Anand Mohan Singh: कौन हैं ये बाहुबली पूर्व सांसद, जिनकी बेटी की शादी के खाने के इतने चर्चे, 50 कुतंल नॉनवेज तो 3 लाख…

Anand Mohan Singh: शादी का काम देख रहे शुभम आनंद बताते हैं कि अकेले 15 हजार लोग तो आनंद मोहन के तरफ से विवाह में शामिल होंगे। पटना के एक विशाल निजी फार्म में ये शादी हो रही है।

Written By :  Krishna Chaudhary
Update:2023-02-15 13:08 IST

Anand Mohan Singh daughter Surbhi Anand wedding (photo: social media )

Anand Mohan Singh: बिहार से लेकर नेशनल मीडिया तक इन दिनों एक बाहुबली नेता की बेटी की भव्य शादी की खूब चर्चा हो रही है। बाहुबली नेता एवं पूर्व सेना आनंद मोहन सिंह की बेटी सुरभि आनंद की आज यानी बुधवार 15 फरवरी को राजधानी पटना में शादी है। शादी में परोसे जाने वाले व्यंजन की खूब चर्चा हो रही है। शादी का काम देख रहे शुभम आनंद बताते हैं कि अकेले 15 हजार लोग तो आनंद मोहन के तरफ से विवाह में शामिल होंगे।

पटना के एक विशाल निजी फार्म में ये शादी हो रही है। शादी के लिए तीन लाख रसगुल्ले बनाए जा रहें हैं। इसके अलावा भी कई तरह की मिठाईयां शामिल है। वहीं, बात करें नॉनवेज की तो 50 क्विंटल नॉनवेज पकाया जा रहा है, जिसमें 25 क्विंटल मटन, 15 क्विंटल चिकन और 10 क्विंटल मछली शामिल है। खास बात ये है कि बारात के लिए शाकाहारी भोजन का इंतजाम किया गया है, क्योंकि वो नॉनवेज नहीं खाते हैं। नॉनवेज की व्यवस्था केवल आनंद मोहन के मेहमानों के लिए की गई है।

कौन हैं आनंद मोहन ?

उत्तर प्रदेश की तरह बिहार भी बाहुबलियों की धरती रही है। अतीत में यहां की राजनीति में भी इनका खूब दबदबा रहा है। बिहार के हर इलाके में किसी न किसी बाहुबली का दबदबा रहा है और कुछ का तो अभी भी है। इन्हीं बाहुबलियों में एक नाम है – आनंद मोहन सिंह। 1990 के दशक में बिहार की राजनीति में आनंद मोहन की तूती बोला करती थी। जेल के अंदर से लोकसभा चुनाव जीतने वाले आनंद मोहन का रसूख का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एकबार लालू प्रसाद यादव के सामने उन्हें बिहार के मुख्यमंत्री का दावेदार बताए जाने लगा था।

सिंह की उस दौरान युवाओं में खासकर अगड़ी जाति के लोगों में जबरदस्त अपील थी। 1995 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी बिहार पीपुल्स पार्टी ने नीतीश कुमार की समता पार्टी से भी अच्छा प्रदर्शन किया था। इसलिए युवा उन्हें लालू यादव के विकल्प के तौर पर मानते थे। दंबग छवि वाले आनंद मोहन के अपराधों की फाइल काफी मोटी है। उम्रकैद की सजा पाने के बाद उनके सियासी सफर पर ब्रेक लग गया था। अब उनकी पत्नी और बेटा उनके सियासी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।

कहां से शुरू हुआ सियासी सफर ?

आनंद मोहन सिंह का जन्म बिहार के कोसी इलाके में स्थित सहरसा जिले के पचगछिया गांव में हुआ था। सिंह राजनीति से मुखातिब 1974 में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन संपूर्ण क्रांति से हुए थे। वे उन दिनों कॉलेज में थे। जेपी के आंदोलन से वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने पढ़ाई बीच में ही छोड़कर राजनीति ज्वाइन कर ली। उन्हें इमरजेंसी के दौरान दो साल के लिए जेल में भी रहना पड़ा। उस समय उनकी उम्र महज 17 साल थी। प्रखर समाजवादी नेता परमेश्वर कुंवर उनके राजनीतिक गुरू हुआ करते थे।

उस समय बिहार की राजनीति में राजपूतों का अच्छा-खासा दबदबा था, जिसका आनंद मोहन को फायदा भी मिला। बिहार की राजनीति शुरू से ही जातिगत समीकरणों और दबंगई पर चलती रही है। आनंद मोहन की पहचान इलाके में राजपूत नेता के तौर पर स्थापित हो गई थी। 1978 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई जब भाषण दे रहे थे, तब उन्होंने देसाई को काले झंडे दिखाए थे। इससे उनका सियासी प्रभाव बढ़ गया।

चुनावी राजनीति में एंट्री

बिहार की राजनीति में धीरे-धीरे कथित निचली जातियों का वर्चस्व बढ़ रहा था। आनंद मोहन सिंह ने इससे मुकाबले करने के लिए 1980 में समाजवादी क्रांति सेना का स्थापना की। 1990 में उन्हें पहली चुनावी सफलता मिली। जनता दल के टिकट पर उन्होंने महिषी सीट से विधानसभा चुनाव जीता था। मंडल कमीशन की सिफारिशों के लागू होने के विरोध में आनंद मोहन ने जनता दल से राह कर ली और खुद की पार्टी बिहार पीपुल्स पार्टी यानी बीपीपी का 1993 में गठन किया।

1994 में उनकी पत्नी लवली आनंद वैशाली सीट से उपचुनाव में लोकसभा पहुंचने में कामयाब रहीं। इसके बाद साल 1996 में आनंद मोहन भी शिवहर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीतने में कामयाब रहे। 1998 में उन्हें एकबार फिर यहां से जीत मिली। लेकिन 1999 के आम चुनाव में बीजेपी के समर्थन के बावजूद वे जीत नहीं सके और राजद उम्मीदवार ने उन्हें हरा दिया। इसके बाद तमाम प्रकार के प्रयोगों के बावजूद उनकी पत्नी और वे चुनाव नहीं जीत पाए।

अपराध की दुनिया में रखा कदम

आनंद मोहन 1980 के दशक में ही अपराध की दुनिया में कदम रख चुके थे। वक्त – वक्त पर उनके नाम पर इनाम घोषित होने लगे। साल 1983 में पहली बार उन्हें जेल की हवा खानी पड़ी। उन्हें एक मामले में तीन महीने की सजा हुई थी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, आनंद मोहन एक निजी सेना चलाते थे, जिसके निशाने पर आरक्षण समर्थक होते थे।

पप्पु यादव के साथ टकराव

कोसी क्षेत्र में एकसाथ दो बाहुबलियों को उदय हुआ। आनंद मोहन सिंह के अलावा राजेश रंजन उर्फ पप्पु यादव की भी इलाके में अच्छा दखल था। पांच बार के सांसद पप्पु यादव लालू यादव के समर्थन के कारण काफी प्रभावशाली थे और इलाके में यादवों के नेता के तौर पर उभर थे। उस समय कोसी इलाके में आनंद मोहन गैंग और पप्पु यादव गैंग के बीच जबरदस्त अदावत थी। इलाके में गृह य़ुद्ध जैसे हालात बन गए थे। हालांकि, अब दोनों पूर्व कट्टर दुश्मन पुरानी बात भुलाने की बात कह रहे हैं।

कलेक्टर हत्याकांड ने आनंद मोहन को बनाया कुख्यात

5 दिसंबर 1994 को तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के गृह जिले गोपालगंज के कलेक्टर जी कृष्णैया की हिंसक भीड़ ने निर्मम तरीके से हत्या कर दी थी। भीड़ ने उन्हें कार से निकालकर पहले खूब पीटा और फिर उन्हें गोली मार दी गई। कृष्णैया दलित आईएएस अधिकारी थे। इस घटना ने न केवल बिहार बल्कि पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। जानकार बताते हैं कि इसी घटना ने लालू राज को जंगलराज का सबसे बड़ा ठप्पा दिया।

इस हत्याकांड का मास्टरमाइंड बाहुबली नेता आनंद मोहन सिंह को बताया गया। उनपर भीड़ को कलेक्टर पर हमला करने के लिए उकसाने के आरोप लगे। इस मामले में आनंद और उनकी पत्नी लवली समेत 6 को आरोपी बनाया गया था। 2007 में पटना हाईकोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई थी। आजाद भारत के इतिहास में ये पहला मौका था जब अदालत ने किसी राजनेता को फांसी की सजा सुनाई थी। हालांकि, बाद में उनकी सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया।

बेटी की शादी में पैरोल पर आए बाहर

आनंद मोहन कलेक्टर हत्याकांड में सहरसा की जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं। बेटी की शादी में शामिल होने के लिए उन्हें 15 दिनों का पैरोल मिला है। इस शादी में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अलावा डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव भी आएंगे। बिहार में जब से महागठबंधन सरकार में आई है तब से आनंद मोहन की रिहाई के चर्चे शुरू हो गए हैं। माना जा रहा है कि सीएम नीतीश जल्द इस संबंध में फैसला ले सकते हैं।

बेटा बढ़ा रहा राजनीतिक विरासत

उम्रकैद की सजा काट रहे बाहुबली नेता आनंद मोहन की राजनीतिक विरासत को उनके पुत्र चेतन आनंद आगे बढ़ा रहे हैं। चेतन ने साल 2020 के विधानसभा चुनाव में शिवहर सीट से पहली बार चुनावी सफलता हासिल की है। उन्होंने राजद के टिकट पर दो बार के जदयू विधायक शरफुद्दीन को हराया था।

Tags:    

Similar News