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मानवाधिकारों की रक्षा में बुरी तरह फेल संयुक्त राष्ट्र, जगजाहिर ये खूनी मामले...

अमेरिका पहले कई बार कह चुका है कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद राजनीति का अड्डा बन कर रह गया है। ये बात सच है क्योंकि मानवाधिकार परिषद ने विश्व के सबसे जुल्मी शासनों की निंदा करने की बजाये उनको संरक्षण ही दिया है।

Shivani
Published on: 17 Oct 2020 12:18 PM IST
मानवाधिकारों की रक्षा में बुरी तरह फेल संयुक्त राष्ट्र, जगजाहिर ये खूनी मामले...
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नील मणि लाल

लखनऊ- संयुक्त राष्ट्र अपने मकसद में किस बुरी तरह फेल रहा है इसका एक बहुत बड़ा उदाहरण संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद का कामकाज है। ताजा घटनाक्रम को देखें तो मानवाधिकार परिषद की विफलताओं की लिस्ट में एक और कारनामा जुड़ गया है। इसी सप्ताह चीन, रूस, पाकिस्तान और क्यूबा संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के सदस्य चुने गए। ये सभी ऐसे देश हैं जिनका खुद का मानवाधिकार बेहद खराब रहा है। चीन में किस तरह मानवाधिकारों का हनन किया जाता है ये जगजाहिर है।

शिनजियांग में उइगुर मुस्लिमों और हांगकांग में लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनकारियों के साथ बर्ताव सबको पता है लेकिन अब यही चीन मानवाधिकार की रक्षा करने वाली परिषद का सदस्य हो गया है। बलूचिस्तान में पाकिस्तान का दमन बदस्तूर जारी है, क्यूबा में वामपंथ का विरोध करने वालों पर अत्याचार होता रहा है, ऐसे तमाम उदहारण हैं लेकिन अब ये देश मानवाधिकारों की रक्षा करने वाले हो गए हैं। इसके पहले सऊदी अरब, वेनेजुएला जैसे देश भी परिषद का हिस्सा बने रहे हैं। मानवाधिकार निगरानी एजेंसी यूएन वॉच के अनुसार संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकारों के लिए इन तानाशाहों का चयन करना आगजनी करने वालों के गिरोह को जोड़ने जैसा है।

राजनीति का अड्डा

अमेरिका पहले कई बार कह चुका है कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद राजनीति का अड्डा बन कर रह गया है। ये बात सच है क्योंकि मानवाधिकार परिषद ने विश्व के सबसे जुल्मी शासनों की निंदा करने की बजाये उनको संरक्षण ही दिया है।

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मानवाधिकार परिषद की स्थापना 2006 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की जगह पर की गयी थी। अमेरिका 2009 तक परिषद् का सदस्य भी नहीं बना था लेकिन बराक ओबामा के प्रेसिडेंट बनने पर अमेरिका फिर इसमें शामिल हो गया। अमेरिका बार बार सुधार लाने की मांग करता रहा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। जब डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका के प्रेसिडेंट बने तो अमेरिका मानवाधिकार परिषद् से अलग हो गया।

United Nations fail to defense human rights china and other countries proven

मानवाधिकार परिषद

संयुक्त राष्ट्र महासभा हर साल मानवाधिकार परिषद के एक तिहाई सदस्यों को बदलने के लिए चुनाव कराती है। परिषद के सदस्यों का कार्यकाल तीन साल का होता है, जिन्हें अधिकतम लगातार दो बार चुना जा सकता है। यूएनएचआरसी के 47 सदस्य देश हैं और उम्मीदवारों को भौगोलिक समूहों में गुप्त मतदान द्वारा चुना जाता है ताकि क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी सुनिश्चित हो सके।

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एशिया प्रशांत क्षेत्र से चार देश चुने जाने थे, जिसके लिए पांच देशों ने अपनी दावेदारी पेश की थी। जिसमें सऊदी अरब भी शामिल था। परिणामस्वरूप 193 सदस्यों द्वारा किए गए मतदान में पाकिस्तान को 169 मत मिले, उजबेकिस्तान को 164, नेपाल को 150, चीन को 139 और सऊदी अरब को सिर्फ 90 वोट मिले। नए सदस्य 1 जनवरी 2021 से अपना कार्यकाल शुरू करेंगे।

अत्याचार और जुल्म पर मूँद रखीं हैं आँखें

कम्बोडिया हिंसा

अमेरिका - वियतनाम युद्ध समाप्ति और कम्बोडिया गृह युद्ध के बाद खमेर रूग ने कम्बोडिया को अपने कंट्रोल में ले किये और अति माओवाद की राह पर चलते हुए देश को सोशलिस्ट शासन में बदल डाला। 1975 से 79 के बीच कम्बोडिया में व्यापक नरसंहार किया गया और बीस लाख लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। वियतनाम के हस्तक्षेप के बाद ही खमेर रूग शासन का अंत हुआ। संयुक्त राष्ट्र का ये हाल रहा कि उसने अति अत्याचारी खमेर रूग शासन को मान्यता दे दी थी और कम्बोडिया में मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन के प्रति आँखें बंद कर रखीं थीं।

सोमालिया का गृह युद्ध (1991 से जारी)

1991 में सोमालिया में विद्रोह में तानाशाह सिअद बर्रे का तख्ता पलट दिया गया था। तबसे अब तक सोमालिया में प्रतिद्वद्वी गुटों के बीच हिंसा चल ही रही है। दिसंबर 1992 में संयुक्त राष्ट्र शांति बहाली मिशन कि स्थापना हुई थी जिसका उद्देश्य गृह युद्ध और भुखमरी के शिकार लोगों को मानवीय मदद देना था। इस काम में भी यूएन विफल रहा है।

रवांडा का गृह युद्ध (1984)

रवांडा के गृह युद्ध में बहुत बड़े पैमाने पर नस्लीय नरसंहार किया गया। रवांडा की सशस्त्र सेना और विद्रोही रवांडा पेट्रियोटिक फ्रंट के बीच संघर्ष में 1990 से 94 के बीच अनगिनत लोग मारे गए। 1994 में रवांडा के हुतू शासन में आठ लाख तुत्सी लाग मार दिए गए और ढाई लाख से ज्यादा रेप किये गए। रवांडा में यूएन सेनाएं थीं लेकिन कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया।

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इजरायल

1948 में इजरायल की स्थापना के बाद से फलस्तीन संघर्ष जारी है। सब 47 से 49 के बीच करीब आठ लाख लोग विस्थापित हुए, हजारों मारे गए। गाजा पट्टी में आर्थिक नाकेबंदी रही है,कब्जे वाली जगहों पर अविध बस्तियां बसाई गयीं। ये सब बंद करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के तमाम प्रस्ताव पारित किये गए लेकिन इनका कोई असर नहीं हुआ।

सीरिया गृह युद्ध (2011 से जारी)

2011 में सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे लोगों पर निर्दयता से कार्रवाई की गयी जिसके बाद शुरू हुआ आन्तरिक युद्ध आज तक जारी है। सीरिया के गृह युद्ध में अमेरिका समेत दुनिया की तमाम ताकतें शामिल हैं। सीरिया के बारे में संयुक्त राष्ट्र ने के प्रस्ताव पारित किये लेकिन कोई असर नहीं हुआ। रूस ने अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल करके असद को कम से कम दर्जन भर बार बचाया है।

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इनके अलावा साउथ सूडान, यमन गृह युद्ध, रोहिंगिया संकट, ईराक पर हमला, दारफुर संघर्ष, बोस्निया-सर्बिया नरसंहार, आदि ऐसे हिंसात्मक मसले हैं जहाँ संयुक्त राष्ट्र सिर्फ दर्शक ही बना रहा और शांति कायम करने में फेल रहा।

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