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इस शख्स की वजह से पाकिस्तान में है सिखों का पवित्र करतारपुर गुरुद्वारा.......
आज से अब सिख श्रद्धालु करतारपुर जाकर सिखों के इस पवित्र धाम का दर्शन कर पाएंगे। श्रद्धालुओं का पहला जत्था रवाना हो चुका है। जिस पवित्र धाम के दर्शन के श्रद्धालु इतने उत्साहित थे। जानते हैं करतारपुर गुरुद्वारा सिखों के लिए क्यों इतना पवित्र है ...
जयपुर :आज से अब सिख श्रद्धालु करतारपुर जाकर सिखों के इस पवित्र धाम का दर्शन कर पाएंगे। श्रद्धालुओं का पहला जत्था रवाना हो चुका है। जिस पवित्र धाम के दर्शन के श्रद्धालु इतने उत्साहित थे। जानते हैं करतारपुर गुरुद्वारा सिखों के लिए क्यों इतना पवित्र है ...
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गुरू नानक देव जी के 550वीं जयंती पर सिखों श्रद्धालुओं के लिए करतारपुर कॉरिडोर खुल गया है। सिखों के इस पवित्र धाम का दर्शन पहले दुर्लभ था लेकिन अब नहीं। पहले लोग करतारपुर के दर्शन दूरबीन से करते थे।
कहते हैं कि सिखों के प्रथम गुरू नानक देव जी जीवन के आखिरी समय में इसी स्थान पर ज्योति में समा गए थे। उसी समय गुरू नानक देव की स्मृति में यहां पर गुरुद्वारे का निर्माण किया गया था। भारत-पाक के बंटवारे के बाद यहां पर जाने के लिए भारतीयों को मश्किलों का सामना करना पड़ता था। करतारपुर साहिब पाकिस्तान के नारोवाल जिले में भारतीय सीमा से 3 किमी दूरी पर है।
जीवन के 17 साल दिए
नानक देव ने अपनी सभी यात्राओं को पूरा करने के बाद यहीं पर जीवन के 17 वर्ष गुजारे थे। जीवन के शुरूआती साल में भी नानक साहब यहीं पर थे और उन्होंने पहला उपदेश भी दिया था।
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लंगर की शुरुआत
सिखों के पहले गुरु नानकदेव जी 1522 में करतारपुर आए थे। नानक साहब ने यहां खेती की। लंगर की शुरुआत भी यहीं से की। करतारपुर ही वह जगह है, जहां नानक जी ने समाधि ली थी। इस लिहाज से करतारपुर बहुत अहमियत रखता है। इसी गुरुद्वारे से सिखी शुरू हुई थी। इसी जगह उन्होंने भाई लहणा जी को गुरु गद्दी भी सौंपी थी, जिन्हें सिखों के दूसरे गुरु अंगद देव के नाम से जाना जाता है।
दर्शन आसान
करतारपुर साहिब की यात्रा करने के लिए श्रद्धालुओं को पहले लाहौर जाना पड़ता था उसके बाद वहां से 125 किमी दूर करतापुर साहिब के दर्शन करने के लिए यात्रा करनी पड़ती थी। लेकिन करतारपुर कॉरिडोर बन जाने से अब आसानी से दर्शन हो जाएंगे
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पासपोर्ट अनिवार्य
करतारपुर दर्शन पर जाने के लिए पासपोर्ट होना जरूरी है। इसके साथ ही दर्शन के एक महीना पहले ही रजिस्ट्रेशन करना होगा। करतारपुर साहिब की यात्रा के लिए सबसे पहले आपको डेरा बाबा नानक जाना होगा। वहां से महज 4.5 किमी दूर बने करतारपुर गुरुद्वारे में दर्शन के लिए बड़ी ही आसानी से जा सकते हैं।
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इनकी नासमझी की वजह से गया पाकिस्तान में
भारत-पाक के बीच विभाजन रेखा खींचने का काम रेडक्लिफ को मिला था।उसे भारत-पाक के बीच विभाजन रेखा खींचने के लिए 2 महीने से भी कम का समय मिला था रेडक्लिफ भारत की भौगोलिक स्थिति के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं थी। इसलिए, वो विभाजन रेखा खींचते समय रावी नदी के नेचुरल फ्लो को ही बॉर्डर बना दिया और रावी नदी के उस पार का हिस्सा पाकिस्तान और इस पार का हिस्सा भारत को दे दिया। क्योंकि, करतारपुर गुरुद्वारा रावी नदी के दूसरी तरफ था, यह हिस्सा पाकिस्तान को मिल गया। इस तरह से करतापुर आज पाकिस्तान का अभिन्न अंग है।