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दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिकों ने शिव की मूर्ति पर किया ये बड़ा दावा
नई दिल्ली: भगवान शिव को ब्रह्मांड में जीवन का आधार माना गया है। जन्म से लेकर मृत्यु तक सबमें शिव की अवधारणा समाई है। शिव जीवन की सबसे बड़ी उर्जा हैं। जिस बात की व्याख्या वैज्ञानिक भी करते हैं। पुराणों में शिव की अवधारणा को लेकर कुछ वैज्ञानिकों ने अपने स्पष्ट दृष्टिकोण दिए हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला में भी भगवान शिव की मूर्ति लगी हुई है। स्विटजरलैंड में दुनिया की सबसे मशहूर फिजिक्स लैब सर्न के परिसर में भगवान शिव की मूर्ति है। वैज्ञानिक इस मूर्ति को लगाने के पीछे कई तरह के तर्क देते हैं। ये आस्था और विज्ञान के मेल सरीखा दिखता है।
कहां से आई शिव ये की मूर्ति
सर्न परिसर में लगी नटराज की मूर्ति की लंबाई 2 मीटर है। भारत सरकार ने 2004 में फीजिक्स लैब सर्न को तोहफे में ये मूर्ति दी थी। इस मूर्ति का अनावरण 18 जून 2004 को किया गया। एक प्रयोगशाला में भगवान की मूर्ति का क्या काम? इस सवाल का वैज्ञानिक तार्किक जवाब देते हैं।
इस मूर्ति के नीचे फ्रिटजॉफ कैप्रा ने भगवान शिव की अवधारणा की व्याख्या करते हुए लिखा है- हजारों साल पहले भारतीय कलाकारों ने नाचते हुए शिव के चित्र बनाए। कांसे के बने डांसिंग शिवा की सीरीज में मूर्तियां हैं। हमारे वक्त में हम फीजिक्स की एडवांस्ड टेक्नोलॉजी की मदद से कॉस्मिक डांस को चित्रित करते हैं। कॉस्मिक डांस का रूपक पौराणिक कथाओं से मेल खाता है। ये धार्मिक कलाकारी और मॉर्डन फिजिक्स का मिश्रण है।
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प्रेरणा देती है शिव की मूर्ति
दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला में लगी भगवान शिव की मूर्ति से वैज्ञानिक प्रेरणा लेते करते हैं। इस प्रयोगशाला में काम करने वाले रिसर्च स्कॉलर ने कहा था कि शिव की मूर्ति उन्हें प्रेरणा देती है। दिन के उजाले में जब सर्न जीवन के साथ ताल से ताल मिलाता है तो शिव इसके साथ खेलते हुए दिखते हैं। शिव हमें याद दिलाते हैं कि ब्रह्मांड में लगातार चीजें बदल रही हैं। कोई भी चीज स्थिर नहीं है। वहीं रात के अंधियारे में जब हम इसपर गहराई से विचार करते हैं तो शिव हमारे काम से उजागर हुई चीजों की परछाइयों से रूबरू करवाते हैं।
क्या कहते हैं वैज्ञानिक
फ्रिटजॉफ कैप्रा मशहूर भौतिकविज्ञानी हैं। वो लिखते हैं- शिव का नाचता हुआ रूप ब्रह्मांड के अस्तित्व को रेखांकित करता है। शिव हमें याद दिलाते हैं कि दुनिया में कुछ भी मौलिक नहीं है। सबकुछ भ्रम सरीखा और लगातार बदलने वाला है। मॉर्डन फिजिक्स भी इस बात की याद दिलाता है कि सभी सजीव प्राणियों में निर्माण और अंत, जन्म और मरण की प्रक्रिया लगातार चलती रहती है।
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