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अचानक बरसे बम! ऐसा था खौफनाक हमला, सामने आई सच्चाई

सीरिया से अमेरिकी सेना के हटते ही तुर्की ने उसपर हमला बोल दिया। तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन ने कहा कि इस हमले का एक मात्र उद्देश्य सीमाई इलाकों से कुर्दिश सेनाओं को हटाकर सीरियाई शरणार्थियों के लिए एक सुरक्षित जोन बनाना है। हालांकि तुर्की के इस फैसले की भारत ने कड़ी आलोचना की है।

Vidushi Mishra
Published on: 31 July 2023 7:59 PM IST
अचानक बरसे बम! ऐसा था खौफनाक हमला, सामने आई सच्चाई
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नई दिल्ली : सीरिया से अमेरिकी सेना के हटते ही तुर्की ने उसपर हमला बोल दिया। तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन ने कहा कि इस हमले का एक मात्र उद्देश्य सीमाई इलाकों से कुर्दिश सेनाओं को हटाकर सीरियाई शरणार्थियों के लिए एक सुरक्षित जोन बनाना है। हालांकि तुर्की के इस फैसले की भारत ने कड़ी आलोचना की है।

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बता दें कि तुर्की ने सीरिया के जिस इलाके पर हमला किया है, उस पर सीरियन कुर्दिश डेमोक्रेटिक यूनियन पार्टी (पीवाईडी) और सशस्त्र कुर्दिश पीपल्स प्रोटेक्शन यूनिट (वाईपीजी) का नियंत्रण है। वाईपीजी में अधिकतर कुर्द ही शामिल हैं। चलिए आपको बताते हैं कि कुर्द कौन हैं और उनके खिलाफ तुर्की हमलें क्यों कर रहा है।

कुर्द कौन हैं...

जीं कुर्द नस्लीय अल्पसंख्यक समूह है जिनका आधिकारिक तौर पर कोई स्टेट नहीं है। प्रथम विश्व युद्ध के पहले तक कुर्द खानाबदोश जीवन व्यतीत करते थे। हालांकि प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की की हार के बाद ऑटोमन साम्राज्य बिखर गया और फिर वे कई छोेटे-छोटे देशों में बंट गए।

जानकारी के लिए बता दें कि वर्तमान में लगभग 2.5 से 3 करोड़ कुर्द तुर्की, इराक, सीरिया और अरमेनिया में फैले हुए हैं। इसके साथ ही ज्यादातर कुर्द सुन्नी मुस्लिम हैं लेकिन कुर्दिशों की अपनी अलग सांस्कृति, सामाजिक और राजनीतिक परंपराएं भी हैं।

इराक के अलावा कुर्दों को कहीं अपना स्वायत्त राज्य नहीं मिला। इराक में कुर्दों की इराकी कुर्दिस्तान नाम की एक क्षेत्रीय सरकार है। इराक, सीरिया, तुर्की और ईरान में संयुक्त कुर्दिस्तान के लिए अलग-अलग संगठन आंदोलन चला रहे हैं।

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कुर्दों को अपनी पहचान को लेकर कई इलाकों में संकट उत्पन्न हो गया है। इसी के चलते उन्हें कई देशों में भेदभाव का सामना भी करना पड़ रहा है और हमले भी झेलने पड़ रहे हैं।

उदाहरण के तौर पर, तुर्की में कुर्दों को पहाड़ी तुर्क के नाम से बुलाया जाता है. यहां उनके अपनी पारंपरिक वेशभूषा पहनने, अपनी भाषा बोलने और अपने बच्चों को कुर्दिश नाम देने पर रोक है। कुर्द तुर्की में बहुत बड़ा नस्लीय अल्पसंख्यक समुदाय है और तुर्की की लगभग 20 % आबादी कुर्द ही है।

बता दें कि कुर्दिस्तान आज 5 विभिन्न भागों में बंटा हुआ है- दक्षिणपूर्वी तुर्की, उत्तर-पूर्वी सीरिया, उत्तरी इराक, उत्तर-पश्चिम ईरान और दक्षिण पश्चिमी अर्मेनिया।

सद्दाम हुसैन की इराकी सेना को खदेड़ा

अमेरिका की अगुवाई में जब सन् 1991 में कुवैत से सद्दाम हुसैन की इराकी सेना को खदेड़ा गया तो अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने इराकी सेना और इसके नागरिकों से तानाशाह को सत्ता से बेदखल करने की मांग की। लेकिन इसके बाद जब इराकी कुर्द सद्दाम हुसैन के खिलाफ उठ खड़े हुए तो उन्हें अमेरिका की तरफ से न के बराबर सहायता मिली। कुर्दों को अपना घर छोड़कर भागना इसलिए पड़ा क्योंकि इराकी सेना ने हजारों कुर्दों को सरेआम मर दिया था।

इसके बाद जब सन् 2003 में अमेरिका ने इराक पर हमला किया तो एक बार फिर कुर्द अपना योगदान देने के लिए तैयार थे। जब आईएसआईएस ने इराक में अपने पैर फैलाए तो उस समय भी कुर्दिश लड़ाकों ने आतंकी समूह का सफाया करने में मदद की। सीरिया में भी अमेरिका समर्थित सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्स (एसडीएफ) में वाईपीजी ने आईएसआईएस को उसके राका हेडक्वॉर्टर से भी खदेड़ दिया था।

पर इसके बाद सन् 2018 में जब इराकी फौज ने आईएसआईएस से लड़कर हासिल किए क्षेत्र को कुर्दों से वापस ले लिया तो अमेरिका शांत रहा। अमेरिकी सेना के हटते ही उत्तरी सीरिया में मौजूद कुर्दों पर तुर्की हमला करने लगा है।

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ऑपरेशन पीस स्प्रिंग तुर्की के खिलाफ आतंक से निपटेगा

आपको बता दें कि एक बार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि अमेरिका सीरिया से अपनी सेना हटाना शुरू करेगा और उधर धीरे-धीरे सारे सैनिक अमेरिका लौट आएंगे।

इस समय सीरियाई कुर्दों को यह डर सताने लगा था कि अमेरिकी सेना की गैर-मौजूदगी में तुर्की उनके खिलाफ हमला कर सकता है। जब रविवार की रात को डोनाल्ड ट्रंप ने अचानक से अमेरिकी सेना को वापस बुलाने का ऐलान किया तब उसका ये डर सच में तब्दील हो गया।

बीते माह तक उत्तरपूर्वी सीरिया में 1000 अमेरिकी सैनिक तैनात थे। अमेरिका के इस कदम का मतलब है कि सीरियन कुर्द को तुर्की के हवाले छोड़ दिया गया है जो उन्हें तुर्की सीमा से दूर भगाने और उनका सफाया करने की इच्छा रखता है।

तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन ने बुधवार को ट्वीट किया, ऑपरेशन पीस स्प्रिंग तुर्की के खिलाफ आतंक के खतरों से निपटेगा और एक सुरक्षित जोन की स्थापना करेगा। इसके बाद सीरियाई शरणार्थियों को वहां बसाया जाएगा। हम सीरिया की क्षेत्रीय एकता की सुरक्षा करेंगे और स्थानीय समुदाय को आतंकियों से मुक्त कराएंगे।

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आपको बता दें कि सीरिया-तुर्की सीमा के पांच किलोमीटर के दायरे में 4,50,000 लोग निवास कर रहे हैं। अगर सभी ने संयम से काम नहीं लिया तो यहां रहने वाले लोगों के लिए सबसे ज्‍यादा खतरा है।



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Vidushi Mishra

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