Bihar Caste Census: बिहार में क्यों घट रही सवर्णों की आबादी,ब्राह्मणों, राजपूतों और कायस्थों की संख्या में आई गिरावट
Bihar Caste Census: जनगणना के आंकड़ों का एक उल्लेखनीय पहलू यह भी है कि सवर्ण जातियों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है। ब्राह्मणों, राजपूतों और कायस्थों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है जबकि भूमिहारों की संख्या में मामूली गिरावट दर्ज की गई है।
Bihar Caste Census: बिहार में जातीय जनगणना के आंकड़े जारी किए जाने के बाद राज्य में रहने वाली विभिन्न जातियों की संख्या पूरी तरह स्पष्ट हो गई है। बिहार सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक राज्य में अति पिछड़ा व पिछड़ा वर्ग की आबादी करीब 63 फ़ीसदी है। जातियों के लिहाज से सबसे ज्यादा संख्या यादवों की है और उनकी आबादी करीब 14.26 फ़ीसदी है।
जाती है जनगणना के आंकड़ों का एक उल्लेखनीय पहलू यह भी है कि सवर्ण जातियों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है। ब्राह्मणों, राजपूतों और कायस्थों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है जबकि भूमिहारों की संख्या में मामूली गिरावट दर्ज की गई है। अब उन कारणों की पड़ताल भी शुरू हो गई है कि आखिरकार सवर्ण जातियों की आबादी बिहार में क्यों घट रही है
सवर्णों की संख्या में आई गिरावट
बिहार में ब्राह्मणों की आबादी अभी तक आमतौर पर पांच फ़ीसदी मानी जाती रही है। यदि 1931 की जातीय गणना की रिपोर्ट को आधार माना जाए तो उसे समय ब्राह्मणों की आबादी 4.7 फीसदी थी मगर सोमवार को जारी किए गए आंकड़े के मुताबिक ब्राह्मणों की आबादी घटकर 3.65 फ़ीसदी रह गई है। 1931 की जातीय जनगणना में राजपूतों की आबादी 4.2 फ़ीसदी, भूमिहारों की आबादी 2.9 फीसदी और कायस्थों की आबादी 1.2 फ़ीसदी थी।
अब जारी नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक राजपूतों की आबादी 3.5 फ़ीसदी और कायस्थों की आबादी घटकर 0.66 फीसदी रह गई है। भूमिहारों की आबादी में मामूली गिरावट दर्ज की गई है और उनकी संख्या 2.87 फ़ीसदी रह गई है। जिन जातियों की संख्या में गिरावट आई है, उन जातियों के लोगों की ओर से इस मुद्दे को लेकर चिंता भी जताई जा रही है।
दूसरे राज्यों में जाकर बिहार से नाता तोड़ा
इस बात का कारण जानने का भी प्रयास किया जा रहा है कि ब्राह्मणों, राजपूतों, कायस्थों और भूमिहारों की संख्या में गिरावट क्यों आई है। जानकारों का का मानना है कि इन जातियों से जुड़े हुए लोगों का शिक्षा और रोजगार के सिलसिले में बिहार से बड़े स्तर पर पलायन हुआ है। जानकारों के मुताबिक शिक्षा और नौकरी-रोजगार के सिलसिले में इन जातियों से जुड़े हुए लोग काफी संख्या में बिहार से बाहर गए और फिर वही के होकर रह गए।
सवर्ण जातियों के लोगों के साथ यह तथ्य भी जुड़ा हुआ है कि इन जातियों के लोग जब बिहार से बाहर निकले तो उन्होंने दूसरे राज्यों में ही घर बनाकर वहां रहना शुरू कर दिया। फिर उनके आगे की पीढ़ी भी वहीं रहने लगी और धीरे-धीरे ऐसे लोगों का बिहार से कनेक्शन टूटा गया। काफी संख्या में ऐसे लोगों के नाम वोटर लिस्ट और अन्य सरकारी रिकॉर्ड से भी हट गए। जानकारों का कहना है कि सवर्ण जाति के ऐसे लोगों की संख्या काफी है जिन्होंने बिहार में अपनी जमीन जायदाद और मकान बेचकर दूसरे राज्यों में ही अपना ठौर-ठिकाना बना लिया।
भूमिहारों की संख्या में मामूली गिरावट
सवर्ण जातियों में सिर्फ भूमिहार जाति के लोग ही ऐसे हैं जिन्होंने दूसरे राज्यों में जाने के बावजूद बिहार से अपना संपर्क पूरी तरह खत्म नहीं किया। दूसरे राज्यों में शिक्षा, कारोबार या नौकरी के बावजूद इस बिरादरी से जुड़े लोगों ने अपने गांव से भी नाता जोड़ रखा है। यही कारण है कि भूमिहारों की आबादी में मामूली गिरावट दर्ज की गई है जबकि ब्राह्मणों, राजपूतों और कायस्थों की संख्या में ज्यादा गिरावट दर्ज की गई है।
जातीय जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक यादवों की आबादी सबसे ज्यादा 14.26 फ़ीसदी बताई गई है। इस तरह जातीय समीकरणों के लिहाज से यादवों को सबसे ताकतवर माना जा सकता है जबकि कुर्मी बिरादरी से जुड़े लोगों की संख्या में भी गिरावट आई है। सोमवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक कुर्मियों की आबादी 2.87 फ़ीसदी है। यादवों के बाद सबसे ज्यादा संख्या ब्राह्मण बिरादरी की 3.65 फ़ीसदी है।