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नेपाल में सियासी संकट गहराया, मध्यावधि चुनाव पर ओली के फैसले को SC में चुनौती
प्रधानमंत्री ओली ने संसद भंग करने का अचानक और अप्रत्याशित फैसला लेकर विपक्ष के साथ ही अपनी पार्टी के असंतुष्ट गुट को भी चौंका दिया है। ओली की जल्दबाजी के पीछे प्रचंड गुट का दबाव माना जा रहा है।
काठमांडू: नेपाल में संसद भंग करने की प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की चाल से पैदा हुआ सियासी संकट गहरा गया है। सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) में चल रहे सत्ता संघर्ष के बीच ओली ने बड़ी चाल चलते हुए असंतुष्टों और विपक्षी दलों को चौंका दिया है।
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संसद भंग करने की ओली की सिफारिश को राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने तत्काल मंजूरी भी दे दी जिसके बाद देश में अगले साल 30 अप्रैल से 10 मई के बीच चुनाव की घोषणा की गई है। ओली सरकार का यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की चौखट तक पहुंच चुका है और इस फैसले को चुनौती दी गई है।
ओली ने इस कारण दिखाई जल्दबाजी
प्रधानमंत्री ओली ने संसद भंग करने का अचानक और अप्रत्याशित फैसला लेकर विपक्ष के साथ ही अपनी पार्टी के असंतुष्ट गुट को भी चौंका दिया है। ओली की जल्दबाजी के पीछे प्रचंड गुट का दबाव माना जा रहा है।
जानकार सूत्रों के अनुसार एनसीपी के असंतुष्ट प्रचंड गुट ने रविवार सुबह पीएम ओली के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया था। प्रचंड गुट ने राष्ट्रपति से संसद का विशेष सत्र बुलाने की भी मांग की थी।
इस बात की भनक मिलने के बाद ओली ने आनन-फानन संसद भंग करने की सिफारिश करके प्रचंड गुड को भी चौंका दिया।
अविश्वास प्रस्ताव को 90 सांसदों का समर्थन
प्रचंड गुट से जुड़े नेताओं का दावा है कि ओली के खिलाफ दिए गए अविश्वास प्रस्ताव को 90 सांसदों का समर्थन हासिल था। अविश्वास प्रस्ताव सांसद भीम रावल व घनश्याम भुसाल की ओर से संसद सचिवालय को सौंपा गया था।
ओली के फैसले के बाद विपक्ष के साथ ही एनसीपी के नेताओं ने भी ओली पर हमला बोला है। उनका कहना है कि ओली सरकार का फैसला असंवैधानिक है और इसे नहीं माना जाना चाहिए।
संसद का पिछला चुनाव 2017 में हुआ था और उसका कार्यकाल 2022 तक था, लेकिन इसी बीच ओली ने अप्रत्याशित कदम उठाकर हर किसी को चौंका दिया है।
विशेषज्ञों ने ओली के कदम को गलत बताया
हालांकि राष्ट्रपति कार्यालय ने पीएम ओली की संसद भंग करने की सिफारिश को संविधान के अनुरूप बताया है मगर विशेषज्ञों का कहना है कि नेपाली संविधान में कार्यकाल पूरा होने से पहले संसद भंग करने का प्रावधान ही नहीं है। राष्ट्रपति कार्यालय की ओर से जारी प्रेस नोट में कहा गया है कि कैबिनेट की नए चुनाव की सिफारिश पर अगले साल चुनाव कराने का फैसला किया गया है।
दूसरी ओर नेपाली संविधान के विशेषज्ञ भीमार्जुन आचार्य और पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई ने ओली सरकार के फैसले को 2015 में बने नेपाल के नए संविधान से पूरी तरह धोखा बताया है।
उन्होंने कहा कि नेपाल के नए संविधान में इस बात का प्रावधान किया गया है कि केवल सरकार के अल्पमत या प्रतिनिधि सभा के त्रिशंकु होने पर ही इसे भंग किया जा सकता है। मौजूदा समय में निश्चित रूप से ऐसे हालात नहीं थे। ऐसे में ओली सरकार का फैसला संविधान के अनुकूल नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट में तीन याचिकाएं दाखिल
यही कारण है कि अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर पहुंच गया है। ओली सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में तीन याचिकाएं दाखिल की गई हैं जिसमें संसद भंग करने की सिफारिश को संविधान के साथ धोखा बताया गया है।
ये याचिकाएं कंचन कृष्णन न्यौपाने, सुलभ खरेल और लोकेंद्र बहादुर ओली ने दायर की हैं। अब हर किसी की नजर इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी है। माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट में जल्द ही इस मामले पर सुनवाई होगी।
सात मंत्रियों ने दिया इस्तीफा
सत्तारूढ़ एनसीपी ने ओली सरकार के कदम को गलत बताते हुए उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की है। एनसीपी के अंदरूनी संघर्ष में दूसरे धड़े का नेतृत्व कर रहे पुष्प कमल दहल प्रचंड समर्थक सात मंत्रियों ने ओली की कैबिनेट से इस्तीफा भी दे दिया है। उनका कहना है कि इतना बड़ा फैसला लेने से पहले उन्हें विश्वास में नहीं लिया गया।
ओली के खिलाफ कार्रवाई के लिए बैठक
प्रधानमंत्री ओली के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के प्रस्ताव पर विचार के लिए सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की 22 दिसंबर को बैठक बुलाई गई है। केंद्रीय समिति की इस बैठक में ओली के खिलाफ कार्रवाई पर विचार किया जाएगा।
एनसीपी प्रवक्ता नारायण काजी श्रेष्ठ ने ओली के फैसले को तानाशाही भरा कदम करार दिया। उन्होंने कहा कि एनसीपी स्थायी समिति की बैठक में इस मामले पर चर्चा करेगी।
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एनसीपी के पास दो तिहाई बहुमत
नेपाल के प्रतिनिधि सभा के मौजूदा स्वरूप को देखा जाए तो 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में एनसीपी के 170 सदस्य हैं और एनसीपी को दो तिहाई बहुमत हासिल है। जानकारों का कहना है कि सरकार बनने की संभावना रहते प्रतिनिधि सभा को भंग नहीं किया जा सकता मगर 170 में से 90 सांसदों के खिलाफ होने का रुख भांपकर ओली ने संसद भंग करने की बड़ी चाल चली है। ओली सरकार के इस कदम से सत्तारूढ़ एनसीपी में खींचतान और तेज हो गई है। इसके साथ ही सियासी संकट भी गहरा गया है।
रिपोर्ट- अंशुमान तिवारी
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