही संभावना होगी कि अन्य समस्याएं पैदा हो जाएँ।

सोशल मीडिया की तैयारी

चुनाव नतीजों के बाद या पहले कोई पक्ष झूठे दावे न करे इसके लिए सोशल मीडिया साइट्स ने तैयारी कर रखी है। झूठे दावों वाली पोस्ट को ब्लाक करने के लिए फेसबुक औत ट्विटर ने तंत्र बनाने की बात कही है। फेसबुक ने कहा है कि वह चुनाव में जीत वाले विज्ञापन ब्लाक कर देगा जब तक कि स्वतंत्र पर्यवेक्षक नतीजों के बारे में हामी न भर दें।

सशस्त्र ग्रुप गोलबंद होंगे

ये साफ़ है कि चुनाव नतीजे को कोई भी पक्ष बिना किसी समस्या के स्वीकार नहीं करेगा। जो पक्ष पीछे होगा वो सभी तरह की कानूनी राय जरूर लेगा। डेमोक्रेटिक प्रत्याशी जो बिडेन पहले से ही सैकड़ों वकीलों को तैयार रखे हुए हैं। हारने वाला पक्ष महीन से महीन कानूनी पेंच या चूक ढूंढेगा ताकि नतीजों को चैलेन्ज किया जा सके। शुरुआती 24 घंटों में सड़कों से लेकर ऑनलाइन – दोनों जगह संघर्ष की आशंका है। श्वेत और अश्वेत सशस्त्र गुट बीते दिनों में अपनी ताकत का अहसास करा चुके हैं और चुनाव नतीजे के बाद स्थिति बिगड़ने की ही आशंका है। अगर सड़कों पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए तो उसे काबू कर पाना मुश्किल होगा क्योंकि दोनों ही पक्ष आग में घी डालते रहेंगे।

हैकरों का हमला

चुनाव में साइबर हमलों की बार बार चेतावनी दी गयी है और ये साफ़ हो गया है कि ईरान और रूस अपनी हरकतों में जुटे हुए हैं। सबसे बुरी स्थिति ये होगी कि साइबर हैकर वोटों में ही हेरफेर कर दें। इससे बड़ा ख़तरा उन ग्रुप्स से है जो ये काल्पनिक रूप से बता रहे हैं कि उन्होंने वोटों को पहले ही बदल दिया है। विदेशी और देशी ताकतें अमेरिकी जनता का अपने ही लोकतंत्र में भरोसा डगमगाने की कोशिश कर सकते हैं। ये तत्व दरअसल किसी प्रत्याशी को हराना या जिताना नहीं चाहते बल्कि अमेरिकी चुनाव व्यवस्था को ही ध्वस्त कर देना चाहते हैं।

जीत के रास्ते

ओपिनियन पोल्स तो बताते रहे हैं कि डेमोक्रेटिक प्रत्याशी जो बिडेन का पलड़ा बहुत भारी है। इसके पीछे मुख्य कारण मिशिगन, पेन्सिलवेनिया और विस्कॉन्सिन राज्यों से मिला रहा समर्थन है। 2016 में इन तीनों राज्यों में डोनाल्ड ट्रम्प जीते थे। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इन हालातों के बावजूद ट्रम्प की जीत को नकारा नहीं जा सकता। लोग आम तौर पर ओपिनियन पोल में सही बात नहीं बताते और 2016 में इसका उदहारण सामने आ चुका है। जो लोग अनिर्णय की स्थिति में हैं वो नतीजों पर सबसे ज्यादा असर डालते हैं और ऐसे वोटरों का झुकाव इस बार डोनाल्ड ट्रम्प की तरफ दिख रहा है।

फ्लोरिडा और नार्थ कैरोलिना के नतीजे निर्णायक साबित होंगे और यहाँ ट्रम्प का पलड़ा भारी है

मिशिगन, पेन्सिलवेनिया और विस्कॉन्सिन में ट्रम्प के समर्थक वर्ग का का वोटर रजिस्ट्रेशन बहुत तेजी से बढ़ा है सो ये लोग पांसा पलट सकते हैं। फ्लोरिडा और नार्थ कैरोलिना के नतीजे निर्णायक साबित होंगे और यहाँ ट्रम्प का पलड़ा भारी है। अमेरिका के मिडवेस्ट में भारतीय समुदाय के काफी लोग हैं और विस्कॉन्सिन में सिखों की अच्छी खासी तादाद है। ये वर्ग ट्रम्प के साथ खड़ा है।

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चुनावी एक्सपर्ट्स का कहना है कि ट्रम्प को पक्के रिपब्लिकन राज्यों से 163 इलेक्टोरल वोट मिलना तय है जबकि बिडेन 260 इलेक्टोरल वोट पा सकते हैं, जिसमें मिशिगन और विस्कॉन्सिन राज्य शामिल हैं। लेकिन अगर ट्रम्प पिछली बार के सभी राज्यों के साथ साथ पेन्सिलवानिया, नार्थ कैरोलिना. एरिज़ोना और फ्लोरिडा जीत जाते हैं तो ट्रम्प 270 इलेक्टोरल वोट पा लेंगे और उनकी फतह हो जायेगी। ये समीकरण बहुत संभव है।

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