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लाखों लाशों की सड़क: एक हाईवे के लिए इतनी मौतें, जिसने देखा वो कांप उठा
रूस के कोलयमा हाइवे रोड पर एक बार फिर से इंसानी हड्डियां और कंकाल मिले हैं। इस बारे में स्थानीय सांसद निकोलय त्रूफनोव ने कहा कि सड़क पर हर जगह पर बालू के साथ इंसान की हड्डियां बिखरी पड़ी हुई हैं। ये कितना भयावह नजारा है, मैं इसका वर्णन नहीं कर सकता हूं।
नई दिल्ली। दुनियाभर में रूस के पू्र्वी इलाके में स्थित कोलयमा हाइवे इन दिनों फिर से चर्चा में है। 2,025 किमी लंबा ये हाइवे रूस के इरकुटस्क इलाके में स्थित है। ऐसे में इस उधर, सड़क के अंदर से इंसानी हड्डियां निकलने के बाद स्थानीय पुलिस ने इसकी जांच शुरू कर दी है। चलिए बताते हैं आपको हड्डियों की सड़क के नाम से मशहूर इस हाइवे की कंपा देने वाली खौफनाक कहानी।
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10 लाख लोगों की जान
ऐेसे में बताया जा रहा है कि ठंड के मौसम में बर्फ से जम जाने वाले इस इलाके में सड़क पर गाड़ियां न फिसलें। जिसके चलते इंसानी हड्डियों को बालू के साथ मिलाकर उसके ऊपर डाला गया है। स्टालिन के समय में बनाए गए इस हाइवे के निर्माण की कहानी बहुत ही भयावह है। जिसमें ढाई लाख से लेकर 10 लाख लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।
बताया जा रहा है कि हाइवे पश्चिम में निझने बेस्टयाख को पूर्व में मगडान से जोड़ता है। एक समय में कोलयमा तक केवल समुद्र या प्लेन के जरिए ही पहुंचा जा सकता था। वर्ष 1930 के दशक में सोवियत संघ में स्टालिन के तानशाही के बीच इस हाइवे निर्माण शुरू हुआ। इस दौरान सेववोस्तलाग मजदूर शिविर के बंधुआ मजदूरों और कैदियों की मदद से वर्ष 1932 में इसका निर्माण शुरू हुआ।
सूत्रों से सामने आई रिपोर्ट के अनुसार, इस हाइवे को बनाने में गुलग के 10 लाख कैदियों और बंधुआ मजदूरों का इस्तेमाल किया गया था। इन कैदियों में साधारण दोषी और राजनीतिक अपराध के दोषी दोनों ही तरह के लोग शामिल थे। इनमें से कई ऐसे कैदी भी थे, जो सोवियत संघ के बेहतरीन वैज्ञानिक भी थे।
फोटो-सोशल मीडिया
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10 साल तक जेल की सजा
इनमें रॉकेट वैज्ञानिक सर्गेई कोरोलेव भी थे जो इस कैद के दौरान जिंदा रहे और उन्होंने वर्ष 1961 में रूस को अंतरिक्ष में पहला इंसान भेजने में मदद की। इन्हीं कैदियों में महान कवि वरलम शलमोव भी थे जिन्होंने कोलयमा कैंप में 15 जेल की सजा काटी।
उन्होंने इस कैंप के बारे में लिखा था, 'वहां पर कुत्ते और भालू थे जो इंसान से ज्यादा बुद्धिमानी और नैतिकता के साथ व्यवहार करते थे। उन्होंने अपनी किताब में लिखा था, तीन सप्ताह तक खतरनाक तरीके से काम, ठंड, भूख और पिटाई के बाद जानवर बन जाता था।
इस किस्से की गवाह कोलयमा के पास 10 साल तक जेल की सजा काटने वाली 93 साल की एंटोनीना नोवोसाद कहती हैं कि सड़क को बना रहे कैदियों को कटीले तार के दूसरी ओर गिरे बेरी के दाने इकट्ठा करने पर उन्हें गोली मार दी जाती थी। मरे हुए कैदियों को वहीं सड़क के अंदर ही दफन कर दिया जाता था।
इस इलाके में भेजे जाने वाले कैदियों के वापस लौटने का प्रतिशत केवल 20 था। जो लोग इस शिविर से भागते भी थे, वे केवल 2 सप्ताह तक ही जिंदा रह पाते थे। इस दौरान या तो वे ठंड से मर जाते थे या भालू के हमले से या फिर भूख से मर जाते थे।
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