Bihar Diwas: नालंदा विवि की थी पूरी दुनिया में साख, जानिए बख्तियार खिलजी ने क्यों किया था नष्ट

Bihar Diwas: 22 मार्च का दिन बिहार के लिए काफी खास माना जाता है क्योंकि इसी दिन पूरे प्रदेश में काफी धूमधाम से बिहार दिवस मनाया जाता है।

Written By :  Anshuman Tiwari
Published By :  Vidushi Mishra
Update:2022-03-22 11:33 IST

बिहार (फोटो-सोशल मीडिया)

Bihar Diwas: बिहार के लिए 22 मार्च का दिन काफी खास माना जाता है क्योंकि इसी दिन पूरे प्रदेश में काफी धूमधाम से बिहार दिवस मनाया जाता है। 1912 में 22 मार्च को ही संयुक्त प्रांत से अलग होने के बाद बिहार स्वतंत्र राज्य के रूप में अस्तित्व में आया था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब 2005 में राज्य की सत्ता संभाली थी तब उन्होंने 22 मार्च को धूमधाम से बिहार दिवस मनाने की शुरुआत की थी। इस बार भी बिहार दिवस के उपलक्ष्य में तीन दिनों तक विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।

प्राचीन काल से ही बिहार शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र रहा है और मौजूदा समय में भी बिहार के प्रतिभाशाली छात्रों ने विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में कामयाबी की अनोखी दास्तान लिखी है। प्राचीन काल में भारत ने बिहार के दम पर विश्व गुरु की पहचान बनाई थी। प्राचीन काल में नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय शिक्षा के सबसे बड़े केंद्र थे जहां पढ़ाई करने के लिए दुनिया भर के छात्र आते थे। मुस्लिम आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने 1199 ईसवी के आसपास नालंदा विश्वविद्यालय को पूरी तरह नष्ट कर दिया था।

पूरी दुनिया से पढ़ने आते थे छात्र

नालंदा विश्वविद्यालय अपनी शिक्षा के लिए विश्वविख्यात था और यहां बौद्ध धर्म के साथ ही अन्य धर्मों की भी शिक्षा दी जाती थी। यहां अध्ययन करने के लिए कोरिया, चीन, जापान, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस और तुर्की तक के छात्र आया करते थे।

प्राचीनकाल में भी इस विश्वविद्यालय का स्तर इतना ऊंचा था कि यहां कड़ी प्रवेश परीक्षा के बाद ही छात्रों को दाखिला मिल पाता था। चीन से भारत दौरे पर पहुंचे यात्री ह्वेनसांग और इत्सिंग ने भी नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण की थी।

नालंदा विवि (फोटो-सोशल मीडिया)

बताया जाता है कि विश्वविद्यालय में 10,000 से अधिक छात्र पढ़ा करते थे और उन्हें शिक्षा देने के लिए दो हजार से अधिक अध्यापक थे। यहां इतिहास, साहित्य, खगोल विज्ञान, ज्योतिष विज्ञान, कानून, गणित, भाषा विज्ञान, चिकित्सा शास्त्र और अर्थशास्त्र जैसे विषयों की शिक्षा दी जाती थी। 12 वीं शताब्दी तक यह विश्वविद्यालय बौद्ध शिक्षा का सबसे प्रमुख केंद्र रहा। इस विश्वविद्यालय के अब सिर्फ भग्नावशेष बचे हैं और इन्हें देखकर इसके शानदार अतीत का अंदाजा लगाया जा सकता है।

कुमारगुप्त ने की थी विश्वविद्यालय की स्थापना

इस विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त शासक कुमारगुप्त ने 450 ईसवी में की थी। बाद में अन्य शासकों ने भी नालंदा विश्वविद्यालय के वैभव और समृद्धि को बढ़ाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

इतिहासकारों के मुताबिक सम्राट अशोक और हर्षवर्धन ने यहां सबसे ज्यादा मठों, विहारों और मंदिरों का निर्माण कराया था। भारत के गौरवशाली इतिहास को याद दिलाने वाला बिहार का यह विश्वविद्यालय बाद में पूरी तरह नेस्तनाबूद कर दिया गया।

बख्तियार खिलजी ने रखी थी शर्त

तुर्की शासक बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को आग लगाकर पूरी तरह नष्ट कर दिया था। इस विश्वविद्यालय में इतनी ज्यादा पुस्तकें थीं कि पूरे 3 महीने तक यहां के पुस्तकालय में आग धधकती रही। खिलजी ने इस विश्वविद्यालय को नष्ट करने के साथ ही यहां के अनेक धर्माचार्यों और बौद्ध भिक्षुओं की हत्या भी कर दी थी।

इतिहासकारों ने बख्तियार खिलजी के इस विश्वविद्यालय को नष्ट करने की वजह भी बताई है। इतिहासकारों के मुताबिक एक बार खिलजी गंभीर रूप से बीमार पड़ गया। अपने हकीमो से काफी उपचार कराने के बाद भी वह ठीक नहीं हो सका।

तब उसे नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्र जी से उपचार कराने की सलाह दी गई। खिलजी ने आचार्य को उपचार के लिए तलब किया और उन्हें यह आदेश भी सुना दिया कि वह भारतीय दवाई का सेवन नहीं करेगा। उसने ठीक न होने पर आचार्य को हत्या पर भी धमकी दी थी।

इस तरह चुकाया एहसान का बदला

इसके बाद आचार्य ने खिलजी को कुरान की पृष्ठ संख्या बताते हुए कहा कि इससे पढ़ने पर वह ठीक हो जाएगा। आचार्य के कहने के मुताबिक कुरान के कई पृष्ठ पढ़ने के बाद खिलजी पूरी तरह ठीक हो गया। बताया जाता है कि आचार्य राहुल श्रीभद्र जी ने कुरान के कुछ पृष्ठों के कोने पर दवा का अदृश्य लेप लगा दिया था। वह थूक के साथ कई पृष्ठों पर लगी दवाई चाट गया जिसकी वजह से वह पूरी तरह स्वस्थ हो गया।

स्वस्थ होने के बावजूद उसे खुशी नहीं हुई बल्कि इस बात पर गुस्सा आया कि उसके हकीमो से ज्यादा ज्ञान भारतीय वैद्यों के पास कैसे हैं। इसी गुस्से के कारण उसने 1199 में नालंदा विश्वविद्यालय को आग लगाकर पूरी तरह नष्ट कर दिया। उसने काफी संख्या में भारतीय आचार्यों की हत्या भी कर डाली थी। बिहार ही नहीं पूरी दुनिया के लोग आज भी बिहार के गौरवशाली अतीत के रूप में नालंदा विश्वविद्यालय को याद किया करते हैं।

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