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रूस रहा है मुश्किल घड़ी का साथी, अब भी उसी से उम्मीद

रूस के ऐतिहासिक विजय दिवस यानी विक्ट्री डे की परेड की खास माने होते हैं। ये परेड दूसरे विश्व युद्ध में सोवियत सेनाओं की विजय और पराक्रम की याद में आयोजित की जाती है।

Roshni Khan
Published on: 27 Jun 2020 1:35 PM IST
रूस रहा है मुश्किल घड़ी का साथी, अब भी उसी से उम्मीद
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लखनऊ: रूस के ऐतिहासिक विजय दिवस यानी विक्ट्री डे की परेड की खास माने होते हैं। ये परेड दूसरे विश्व युद्ध में सोवियत सेनाओं की विजय और पराक्रम की याद में आयोजित की जाती है। इस सैन्य समारोह और परेड में भारत की खास हिस्सेदारी होती है और हर साल भारत से विशिष्ट प्रतिनिधि इसमें शिरकत करते हैं। विक्ट्री डे परेड की इस बार 75वीं वर्षगांठ मनाई गई जिसमें रक्षामंत्री राजनाथ सिंह तो शामिल हुये ही, भारत की तीनों सेनाओं का 75 सदस्यीय दल भी परेड का हिस्सा बना। ये दोनों देशों की 72 साल के राजनयिक संबंध और प्रगाढ़ दोस्ती को दर्शाता है।

पहले सोवियत संघ और अब रूस, मुश्किल घड़ी में भारत के साथ खड़े रहे हैं। भारत को अब आगे भी रूस से बड़ी उम्मीदें हैं खासकर चीन से बढ़ते खतरे के समय में। रूस भी इस क्षेत्र में भारत को अपना खास सहयोगी मानता है लेकिन राजनीति और डिप्लोमेसी में स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होते सो इस दोस्ती के पीछे रूस के अपने हित भी हैं। रूस चाहता है कि चीन के खिलाफ उसके पक्ष में मजबूत लामबंदी रहे। इसके अलावा रूस इस क्षेत्र में अमेरिका का प्रभाव बढ्ने देना नहीं चाहता। इन दोनों उद्देश्यों के लिए रूस को भारत के सहयोग की भी जरूरत रही है।

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दोस्ती की शुरुआत

भारत और सोवियत संघ की दोस्ती की नींव 1950 के दशक में पड़ी थी। ये वो दौर था जब सोवियत संघ तीसरे विश्व यानी गरीब देशों के साथ करीबी रिश्ता बनाने की कोशिश में था। भारत से रिश्ते की शुरुआत तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की जून 1955 में मास्को यात्रा और इसके कुछ महीनों बाद सोवियत संघ के राष्ट्रपति निकिता ख्रुश्चेव की रिटर्न विजिट से हुई थी। अपनी यात्रा के दौरान ख्रुश्चेव ने ऐलान किया कि सोवियत संघ कश्मीर और गोवा पर भारत के अधिकार का समर्थन करता है। ख्रुश्चेव के समय में भारत को अच्छी ख़ासी आर्थिक और सैन्य मदद मिली।

इस दौर में सोवियत संघ ने चीन को एकदम नजरअंदाज किया और 1959 के सीमा विवाद तथा 62 के युद्ध में तटस्थ भूमिका निभाई। माना जाता है कि नेहरू को सोवियत साम्यवाद पसंद आया था और ये पसंदगी समय के साथ कांग्रेस पार्टी और भारतीय शासन में घुलमिल गई। भारत-सोवियत सम्बन्धों में तीन काल प्रमुख रहे हैं जिनमें दोनों देशों की लीडरशिप का अद्भुत समंजस्य रहा। ये थे जवाहरलाल नेहरू और निकिता खृश्चेव, इन्दिरा गांधी और लेओनिड ब्रेज़नेव, राजीव गांधी और मिखाइल गोर्बाचेव। इन तीनों काल खंडों में भारत – सोवियत मित्रता ने नए आयाम गढ़े।

मुश्किल घड़ी में भारत का साथ

-1962 में सोवियत संघ ने भारत को मिग 21 जेट युद्धक विमान दिये। पहले चीन ने ये विमान मांगे थे लेकिन सोवियत संघ ने उसे माना कर दिया।

-1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में शांति समझौता कराने में सोवियत संघ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

-1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के समय चीन के हस्तक्षेप की आशंका बनते देख भारत ने अगस्त 1971 में सोवियत संघ के साथ मैत्री एवं सहयोग की संधि की। तब भारत के विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह ने रूस जाकर वहां की सरकार के सामने भारत का पक्ष इतनी मजबूती से रखा कि रूस स्पष्ट रूप से भारत के समर्थन में आ गया।

-71 की लड़ाई में पाकिस्तान की नौसेना के समर्थन में अमेरिका ने बंगाल की खाड़ी में अपना सातवाँ बेड़ा भेज दिया था। इसके जवाब में रूस ने भारत के पक्ष में अपनी न्यूक्लियर पनडुब्बी भेज दी थी।

-70 के दशक में जनता पटरी की सत्ता और 1980 के दशक में इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी की सरकार के दौरान भी भारत – सोवियत संबंध पहले जैसे मजबूत बने रहे।

-सोवियत संघ के बिखराव के बाद भारत और रूस के बीच वर्ष 2000 में बड़ी राजनीतिक पहल की गई और रणनीतिक साझेदारी के समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। रूस के राष्ट्रपति पुतिन और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बीच ये समझौता हुआ था।

-आयरलैंड ने 22 जून 1962 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कश्मीर मसले को लेकर भारत के खिलाफ एक प्रस्ताव पेश किया था। इस प्रस्ताव का समर्थन का अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, चीन समेत आयरलैंड, चिली और वेनेजुएला ने भी किया था। इस दौरान रूस ने अपने 100वें वीटो का इस्तेमाल कश्मीर मुद्दे पर भारत के समर्थन में किया था।

-1961 में भी रूस ने भारत के लिए अपने 99वें वीटो का इस्तेमाल किया था। रूस ने ये वीटो गोवा मसले पर भारत के लिए किया था।

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सैन्य रिश्ते

भारत और सोवियत संघ या रूस के बीच सैन्य रिश्ते इस लेवल के थे कि भारत की ज़्यादातर सामरिक जरूरतें सोवियत संघ ही पूरा करता था। ये क्रम कई दशकों तक चला। मिसाल के तौर पर 2012 से 2016 के बीच भारत को शस्त्रों की कुल सप्लाई में रूस की हिस्सेदारी 68 फीसदी थी। जबकि अमेरिका की 14 फीसदी और इजरायल की 7.2 फीसदी हिस्सेदारी थी। नौसेना के फ्रिगेट्स, न्यूक्लियर पनडुब्बी, ब्रह्मोस मिसाइल, मिग और सुखोई जेट, मल्टीरोल ट्रांसपोर्ट विमान, ट्राइम्फ़ मिसाइल, एमआई इल्यूशिन हेलीकाप्टर, आदि तमाम सैन्य साजोसामान रूस से भारत को मिले हैं। इसके अलावा रिसर्च और डेवलपमेंट, संयुक्त युद्धाभ्यास, ट्रेनिंग के क्षेत्रों में भी भारत और रूस मिल कर काम करते आए हैं।

10 बिलियन डालर से ज्यादा का व्यापार

भारत और रूस के बीच व्यापार 10.17 बिलियन डॉलर से ज्यादा का है जिसके 2025 तक 30 बिलियन डालर तक पहुँचने की उम्मीद है। 2018 में 19 वें वार्षिक शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच आर्थिक क्षेत्र में सहयोग को और बढ़ावा देने के लिए प्रथम भारत-रूस रणनीतिक आर्थिक वार्ता आयोजित किया जाना सक्रियता का एक बिंदु था।

सहयोग और व्यापार

-अप्रैल 2019 को बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज और इंडिया इंटरनेशनल एक्सचेंज लिमिटेड ने मॉस्को एक्सचेंज के साथ एक समझौता किया। इससे निवेशकों और कंपनियों को एक दूसरे के एक्सचेंज मार्केट में आपस में जुड़ने में मदद मिलने की उम्मीद है।

-रूस ने अक्टूबर 2018 में सिंगल विंडो सर्विस शुरू की है। यह सेवा रूस में भारतीय कंपनियों के संचालन की सुविधा के लिए है। सिंगल विंडो सेवा आसानी से लघु और मध्यम यूनिट्स को एक-दूसरे के बाजारों में निवेश में मदद कर सकती है।

-रूस ने भारत को तेल, खनिज, फार्मास्यूटिकल्स, पेपर उद्योग और लॉजिस्टिक्स के क्षेत्र में सुदूर पूर्व में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया है।

-हीरे के क्षेत्र में भारत और रूस सहयोग कर रहे हैं। रूसी कंपनी अलरोसा ने 2018 में मुंबई में एक कार्यालय भी खोला। दूसरी ओर भारत का साइबेरियाई सोने की खान में 65 मिलियन डॉलर का निवेश है।

9 अगस्त का खास महत्व

भारत-रूस के संबंधों के इतिहास में 1971 में 9 अगस्त का दिन एक ऐसा दिन था, जिसने दोनों देशों के रिश्तों के स्वरूप को दशकों तक निर्धारित किया और तत्कालीन विश्व के समीकरण में आमूल परिवर्तन कर दक्षिण एशिया के देशों की विदेश नीति को प्रभावित किया। यह वह समय था, जब भारत के खिलाफ अमेरिका, पाकिस्तान और चीन का गठबंधन मजबूत होता जा रहा था और तीन दिशाओं से घिरे भारत की सुरक्षा को गंभीर खतरा महसूस होने लगा था। ऐसे में सोवियत विदेश मंत्री अंद्रेई ग्रोमिको भारत आए और 1971 को आज ही के दिन उन्होंने भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह के साथ सोवियत-भारत शांति, मैत्री और सहयोग संधि पर हस्ताक्षर किए। यह संधि दोनों देशों के दोस्ताना संबंधों में एक मील का पत्थर रही।

नेताओं को होती थी फंडिंग

भारत और सोवियत संघ सम्बन्धों को लेकर तमाम विवाद भी रहे हैं। सीआईए की 1985 की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारतीय नेताओं और राजनीतिक दलों को अपने पक्ष में प्रभावित करने के लिए सोवियत संघ ने भारी मात्रा में पैसा खर्च किया था। सीआईए के अनुसार इन्दिरा गांधी के शासनकाल में सोवियत संघ से कांग्रेस के 40 फीसदी सांसदों को मोटी रकम दी जाती ताकि भारतीय नीतियों को अपने पक्ष में प्रभावित किया जा सके। ये सिलसिला राजीव गांधी के शासन काल तक चलता रहा। सीआईए की 24 पेज की इस रिपोर्ट में बताया गया था कि सोवियत संघ से सीपीआई और सीपीएम को भी फंडिंग होती थी।

रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस के कई नेता व्यापारी भी थे जो सोवियत संघ के साथ बिजनेस करते थे। सन 85 की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि तीन दशक से सोवियत संघ ने भारत में बड़े पैमाने पर प्रचार और दुष्प्रचार करने की क्षमता बना ली है। इस काम में तमाम अखबारों और समाचार एजेंसियों की मदद ली जाती थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के 40 से 50 पत्रकारों के जरिये सोवियत संघ ये काम करता रहा है। इनके जरिये सोवियत संघ के काम की खबरें, लेख आदि प्रकाशित कारवाई जातीं हैं।

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पाकिस्तान से बढ़ रहीं नज़दीकियाँ

रूस और भारत के रिश्ते काफी पुराने हैं लेकिन पिछले कुछ वक्त में जिस तरह से मॉस्को इस्लामाबाद के नजदीक आया है उसने भारत की चिंता बढ़ा दी है। पिछले छह वर्षों में रूस और पाकिस्तान के बीच बहुत कुछ बदला है और दोनों अपने संबंधों का विस्तार करने में लगे हैं। रूस ने भारत से दोस्ती के चलते पाकिस्तान को हथियारों की बिक्री पर रोक लगाई हुई थी लेकिन 2014 में उसने अपना फैसला बदल दिया। इस्लामाबाद भी तेजी से रूस के साथ अपने संबंधों का विस्तार करना चाहता है और इसके लिए वह चीन के दिखाए रास्ते पर आगे बढ़ रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान की योजना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को यूरेशियन आर्थिक संघ के साथ जोड़ने की है। इसके अलावा पाकिस्तान ग्वादर बंदरगाह की क्षमता का विस्तार करने की योजना पर भी काम कर रहा है।

रूस कथित तौर पर पाकिस्तान के साथ समझौते के लिए तैयार हो गया है और उसने गैस पाइपलाइन, बिजली सहित अन्य ऊर्जा परियोजनाओं में भागीदारी की इच्छा जताई है। 2019 में रूस ने पाकिस्तान के ऊर्जा क्षेत्र में $14 बिलियन के निवेश की घोषणा की थी। रूस और पाकिस्तान को एक साथ रखने में अफगानिस्तान की भी अहम् भूमिका है। दरअसल, अफगान संघर्ष में रूस की गहरी रुचि रही है, इसलिए वह पाकिस्तान के साथ सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ है। सैन्य सामग्री बेचने के अलावा रूस अब पाकिस्तानी सैनिकों के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास भी कर रहा है।

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