विश्व मातृभाषा दिवस: 21 साल पहले यूनेस्को ने की शुरुआत, ये थी खास वजह

आज दुनिया में बोली जाने वाली कुल भाषाएं लगभग 6900 है। इनमें से 90 फीसद भाषाएं बोलने वालों की संख्या एक लाख से कम है।

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Published on: 17 Nov 2020 5:53 AM GMT
विश्व मातृभाषा दिवस: 21 साल पहले यूनेस्को ने की शुरुआत, ये थी खास वजह
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विश्व मातृभाषा दिवस: 21 साल पहले यूनेस्को ने की शुरुआत, ये थी खास वजह (Photo by social media)

रामकृष्ण वाजपेयी

नई दिल्ली: आज विश्व मातृभाषा दिवस है। 1999 में यूनेस्को ने 17 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाए जाने की मंजूरी दी थी। जन्म लेने के बाद कोई मनुष्य जो पहली भाषा सीखता है उसे मातृभाषा कहते हैं। इसी भाषा में वह अपनी भावनाओं, अपने ज्ञान, अपनी जिज्ञासाओं, अपनी रुचियों, अपनी प्रकृति को बेहतर ढंग से व्यक्त कर सकता है।

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आज दुनिया में बोली जाने वाली कुल भाषाएं लगभग 6900 है

आज दुनिया में बोली जाने वाली कुल भाषाएं लगभग 6900 है। इनमें से 90 फीसद भाषाएं बोलने वालों की संख्या एक लाख से कम है। विश्व की कुल आबादी में तकरीबन 60 फीसद लोग 30 प्रमुख भाषाएं बोलते हैं, जिनमें से दस सर्वाधिक बोले जानी वाली भाषाओं में जापानी, अंग्रेजी, रूसी, बांग्ला, पुर्तगाली, अरबी, पंजाबी, मंदारिन, हिंदी और स्पैनिश है।

विश्व में हिंदी भाषी करीब 70 करोड़ लोग हैं। जबकि भारत की आबादी 135 करोड़ है। यह दुनिया की तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। हमारे देश में मातृभाषा का सम्मान न होने के कारण ही 1.12 अरब बोलने वालों की संख्या के साथ अंग्रेजी पहले स्थान पर है।

51.29 करोड़ और 42.2 करोड़ के साथ स्पैनिश और अरबी का क्रमश: चौथा और पांचवां स्थान है। दुनिया में मौजूद भाषाओं की जानकारी पर प्रकाशित होने वाले एथनोलॉग के 2017 के संस्करण में 28 ऐसी भाषाएं शामिल हैं जिनमें से प्रत्येक के बोलने वाले पांच करोड़ से ज्यादा लोग हैं।

मातृभाषा से ही किसी व्यक्ति की सामाजिक और क्षेत्रीय पहचान जुड़ी होती है

मातृभाषा से ही किसी व्यक्ति की सामाजिक और क्षेत्रीय पहचान जुड़ी होती है। करीब 400 साल तक अंग्रेजों की गुलामी झेलने और आजादी के 73 साल बाद भी अफसोस की बात ये है कि हम आज तक अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त नहीं हो पाए। हमें पहले अंग्रेज अच्छे लगते थे। आज अंग्रेजी साफ सुथरी और अच्छी भाषा लगती है। ये भी सही है कि अंग्रेजी भाषा यदि किसी को नहीं आती है तो उसे नौकरी मिलना भी मुश्किल है इस देश में। इसीलिए गरीब से गरीब आदमी अपने बच्चे को ठोंक पीटकर अंग्रेजी द पुत्तर बनाना चाहता है। इस होड़ में न तो उसका विकास हो पाता है न ही वह अपना व्यक्तित्व ही बना पाता है। क्योंकि न वह अंग्रेजी जान पाता है न ही हिन्दी।

हमने महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता का दर्जा तो दे दिया लेकिन मैकाले की इस धूर्ततापूर्ण षडयंत्र को आँख मींच कर स्वीकार कर लिया। जिसका अपने लेखों में महात्मा गांधी ने (मैकालेज ड्रीम्स, यंग इंडिया, 19 मार्च 1928, पृ. 103, देखें ) खुलासा किया था तथा मैकाले की घोषणा को "शरारतपूर्ण" कहा था।

यह सत्य है कि गांधी जी खुद अंग्रेजी के अच्छे जानकार तथा वक्ता थे। एक बार एक अंग्रेज विद्वान ने कहा था कि भारत में केवल डेढ़ व्यक्ति ही अंग्रेजी जानते हैं- एक गांधी जी और आधे मि. जिन्ना। अत: भाषा के सम्बंध में गांधी जी के विचार राजनीतिक अथवा भावुक न होकर अत्यन्त संतुलित तथा गंभीर माने जाने चाहिए।

शिक्षा के माध्यम के सन्दर्भ में गांधी जी के विचार स्पष्ट थे

शिक्षा के माध्यम के सन्दर्भ में गांधी जी के विचार स्पष्ट थे। वे अंग्रेजी भाषा को लादने को विद्यार्थी समाज के प्रति "कपटपूर्ण व्यवहार" मानते थे। उनका मानना था कि भारत में 90 प्रतिशत व्यक्ति चौदह वर्ष की आयु तक ही पढ़ते हैं, अत: मातृभाषा में ही अधिक से अधिक ज्ञान होना चाहिए। उन्होंने 1909 ई. में "स्वराज्य" में अपने विचार प्रकट किए हैं। उनके अनुसार हजारों व्यक्तियों को अंग्रेजी सिखलाना उन्हें गुलाम बनाना है।

देश के बच्चों को अपने ही घर में विदेशी बना देता है

गांधी जी विदेशी माध्यम के कटु विरोधी थे। उनका मानना था कि विदेशी माध्यम बच्चों पर अनावश्यक दबाव डालने, रटने और नकल करने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करता है तथा उनमें मौलिकता का अभाव पैदा करता है। यह देश के बच्चों को अपने ही घर में विदेशी बना देता है। उनका कथन था कि यदि मुझे कुछ समय के लिए निरकुंश बना दिया जाए तो मैं विदेशी माध्यम को तुरन्त बन्द कर दूंगा।

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गांधी जी के अनुसार विदेशी माध्यम का रोग बिना किसी देरी के तुरन्त रोक देना चाहिए। उनका मत था कि मातृभाषा का स्थान कोई दूसरी भाषा नहीं ले सकती। उनके अनुसार, "गाय का दूध भी मां का दूध नहीं हो सकता।"

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