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मिला नरक का दरवाजा: देख दहल उठी पूरी दुनिया, रहस्य से अभी तक नहीं उठा पर्दा

तुर्कमेनिस्तान के काराकुम रेगिस्तान में दरवाजा(Darvaza) नाम का एक गड्ढा है। इसमें बीते 5 दशकों से आग धधक रही है। जीं हां इसे ही पूरी दुनिया में नरक का दरवाजा कहते हैं। ये गड्ढा एक गैस क्रेटर है। जो मिथेन गैस की वजह से जल रहा है।

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Published on: 27 Oct 2020 12:42 PM GMT
मिला नरक का दरवाजा: देख दहल उठी पूरी दुनिया, रहस्य से अभी तक नहीं उठा पर्दा
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तुर्कमेनिस्तान के काराकुम रेगिस्तान में दरवाजा नाम का एक गड्ढा है। बीते 5 दशकों से आग धधक रही है। जीं हां इसे ही पूरी दुनिया में नरक का दरवाजा कहते हैं।

नई दिल्ली। बीते कई महीनों से तुर्कमेनिस्तान काफी चर्चाओं में था। जब पूरी दुनिया में कोरोना वायरस का कहर था, तब वहां की सरकार के अनुसार, यहां एक भी कोरोना का मामला नहीं था। और तो और देश में कोरोना शब्द तक बोलने पर मनाही थी। वैसे भी ये देश पहले से ही एक बेहद अजीबोगरीब वजह से जाना जाता है। जीं हां ये वही देश है, जहां नरक का दरवाजा माना जा रहा है। इस लगातार धधक रहे दरवाजे का रहस्य आज तक कोई भी सुलझा नहीं पाया है।

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सैलानियों के लिए बड़ा आकर्षण का केंद्र

दरअसल तुर्कमेनिस्तान के काराकुम रेगिस्तान में दरवाजा(Darvaza) नाम का एक गड्ढा है। इसमें बीते 5 दशकों से आग धधक रही है। जीं हां इसे ही पूरी दुनिया में नरक का दरवाजा कहते हैं। ये गड्ढा एक गैस क्रेटर है। जो मिथेन गैस की वजह से जल रहा है। ऐसे में अब अपने रहस्य के चलते ये जगह सैलानियों के लिए बड़ा आकर्षण का केंद्र बना गया है।

अब देखा जाए तो इंसानों द्वारा बनाए गए इस गड्ढे की कहानी वैसे तो काफी सामान्य है। लेकिन तुर्केमेनिस्तान पहले सोवियत संघ का हिस्सा था। ऐसे में सत्तर की शुरुआत में यहां प्राकृतिक गैस के बड़े भंडार का पता लगा था। उस समय रूस दूसरे विश्व युद्ध के बाद आई आर्थिक कमजोरी से जूझ रहा है। इसे दूर करने में गैस के भंडार काफी सहायता कर सकते थे।

door to hell फोटो-सोशल मीडिया

इसी बीच प्राकृतिक गैस निकालने की तेजी में साल 1971 में यहां बड़ा विस्फोट हो गया। इसी विस्फोट से वो गड्ढा बना, जिसे आज डोर टू हेल यानी नरक का दरवाजा कहते हैं। इस हादसे में मीथेन गैस के फैलाव को रोकने के लिए वैज्ञानिकों ने एक तरीका आजमाया।

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50 साल बाद भी आग वैसे ही जल रही

वैज्ञानिकों ने गड्ढे के सिरे पर आग लगा दी। ऐसे में वैज्ञानिकों का अनुमान था कि आग गैस के खत्म होने के साथ ही बुझ जाएगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। वहीं आज पूरे 50 साल बीतने के बाद भी आग वैसे ही जल रही है। इसका राज समझने की बहुत कोशिशें हुईं लेकिन कोई इसके कारण की पुष्टि नहीं कर सका।

बिल्कुल इसी तरह ही पेनसिल्वेनिया के शहर सेंट्रेलिया का किस्सा है। यहां सड़कों पर दरारें पड़ी हुई हैं और सुनसान घरों में बहुत सी चीजें जली हुई दिखती हैं। विदेशी सैलानी यहां घूमने आते रहते हैं लेकिन शहर में जगह-जगह बोर्ड लगे हुए हैं जो खतरनाक जगहों से लोगों को आगाह करते हैं। वहीं एक समय में चहल-पहल से भरे इस शहर के भुतहा होने की वजह साल 1962 की एक घटना है, जिसने पूरे शहर को जलाकर खाक कर दिया। जिसे आज भी लोगों बड़े डर वाली जगह के रूप में जानते हैं।

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