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हुर्रियत नेताओं की निष्क्रियता से पाक परेशान, नए नेतृत्व की तलाश में जुटा
जम्मू-कश्मीर में हुर्रियत कांफ्रेंस की कमजोर होती आवाज से पाकिस्तान परेशान हैं। घाटी में अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के बाद पाकिस्तान की साजिशें कामयाब होती नहीं दिख रहे हैं।
नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर में हुर्रियत कांफ्रेंस की कमजोर होती आवाज से पाकिस्तान परेशान हैं। घाटी में अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के बाद पाकिस्तान की साजिशें कामयाब होती नहीं दिख रहे हैं। घाटी के वरिष्ठ अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी के हुर्रियत कांफ्रेस से इस्तीफा देने के बाद से ही पाकिस्तान परेशान है और हुरिर्यत कांफ्रेस का नेतृत्व करने के लिए नए चेहरे की तलाश कर रहा है।
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अनुच्छेद 370 के खात्मे का विरोध नहीं
दरअसल पाकिस्तान की परेशानी का बड़ा कारण है कि पिछले साल 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के बाद हुरिर्यत काफी हद तक कमजोर और निष्क्रिय बना हुआ है। पाकिस्तान को उम्मीद थी कि अलगाववादी संगठन की ओर से भारत सरकार के बड़े कदम का एकजुट होकर प्रबल विरोध किया जाएगा मगर संगठन की निष्क्रियता से पाकिस्तान निराश हुआ है और उसके लिए नए नेतृत्व की तलाश कर रहा है।
युवा नेताओं को आगे लाने की कोशिश
गृह मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है कि पाकिस्तान की नजर खासतौर पर युवा नेताओं पर है और वह युवा नेताओं को आगे आने के लिए मनाने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान की कोशिश खासतौर पर ऐसे नेताओं को आगे लाने की है जो लश्कर व अन्य आतंकी संगठनों का हिस्सा रहे हैं। पाकिस्तान हुरिर्यत की नई टीम बनाकर घाटी में एक बार फिर अलगाववादी आंदोलन को हवा देने की कोशिश में जुटा हुआ है।
गिलानी दे चुके हैं इस्तीफा
अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने जून में संगठन से इस्तीफा दे दिया था जबकि वे इसके आजीवन अध्यक्ष थे। उनके इस कदम पर सबको हैरानी भी हुई थी। गिलानी को हाल ही में पाकिस्तान सरकार की ओर से पाक का सर्वोच्च सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान भी दिया गया था। हालांकि यह सम्मान हासिल करने के लिए गिलानी पाकिस्तान नहीं गए थे। गिलानी ने अपने इस्तीफे में अपने अलगाववादी साथियों पर कुनबापरस्ती और राजनीतिक भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं।
मजबूती से गुस्सा जताने वालों की तलाश
ऑल इंडिया हुरिर्यत कांफ्रेंस दो धड़ों में बंटा हुआ है। एक का नेतृत्व गिलानी के हाथ में था तो दूसरे का नेतृत्व मीरवाइज उमर फारूक के हाथ में। गिलानी की अगुवाई वाले धड़े को उग्र विचारों का माना जाता रहा है जबकि फारूक की अगुवाई वाला धड़ा थोड़ा नरम विचारों वाला रहा है। फारूक वाला धड़ा भी पिछले एक साल से चुप्पी साधे हुए हैं।
गृह मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक पाकिस्तान को ऐसे चेहरों की तलाश है जो घाटी में केंद्र सरकार के विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने के फैसले के खिलाफ मजबूती से गुस्सा जता सकें। जम्मू कश्मीर में नए डोमिसाइल लॉ से भी पाकिस्तान में खासी बेचैनी है।
मौजूदा नेताओं में नहीं दिख रही ताकत
जम्मू-कश्मीर में पूर्व के कई आंदोलनों में हुर्रियत कांफ्रेंस ने अग्रणी भूमिका निभाई है और गिलानी और मीरवाइज के नेतृत्व वाले दोनों गुटों ने बढ़-चढ़कर विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लिया था। हालांकि अनुच्छेद 370 खत्म करने के फैसले से पहले ही ज्यादातर अलगाववादी नेताओं को घरों में कैद कर दिया गया था मगर पाकिस्तान को इस बात का बखूबी एहसास हो गया है कि इन नेताओं में अब घाटी में अपनी ताकत दिखाने की क्षमता नहीं रह गई है। इसी कारण पाकिस्तान नेतृत्व के लिए नए चेहरों की तलाश में जुटा हुआ है।
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फारूक गुट की एक साल बाद बैठक
जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के करीब एक साल बाद गत जुलाई में मीरवाइज उमर फारूक के गुट ने बैठक की थी और भारत-पाकिस्तान और घाटी के लोगों से बातचीत के जरिए कश्मीर समस्या का समाधान करने की अपील की थी। फारूक गुट ने बैठक के बाद बयान जारी कर कश्मीर संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में काम करने की बात कही थी।
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