वित्त मंत्री ने बताया-इन बैंकों की हालत सबसे ज्यादा खराब, जल्द आ रहा नया कानून

लोकसभा में बुधवार के दिन भी सदन में चर्चा जारी रही। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि देश के 227 अर्बन को-ऑपरेटिव बैंकों की माली हालत बेहद खराब है।

Update:2020-09-16 18:35 IST
वित्त मंत्री ने कहा कि विपक्ष हम पर क्रोनी कैपिटलिज्म का आरोप लगाता है। हमारी सरकार ने यूपीआई की सुविधा दी और डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा दिया।

नई दिल्ली : लोकसभा में बुधवार के दिन भी चर्चा जारी रही। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि देश के 227 अर्बन को-ऑपरेटिव बैंकों की माली हालत बेहद खराब है।

इसके अलावा 105 को-ऑपरेटिव बैंक ऐसे हैं, जिनके पास जरूरी न्यूनतम नियामकीय पूंजी तक नहीं है। जबकि 47 को-ऑपरेटिव बैंकों की नेटवर्थ निगेटिव है। वहीं, 328 अर्बन को-ऑपरेटिव बैंकों की कुल नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स 15 फीसदी से अधिक हैं।

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इंडियन करेंसी की फोटो(सोशल मीडिया)

सरकार बैंकिंग रेग्युलेशन एक्ट, 1949 में करना चाहती है संशोधन

अनुदान की अनुपूरक मांगों को रखते हुए वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा कि इससे देश का राजकोषीय घाटा नहीं बढ़ेगा। वित्त मंत्री संसद के निचले सदन में कहा कि केंद्र सरकार बैंकिंग रेग्युलेशन एक्ट, 1949 में संशोधन कर बैंक उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा सुनिश्चित करना चाहती है।

इससे पहले उन्होंने कहा कि बढ़ते एनपीए के कारण संकट में आए सरकारी बैंकों को राहत के लिए ये कदम उठाया जा रहा है।

वित्त मंत्री ने कहा कि कोरोना संकट के बीच कर्जदारों से पैसे वापस नहीं मिलने के कारण सरकारी बैंक दबाव में हैं। उनका नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए) बढ़ रहा है। सरकार इन बैंकों को पूंजी उपलब्ध कराकर नकदी संकट से निकल पाएगी।

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बैंक के बाहर पैसे निकालने के लिए लोगों की जमा भीड़(फोटो-सोशल मीडिया)

बैंकों पर इसलिए है दबाव

वित्त मंत्री ने कहा कि कोरोना संकट के बीच कर्जदारों से पैसे वापस नहीं मिलने के कारण सरकारी बैंक दबाव में हैं। उनका नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए) बढ़ रहा है। सरकार इन बैंकों को पूंजी उपलब्ध कराकर नकदी संकट से निकल पाएगी।

उन्होंने ये भी कहा कि जब भी कोई बैंक किसी भी तरह की मुश्किल में पड़ता है तो उसमें जमा लोगों के कड़ी मेहनत से कमाए पैसे संकट में फंस जाते हैं।

गौरतलब है कि निर्मला सीतारमण ने संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को रीकैपिटलाइजेशन बॉन्ड के जरिये 20 हजार करोड़ रुपये देने के लिए संसद की मंजूरी मांगी थी। इसके पीछे सरकार का तर्क था इस तरह के कदम से सरकारी बैंक को फायदा पहुंचेगा।

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