Bihar Politics: बिहार के अलावा राज्यसभा में भी बीजेपी की परेशानी बढ़ा गए नीतीश, जानें कैसे प्रभावित होगी एनडीए
Bihar Politics: केंद्र में मोदी राज आने के बाद बीजेपी ने 6 साल में चार विरोधी राज्य सरकारें गिराईं लेकिन बिहार में ये करिश्मा दिखाने में नाकामयाब रही।
Bihar Politics: बिहार में नीतीश कुमार को रिप्लेस कर खूद का मुख्यमंत्री बनाने की ख्वाब देखने वाली बीजेपी खुद ही सत्ता से रिप्लेस हो गई। दरअसल बिहार हिंदी पट्टी का एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां अभी तक बीजेपी अपना मुख्यमंत्री नहीं बना पाई है। संख्या बल में जदयू से आगे होने के बावजूद उसे बिहार में नीतीश कुमार को अपना नेता मानना पड़ा।
केंद्र में मोदी राज आने के बाद बीजेपी ने 6 साल में चार विरोधी राज्य सरकारें गिराईं लेकिन बिहार में ये करिश्मा दिखाने में नाकामयाब रही। नीतीश कुमार की सियासी चतुरता ने उसके सियासी प्लान को पंचर कर दिया। इससे बीजेपी न केवल बिहार जैसे बड़े राज्य की सत्ता से बाहर हो गई बल्कि राज्यसभा में भी उसका गणित गड़बड़ा गया है।
राज्यसभा में बहुमत से दूर हुई एनडीए
लोकसभा में बीजेपी के पास अपने बल पर बहुमत से कहीं अधिक सीटें हैं। लेकिन राज्यसभा में कहानी इसके विपरीत है। यहां बीजेपी अभी तक अपने बल पर तो छोड़िए सहयोगी दलों के साथ भी बहुमत का आंकड़ा छू नहीं पाई है। भगवा दल को हमेशा बीजद और जगनमोहन की पार्टी से समर्थन लेना पड़ा है। ऐसे में नीतीश कुमार की जदयू के एनडीए से हटने के बाद उच्च सदन में संख्या बल के मामले में सत्तारूढ़ एनडीए कमजोर हुई है।
राज्यसभा में फिलहाल सांसदों की संख्या 237 है। इस लिहाज से बहुमत का आंकड़ा 119 है। अभी तक एनडीए के पास सदन में 115 सांसद थे यानी बहुमत से मात्र चार कम। लेकिन जदयू के अलग होन के बाद ये आंकड़ा घटकर 110 पर चला गया है क्योंकि राज्यसभा में जदयू के 5 सदस्य हैं। राज्यसभा में फिलहाल आठ पद रिक्त हैं। इनमें से चार रिक्त पद जम्मू और कश्मीर, तीन नामित और एक त्रिपुरा का पद शामिल है। जम्मू कश्मीर के कोटे की सीट फिलहाल खाली रहेगी।
बीजेपी अपना सकती है ये रणनीति
राज्यसभा में पांच सांसदों का नुकसान सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन की अगुवाई करने वाली बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका है। ऐसे में पार्टी शीत सत्र के शुरू होने से पहले तीन नामित सदस्यों को राज्यसभा में मनोनीत कर सकती है। इसके अलावा त्रिपुरा की एक सीट भी उसके खाते में जानी तय है। ऐसे में सदन में उसका आंकड़ा एकबार फिर 114 तक पहुंच जाएगा। हालांकि, तब बहुमत का आंकड़ा भी 121 होगा। ऐसे में भगवा दल को अपने किसी भी विधेयक को पास कराने के लिए बीजद और वायएसआर कांग्रेस का समर्थन हासिल करना होगा, जिनके 9-9 सदस्य हैं। इन दोनों पार्टियों ने हालिया राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में खुलकर एनडीए का समर्थन भी किया था। इसके अलावा ये दोनों पार्टियां विपक्षी खेमे में भी अधिक सक्रिय नहीं रहती हैं।
महाराष्ट्र से नहीं मिला मनमाफिक परिणाम
बिहार में हुए सियासी उलटफेर से पहले बीजेपी ने महाराष्ट्र में यहीं कारनामा किया था। राजनीति जानकार कहते हैं कि नीतीश कुमार शिवेसना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे का हश्र देखकर ही सतर्क हो गए थे। बीजेपी शिवसेना में तोड़फोड़ करने में कामयाब तो हो गई लेकिन पार्टी को राज्यसभा में इसका कोई फायदा नहीं मिला, जहां उसकी हालत पलती है। लोकसभा में जरूर अधिकांश शिवसेना सांसद शिंदे गुट के पाले में आ गए मगर राज्यसभा के तीनों शिवसेना सांसद अभी भी उद्धव ठाकरे के प्रति समर्पित हैं।