अभी-अभी पाकिस्तान से परवेज मुशर्रफ की फांसी की सजा पर आई ये बड़ी खबर

दरअसल पाकिस्तान के 72 वर्ष के वजूद में लगभग आधे समय तक सेना ने शासन किया है जिसमें तीन अन्य जनरलों- अयूब खान, याह्या खान (जिन्होंने अयूब खान से कमान संभाली) और जिया-उल-हक ने भी जबरन सत्ता पर कब्जा किया और संविधान का उल्लंघन किया।

Aditya Mishra
Published on: 28 Dec 2019 3:33 PM GMT
अभी-अभी पाकिस्तान से परवेज मुशर्रफ की फांसी की सजा पर आई ये बड़ी खबर
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इस्लामाबाद: लाहौर हाईकोर्ट (एलएचसी) ने पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की वह याचिका लौटा दी, जिसमें उन्होंने राजद्रोह मामले में सुनाई गई सजा को चुनौती दी थी।

डॉन न्यूज के मुताबिक, ख्वाजा अहमद तारिक रहीम और अजहर सिद्दीकी के एक कानूनी पैनल ने शुक्रवार को अर्जी दायर की थी, जिसमें राजद्रोह की शिकायत से शुरू होने वाले सभी कार्यो, विशेष ट्रायल कोर्ट की स्थापना और इसकी कार्यवाही को चुनौती दी गई थी।

एलएचसी के मुख्य न्यायाधीश सरदार मुहम्मद शमीम खान द्वारा हाल ही में गठित तीन न्यायाधीशों वाली पूर्ण पीठ 9 जनवरी, 2020 को मुख्य याचिका को देखने वाली है।

एडवोकेट सिद्दीकी ने डॉन न्यूज को बताया कि एलएचसी रजिस्ट्रार के कार्यालय ने शुक्रवार को याचिका वापस कर दी, क्योंकि शीतकालीन अवकाश के दौरान पूर्ण पीठ उपलब्ध नहीं थी।

उन्होंने कहा कि याचिका जनवरी के पहले सप्ताह में फिर से दाखिल की जाएगी। विशेष अदालत ने 17 दिसंबर को अपने फैसले की घोषणा की थी और मुशर्रफ को 2-1 के बहुमत के साथ मौत की सजा सुनाई थी।

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क्या है ये पूरा मामला

दरअसल पाकिस्तान के 72 वर्ष के वजूद में लगभग आधे समय तक सेना ने शासन किया है जिसमें तीन अन्य जनरलों- अयूब खान, याह्या खान (जिन्होंने अयूब खान से कमान संभाली) और जिया-उल-हक ने भी जबरन सत्ता पर कब्जा किया और संविधान का उल्लंघन किया। लेकिन इनमें से किसी को भी ट्रायल का सामना नहीं करना पड़ा। लिहाजा मुशर्रफ पहले सैन्य शासक हैं जिन पर मुकदमा चलाया गया और देशद्रोह का दोषी पाया गया।

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टॉप सैन्य लीडरशिप सकते में

लेकिन इस फैसले पर सेना ने गुस्सैल प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि ऐसा प्रतीत होता है कि कानूनी प्रक्रिया को अनदेखा किया गया है। सेना की इस प्रतिक्रिया से यह अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि मुशर्रफ फांसी के फंदे पर लटकने से बच जाएंगे और उन्हें दुबई से पाकिस्तान लाने के लिए विशेष प्रयास नहीं किया जाएगा।

लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि मुशर्रफ से सेना का विशेष लगाव है। हां, यह संभव है कि उनके कुछ चाहने वाले अब भी सेना में मौजूद हों। दरअसल, इस प्रतिक्रिया को सेना बनाम सिविलियन की दृष्टि से देखना गलत न होगा। सेना किसी भी सूरत में प्रशासनिक कार्यों में अपने दखल पर विराम लगा देखना नहीं चाहती, वह चाहे अदालत के जरिये ही क्यों न हो।

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Aditya Mishra

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