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Sudan Crisis: सूडान में आखिर क्या करते हैं भारतीय? जानते हैं पूरी कहानी
Sudan Crisis: कर्नाटक में लगभग 12,000 हक्की-पिक्की हैं। "हक्की - पिक्की" यानी कन्नड़ भाषा में पक्षी शिकारी या बहेलिए। 1970 के दशक में भारत में पक्षी शिकार पर प्रतिबंध लगने के बाद इस जनजाति के सदस्यों ने पौधों से औषधीय उत्पाद बनाना शुरू कर दिया। वे इन उत्पादों को बेचने के लिए अक्सर अपने परिवारों के साथ सूडान, सिंगापुर और मलेशिया जैसे देशों की यात्रा करते हैं।
Sudan crisis: सूडान, उत्तरपूर्व अफ्रीका का 92 फीसदी मुस्लिम आबादी वाला रेगिस्तानी देश। 5 करोड़ की जनसंख्या, अरबी भाषी और दुनिया के सबसे कम विकसित देशों में शुमार है सूडान। भारत से 5200 किलोमीटर दूर और 8 घण्टे से ज्यादा का सफर। फिर भी यहां रह रहे हैं कोई 5 से 6 हजार भारतीय। इनमें भी करीब 1200 ऐसे हैं जो दशकों पहले वहां बस चुके हैं। जिनके अलावा सूडान में सौ दो सौ लोग कर्नाटक के हक्की पिक्की जनजातीय समुदाय के हैं। सवाल लाजिमी है, क्या करते हैं भारत के लोग वहां? किस आकर्षण में पहुंच गए सूडान?
बहुत पहले से हैं वहां
गुजराती व्यापारी लवचंद अमरचंद शाह सूडान में बसने वाले पहले भारतीय माने जाते हैं। शाह ने भारत से माल आयात किया और 1860 के दशक की शुरुआत में अदन के रास्ते सूडान की यात्रा की। अपने बिजनेस की सफलता के चलते वे अपने रिश्तेदारों को सौराष्ट्र से सूडान ले आये। कालांतर में इन रिश्तेदारों ने अपने और अधिक परिवारवालों और दोस्तों को सूडान बुला लिया जिससे सूडान में भारतीय समुदाय में अच्छी खासी वृद्धि हुई। भारतीय पहले पूर्वी सूडान, मुख्य रूप से पोर्ट सूडान और सुआकिन में बस गए। धीरे-धीरे वे देश के पश्चिमी क्षेत्रों में जाने लगे और ओमडुरमैन, कसाला, अल कादरीफ और वाड मेदानी में बस गए।
नौकरी चाकरी
आज की तारीख में बहुत से भारतीय सूडान में काम कर रही कंपनियों में नौकरी कर रहे हैं। काफी भारतीय लोग दुकानें आदि खोले हुए हैं। अफ्रीका के अन्य देशों की तरह सूडान में भी उत्तराखंड के खानसामे हैं जो भारतीय समुदाय के प्रतिष्ठानों या मेस में खाना बनाते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि कुछ भारतीय दुबई से लेकर यूरोप पहुंचने के जुगाड़ में सूडान को अस्थायी ठिकाना बनाये हुए हैं।
व्यापारिक संबंध
दशकों के गृहयुद्ध के बाद शांति की दहलीज पर खड़े इस उत्तरी अफ्रीकी देश में बन रहे अवसरों से आकर्षित होकर बड़ी संख्या में भारतीय यहां पहुंचने लगे हैं। भारत के ओएनजीसी ने अपनी विदेशी सहायक कंपनी के माध्यम से सूडान के तीन ब्लॉकों में हिस्सेदारी हासिल की हुई है जिसके बाद काफी भारतीय इन प्रोजेक्ट्स में शामिल हैं। भारतीय समुदाय सूडानी लोगों के सबसे भरोसेमंद लोगों में से एक माने जाते हैं। अब तो भारतीयों और स्थानीय लोगों के बीच विवाह भी सामान्य हैं।सूडान में दुनिया की सबसे बड़ी इंटीग्रेटेड चीनी मिलों में से एक, केनाना शुगर फैक्ट्री में हर साल लगभग 100-150 भारतीय शुगर प्रोफेशनल काम करने आते हैं।
हक्की पिक्की
अब हक्की पिक्की के बारे में। 2011 की भारत की जनगणना के अनुसार, कर्नाटक में लगभग 12,000 हक्की-पिक्की हैं। "हक्की - पिक्की" यानी कन्नड़ भाषा में पक्षी शिकारी या बहेलिए। 1970 के दशक में भारत में पक्षी शिकार पर प्रतिबंध लगने के बाद, इस जनजाति के सदस्यों ने पौधों से औषधीय उत्पाद बनाना शुरू कर दिया। वे इन उत्पादों को बेचने के लिए अक्सर अपने परिवारों के साथ सूडान, सिंगापुर और मलेशिया जैसे देशों की यात्रा करते हैं। इस समुदाय के सभी सदस्यों के पास पासपोर्ट हैं और वे 'वागरी' नामक एक भाषा बोलते हैं जिसमें गुजराती के कुछ अंश मिलते हैं। उनका दावा है कि हर्बल और आयुर्वेदिक तेल के अर्क गैस्ट्रिक समस्याओं से लेकर बालों के झड़ने तक की विभिन्न बीमारियों का इलाज कर सकते हैं। बताया जाता है कि सूडान में हक्की-पिक्की समुदाय के लोग लगभग पांच-छह महीने रहते हैं, 2,000 रुपये से 3,000 रुपये प्रति दिन के बीच कमाते हैं और फिर कर्नाटक लौट आते हैं। चूंकि अफ्रीका के साथ भारतीय व्यापारियों खासकर गुजरातियों के बहुत पुराने संबंध रहे हैं सो उन्हीं लोगों की सूडान यात्राओं की जानकारी मिलने के बाद हक्की पिक्की लोग वहां पहुंचने लगे। चूंकि सूडान में आधुनिक चिकित्सा सुविधाएं बहुत कम हैं सो हक्की पिक्की लोगों की जड़ी बूटी आधारित औषधियों को वहां अच्छी स्वीकृति मिलती गई और सूडान एक बढ़िया बाजार बन गया। इसी के चलते हक्की पिक्की समुदाय के लोग सूडान में हैं