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UNICEF की बड़ी चेतावनी: खतरे में 80 करोड़ बच्चों की जान, खून में ऐसे घुल रहा जहर

कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में तबाही मचा रखी है। अब इस बीच संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) की एक रिपोर्ट के बाद हड़कंप मच गया है। इस रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे किए गए हैं।

Newstrack
Published on: 1 Aug 2020 3:56 PM GMT
UNICEF की बड़ी चेतावनी: खतरे में 80 करोड़ बच्चों की जान, खून में ऐसे घुल रहा जहर
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नई दिल्ली: कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में तबाही मचा रखी है। अब इस बीच संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) की एक रिपोर्ट के बाद हड़कंप मच गया है। इस रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे किए गए हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के लगभग तीन चौथाई बच्चे सीसा (लेड) धातु के जहर के साथ जी रहे हैं।

एसिड बैटरियों के निस्तारण को लेकर बरती जाने वाली लापरवाही को इतनी बड़ी संख्या में बच्चों के सीसा धातु से प्रभावित होने का कारण बताया गया है। यूनिसेफ ने चेतावनी देते हुए इस तरह की लापरवाही को तत्काल बंद करने का आग्रह किया है।

यूनिसेफ और प्योर अर्थ की रिपोर्ट–'द टॉक्सिक ट्रूथ: चिल्ड्रंस एक्सपोजर टू लेड पॉल्यूशन अंडरमाइंस ए जनरेशन ऑफ पॉटेंशियल' के नाम से प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर के करीब 80 करोड़ बच्चों के खून में इसकी वजह से इस जहरीला सीसा धातु का स्तर पांच माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर या उससे भी ज्यादा है।

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यूनिसेफ की इस रिपोर्ट में बच्चों की बताई संख्या के मुताबिक दुनिया का हर तीसरा बच्चा इस जहर के साथ जी रहा है। यूनिसेफ ने चेतावनी दी है कि खून में सीसा धातु के इतने स्तर पर मेडिकल ट्रीटमेंट की आवश्यकता पड़ती है। इस रिपोर्ट में सबसे बड़ी बात जो कही गई है वो यह है कि इस जहर का मजबूरन सेवन करने वाले आधे बच्चे दक्षिण एशियाई देशों के हैं।

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शुरुआती लक्षण नहीं दिखते

यूनीसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरिएटा फोर ने बताया कि खून में सीसा धातु की मौजूदगी के शुरुआती लक्षण नजर नहीं दिखते हैं और ये धातु खामोशी के साथ बच्चों के स्वास्थ्य और विकास को नुकसान पहुंचाते हैं।

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रिपोर्ट में पांच देशो का किया जिक्र

रिपोर्ट में पांच देशों की वास्तविक परिस्थितियों का मूल्यांकन हुआ है। इनमें बांग्लादेश के कठोगोरा, जियार्जिया का तिबलिसी, घाना का अगबोगब्लोशी, इंडोनेशिया का पेसारियान और मैक्सिको का मोरोलॉस प्रांत को शामिल किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक सीसा धातु में न्यूरोटॉक्सिन होता है जिनके कारण बच्चों की मस्तिष्क को नुकसान होता है। इसका इलाज भी संभव नहीं है।

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