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चीखीं महिलाएं-कांपी दुनिया: जब रक्षक बन गए भक्षक, यहां यौन शोषण की इन्तेहा
संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियां विभिन्न देशों में राहत और सहायता कार्यों के लिए काम करतीं हैं लेकिन इसके आड़ में तमाम गलत काम भी होते हैं. इसका सबसे बड़ा उदहारण अफ्रीकी देश डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो है.
नई दिल्ली। संयुक्त राष्ट्र पर भ्रष्टाचार और घोटालों के तो आरोप लगते ही रहे हैं लेकिन महिलाओं का शोषण और यौन अपराध भी इस संस्था पर लगे बदनुमा दाग हैं. संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियां विभिन्न देशों में राहत और सहायता कार्यों के लिए काम करतीं हैं लेकिन इसके आड़ में तमाम गलत काम भी होते हैं. इसका सबसे बड़ा उदहारण अफ्रीकी देश डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो है. इस देश में गृह युद्ध और इबोला वायरस प्रकोप के दौरान संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारियों ने महिलाओं का बहुत उत्पीड़न और शोषण किया.
दुनिया को सुरक्षित बनाने का इरादा रखने वाले संयुक्त राष्ट्र ने अपने कर्मचारियों द्वारा किये गए अपराधों के लिए नाममात्र पीड़ितों को मुआवजे दिए हैं, ये भी एक विडंबना है.
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इबोला संकट में शोषण
जब कांगो इबोला वायरस संकट से जूझ रहा था तब वहां संयुक्त राष्ट्र की तमाम एजेंसियां राहत कार्यों में लगाई गयीं थीं. इन एजेंसियों के कर्मचारियों ने राहत तो कम पहुंचाई, स्थानीय महिलाओं का शोषण ज्यादा किया.
इसी सितम्बर में रायटर ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें संयुक्त राष्ट्र के सीनियर अफसरों और एनजीओ के कार्यकर्ताओं के हवाले से बताया गया था कि कांगों में ‘सेक्स के बदले रोजगार’ का जमकर इस्तेमाल किया गया.
जब शिकायतें हुईं तो संयुक्त राष्ट्र और अन्य एनजीओ ने ऐसे अपराधिक कृत्य को रोकने के लिए रणनीतियां बनायीं लेकिन कोई कारगर साबित नहीं हुई. स्थानीय महिलाओं ने साफ़ कहा था कि इबोला प्रकोप के दौरान विदेशी सहायता कर्मियों ने यौन शोषण किया था और उनकी शिकायतों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया.
फोटो-सोशल मीडिया
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डब्लूएचओ के एक कर्मचारी ने बताया था कि कांगो में गरीबी का फायदा उठाते हुए तमाम अंतर्राष्ट्रीय कंसल्टेंट्स ने नौकरी देने के बदले महिलाओं को ब्लैकमेल किया और ये बात सब जानते थे. कांगो में महिलाओं के यौन शोषण की घटनाओं की साल भर तक जांच चली और पाया गया कि सबसे ज्यादा दुष्कर्म विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्लूएचओ से जुड़े लोगों ने किये थे.
वैसे शिकायतें सिर्फ डब्लूएचओ के खिलाफ ही नहीं बल्कि यूनिसेफ, यूएन माइग्रेशन एजेंसी, ऑक्सफेम, वर्ल्ड विज़न और कांगो के स्वस्थ्य मंत्रालय के खिलाफ भी थीं. अब डब्लूएचओ ने शिकायतों की जांच का वादा किया है लेकिन ये एजेंसी ये नहीं बता रही कि इसके पास अपने कर्मचारियों के खिलाफ कितनी शिकायतें मिलीं हैं.
जुल्म और अत्याचार
संयुक्त राष्ट्र यौन शोषण का केंद्र कांगो ही रहा है. जितना अत्याचार यहाँ किया गया उतना शायद ही कहीं देखने को मिला होगा. कांगो में यौन शोषण की इबारत 2004 में लिखी गयी थी.
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फोटो-सोशल मीडिया
इस देश में संयुक्त राष्ट्र शांति बहाली फोर्स और अन्य कर्मचारियों के खिलाफ यौन अपराधों और शोषण की हजारों शिकायतें दर्ज कीं गयीं. संयुक्त राष्ट्र शांति फ़ोर्स की सबसे बड़ी मौजूदगी कांगो में रही है और इस काम पर इस संस्था ने सालाना एक अरब डालर खर्च किये हैं.
जुल्म रोकने की पूरी तरह फेल
कांगों में शोषण की जांच में पाया गया कि दस साल तक यूएन ने सिर्फ सुधारों की बात की. धरातल पर काम रत्ती भर नहीं किया. यौन शोषण रोकने, पीड़ितों की मदद करने और दोषियों को सजा देने के वादे किये जाते रहे लेकिन असलियत में कुछ भी नहीं किया गया. इसकी जिम्मेदार संयुक्त राष्ट्र की विकृत और उलझाऊ ब्यूरोक्रेसी रही है.
यूएन पीसकीपिंग फ़ोर्स में अलग अलग देशों की सेनाओं के लोग शामिल रहते हैं. यूएन ने कहने को शिकायतें सम्बंधित देशों को सौंप दीं लेकिन कोई फालोअप नहीं किया सो सब मामले रफा दफा हो गए.
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जारी है शोषण
कांगो में यूएन पीसकीपिंग फ़ोर्स अब भी तैनात है और महिलाओं पर जुल्म अब भी जारी हैं. 2017 में संयुक्त राष्ट्र के खिला यौन शोषण की जितनी शिकायतें आयीं उनमें एक तिहाई कांगो से थीं. मई 2003 से जनवरी 20०८ तक कांगो मिशन के मुखिया विलियम स्विंग थे. उन्होंने एसोसिएटेड प्रेस के सामने स्वीकारा था कि वे सब मामलों की जिम्मेदारी लेते हैं.
कांगो में संयुक्त राष्ट्र की सेना के एक सिपाही ने 14 साल की एक लड़की का रेप दूसरे बच्चों के सामने किया था. जिस कैंप में ये काण्ड हुआ उस कैंप में उस दिन यूएन का एक शीर्ष प्रतिनिधिमंडल आया हुआ था. अधिकारियों ने पीड़ित बच्ची के आरोपों को ही ख़ारिज कर दिया. बाद में वह अनाथ बच्ची कहाँ गयी किसी को नहीं पता.
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रिपोर्ट- नील मणि लाल