Kurhani Assembly: अपने ही गढ़ में हार गया कुशवाहा प्रत्याशी, चिराग फैक्टर ने किया काम, समझे पूरा गणित
Kurhani Assembly Election: उपचुनावों में सबकी नजर यूपी और बिहार की सीटों पर थी। शुरुआती रुझान में बीजेपी इन दिनों ही राज्यों में पस्त थी। लेकिन शाम होते-होते पार्टी ने पासा पलट दिया।
Kurhani Assembly: कल यानी गुरूवार 8 दिसंबर का दिन देश की राजनीति में चुनाव नतीजों का दिन रहा। गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों के अलावा पांच राज्यों में हुए उपचुनाव के परिणाम भी आए। उपचुनावों में सबकी नजर यूपी और बिहार की सीटों पर थी। शुरुआती रुझान में बीजेपी इन दिनों ही राज्यों में पस्त थी। लेकिन शाम होते-होते पार्टी ने पासा पलट दिया। यूपी की रामपुर सीट पर आजम खान का किला ढ़हाने के साथ – साथ बिहार में महागठबंधन से कुढ़नी सीट भी छीन ली।
कुढ़नी के चुनाव परिणाम सियासी तौर पर काफी मायने रखते हैं। क्योंकि हाल – फिलहाल में बीजेपी को सबसे बड़ा झटका बिहार में ही लगा था। जहां पार्टी एकबार फिर साल 2015 वाली स्थिति में पहुंच गई है। भगवा दल के सामने राजद और जदयू जैसी दो ताकतवर पार्टियां हैं। जिनका जातीय समीकरण इतना मजबूत है कि बीजेपी इसके आगे नहीं टिकती है। साल 2015 का विधानसभा चुनाव इसका उदाहरण है। लेकिन कुढ़नी उपचुनाव के परिणाम ने इस अपराजेय सा दिखने वाले महागठबंधन के सामने बीजेपी को खड़े होने की ताकत दी है।
कुशवाहों के गढ़ में कुशवाहा उम्मीदवार को हराया
मुजफ्फरपुर जिले के जिस कुढ़नी विधानसभा क्षेत्र के परिणाम कल आए, वहां कुशवाहा वोटरों की तादाद सबसे अधिक है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू खुद को राज्य में कुर्मी, कोइरी और कुशवाहों का सबसे बड़ा नुमाइंदा बताती है। कुशवाहा वोटरों की अधिकता को देखते हुए जदयू ने मनोज सिंह कुशवाहा को मैदान में उतारा। जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा, संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा और खुद सीएम नीतीश ने यहां कई दिनों तक डेरा डाले रखा। इतना ही नहीं डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने अपने पिता लालू प्रसाद की बीमारी का भावनात्मक कार्ड भी खेला। लेकिन नतीजों ने जदयू और राजद के सारे दांव को बेकार कर दिया। बीजेपी के केदार गुप्ता ने महागठबंधन के साझा कैंडिडेट मनोज कुशवाहा को 3645 वोटों से हरा दिया। केदार को जहां 76,653 मत प्राप्त हुए जबकि कुशवाहा को 73,008 वोट मिले।
कुढ़नी का जातीय समीकरण और चिराग का रोल
कुढ़नी विधानसभा सीट के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां कुल 3 लाख मतदाताओं में 38 हजार कुशवाहा, 32 हजार यादव, 23 हजार मुस्लिम, 35 हजार वैश्य, 25 हजार निषाद, 20 हजार दलित, भूमिहार 18 हजार, गैर – भूमिहार सवर्ण 20 हजार हैं। इनमें सवर्ण और कुछ ओबीसी मतदाता पहले से ही बीजेपी के साथ खड़े थे। चुनाव प्रचार में चिराग पासवान की एंट्री ने दलितों को भी बीजेपी की ओर मोर दिया। सीएम नीतीश के खिलाफ अक्सर हमलावर रहने वाले चिराग ने यहां राज्य सरकार को कानून व्यवस्था और शराबबंदी को लेकर जमकर घेरा। उन्होंने सरकार पर शराबबंदी कानून के जरिए दलितों को प्रताड़ित करने का आरोप लगाया। नतीजे आने के बाद महागठबंधन में शामिल कांग्रेस और हम ने भी इस हार के लिए शराबबंदी कानून को जिम्मेदार ठहराया है।
महागठबंधन की खुशफहमी टूट रही
बिहार में महागठबंधन बनने के बाद से हुए उपचुनाव के परिणाम खासे रोचक रहे हैं। राज्य में नए सिरे से इस गठबंधन के आकार लेने के बाद बीजेपी करीब-करीब अलग-थलग पड़ चुकी थी। 15 फीसदी यादव, 11 फीसदी कुर्मी-कोरी-निषाद और 17 मुसलमान फीसदी वोटरों की बदौलत महागठबंधन को हराना लगभग मुश्किल नजर आ रहा था। लेकिन गोपालगंज और कुढ़नी के चुनाव परिणाम ने महागठबंधन की खुशफहमी को एक तरह से तोड़ दिया है। इतने मजबूत जातीय समीकरणों के बावजूद ये बीजेपी को जीतने से रोक नहीं सके। इन चुनाव परिणामों ने बीजेपी को साल 2024 के रण के लिए बड़ा हौसला दिया है। बीजेपी यूपी की तरह अब बिहार में भी सवर्ण, दलित और गैर-यादव ओबीसी जातियों को साधने के मिशन पर जुट गई है।