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इस गजब के जुगाड़ से कोरोना रोकने की जुगत में वैज्ञानिक, बढ़ी उम्मीद

कोरोना को हराने के लिए वैज्ञानिक लगातार कोशिश कर रहे हैं। दुनिया के कई देश इससे लड़ने के लिए दवा बनाने का काम तेजी से कर रहे हैं। हालांकि अब...

Ashiki
Published on: 20 April 2020 6:48 AM GMT
इस गजब के जुगाड़ से कोरोना रोकने की जुगत में वैज्ञानिक, बढ़ी उम्मीद
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नई दिल्ली: कोरोना को हराने के लिए वैज्ञानिक लगातार कोशिश कर रहे हैं। दुनिया के कई देश इससे लड़ने के लिए दवा बनाने का काम तेजी से कर रहे हैं। हालांकि अब वैज्ञानिकों को एक नई जुगत दिखाई दे रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार, लोगों को डिकॉय प्रोटीन (लुभाने वाले प्रोटीन) का इंजेक्शन लगाकर इसका संक्रमण रोका जा सकता है। क्योंकि 2002 के सार्स वायरस को भी इसी से रोका गया था। यूनिवर्सिटी ऑफ लिसेस्टर के शोधकर्ताओं ने इसके लिए काम शुरू कर दिया है।

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वायरस की नकल लुभाएगी वायरस को

वैज्ञानिकों का मानना है कि कोरोना वायरस फेफड़ों और वायु मार्ग की कोशिकाओं की सतह पर रिसेप्टर (ग्राही) के द्वारा शरीर में प्रवेश करता है, जिसे एसीई-2 रिसेप्टर कहते हैं। वायरस रक्त प्रवाह में प्रवेश द्वार उपलब्ध कराने के साथ संक्रमण को सुगम बनाता है। अब वैज्ञानिक चाहते हैं कि वायरस को लुभाने के लिए इसकी ‘नकल’ इंजेक्ट की जाए, जिससे वायरस फेफड़ों के ऊतकों तक आने की बजाय एक दवा से चिपक जाए।

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वायरस के लक्षण विकसित होने से रुकते हैं

यूनिवर्सिटी ऑफ लिसेस्टर के रिसर्चर्स ने ऐसा प्रोटीन विकसित करने की दिशा में काम शुरू किया है, जो न सिर्फ एसीई-2 का फेक हो बल्कि वायरस के लिए और भी ज्यादा आकर्षित करने वाला हो। एक रिपोर्ट के अनुसार, इसके पीछे सिद्धांत है कि यदि वायरस शरीर में प्रवेश करेगा तो एसीई-2 की नकल वायरस को भ्रमित कर देगी और यह उसे सोख लेगा। इससे कोरोना के लक्षण विकसित होने की रोकथाम होगी। दवा करने के इस तरीके को इस बड़ी महामारी के खिलाफ उम्मीद की तरह देखा जा रहा है।

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कुछ इस तरह रोकेगा मामले

कुछ अन्य वैज्ञानिक यह भी कोशिश कर रहे हैं कि कोरोना वायरस के लिए प्रभावी तौर पर रास्ता ही बंद करने को एसीई-2 से ही छुटकारा पा लिया जाए। लेकिन इसके खतरनाक साइड इफेक्ट हो सकते हैं।प्रोफेसर निक ब्रिंडल कहते हैं, ‘हमारा लक्ष्य है कि वायरस को बांधने के लिए एक आकर्षक डिकॉय प्रोटीन बनाकर उसकी संक्रमण क्षमता को रोक दे और कोशिकाओं के सतह पर मौजूद रिसेप्टरों के कार्य को संरक्षित कर दें।’ दरअसल, फेफड़े की कोशिकाओं के रिसेप्टरों तथा अन्य ऊतकों को हाइजैक कर वायरस पूरे शरीर में फैल जाता है और रोग पैदा करता है। ऐसे में अगर यह तरीका कामयाब रहा तो दुनिया भर में फैले इस घातक रोग के मामलों को रोकने की संभावना पैदा होगी।

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पहले चरण में ही वायरस रुक जाएंगे

स्वीडन के कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट तथा कनाडा के यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया (यूबीसी) के शोधकर्ताओं को इस अवधारणा के सकारात्मक प्रारंभिक परिणाम मिले हैं। टीम ने लैब में मानव कोशिकाओं में आनुवंशिक रूप से संवर्धित एसीई-2 का ‘घुलनशील’ रूप भी इस्तेमाल किया है, जिसे एचआरएस एसीई-2 कहा है। यह वायरस को जकड़ लेता है और एसीई-2 के मार्ग को बाधित कर देता है, जिससे प्रारंभिक चरण में वायरस का बढ़ना रुक जाता है। सेल जर्नल में प्रकाशित शोध में बताया गया है कि एचआरएस एसीई-2 सार्स-कोविड वायरस-2 की वृद्धि रोक देता है, जो सेल कल्चर में 1-5 हजार गुना तक कम हो सकता है।

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रिसर्च को बेचैन हैं वैज्ञानिक

वैज्ञानिक जर्नल सेल में मार्च में जर्मन शोधकर्ताओं के लेख के अनुसार, 2002 के सार्स आउटब्रेक के दौरान भी पाया कि सार्स वायरस के भी मानव शरीर को भेदने में ये रिसेप्टर काफी अहम रहे। उल्लेखनीय है कि सार्स और कोरोना वायरस आपस में बहुत ही करीबी हैं। एसीई-2 रिसेप्टर वायरस का एंट्री प्वाइंट है, इसलिए वैज्ञानिक इसे ही वायरस को रोकने के लिए इस हथियार को बनाने के तरीके खोजने के लिए बेचैन हैं।

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चूहे में सफल हो चुका है एसीई-2

एसीई-2 से मुक्त चूहे में सार्स वायरस के संक्रमण से सांस की समस्या पैदा हो गई। यहां यह उल्लेखनीय है कि सार्स और कोविड-19 एक जैसे ही हैं। फिलहाल दुनिया भर में कोविड-19 पर सैकड़ों शोध हो रहे हैं और उन्हीं से संभवत: कोई स्पष्ट तस्वीर उभरे। वैसे, यूनिवर्सिटी ऑफ लिसेस्टर के शोधकर्ता अगले 12 सप्ताह में अपने ट्रायल के परिणामों की उम्मीद कर रहे हैं।

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