MDH Success Story: एक तांगे वाले से व्यापारी तक का सफर

MDH Success Story : “असली मसाले सच सच MDH" घरों, दुकानों में और टीवी पर हम इस मसाले के पैकेट को देखते आ रहे है। इस मसाले के पीछे की कहानी कम ही लोग जानते हैं अगर आपको भी नहीं पता तो यहां जानिए.....

Update:2023-04-13 22:31 IST
Pic Credit ( Social Media)

MDH Success Story: भारत के खाने में मसालों का रोल एहम है। भारतीय इतिहास इस बात का उल्लेख करता है, जिस तरह से भारत के नवाब, राजा - महाराज स्वाद से भरपूर व्यंजन खाने के प्रेमी थे। मसालों का ही जायका था। स्वादिष्ट खाने की चाह में भारत में मसालों को लेकर गिने चुने ब्रांड आए। जो हमारे खाने में घुलकर हमे अपनी आदत लगवाएं है। भारतीय मसालों में एक ऐसा ब्रांड है जो सालों से घर घर में इस्तेमाल किया जा रहा है। वह ब्रांड है MDH,श MDH यानी महाशिया दी हट्टी लिमिटेड जोकि खाने में जायका लाने वाले मसालों के निर्माता, वितरक और निर्यातक है।

आईए जानते है इतने बड़े मसाले ब्रांड की शुरुआत कैसे हुई?

वर्ष 1919 में सियालकोट (अब पाकिस्तान में) में महाशय चुन्नीलाल गुलाटी द्वारा स्थापित की गई थी। तब से लेकर अबतक MDH, भारतीय बाजार में रेडीमेड मसालों का विस्तार समूचे भारत में हो गई है। भारत के साथ अन्य दूसरे देशों में भी इसका निर्यात किया जाता है। MDH की सियालकोट से लेकर दिल्ली में एक छोटी सी दुकान से देश भर में विस्तार की यात्रा बनी है। एक समूह जो 150 पैकेजों में उपलब्ध 62 से अधिक प्रकार के मसालों का निर्माण करता है, असाधारण काम से कम नहीं है। कंपनी के कर्ताधर्ता- चुन्नीलाल के पुत्र धरमपाल गुलाटी के चेहरे को सभी लोग पहचानते है। 27 मार्च 1923 में धर्मपाल गुलाटी जी का जन्म हुआ था।महाशय धर्मपाल चुन्नीलाल के तीन बेटों में से दूसरे थे, जिनकी सियालकोट में मसालों की दुकान थी। विभाजन के वक्त, परिवार अमृतसर के एक शरणार्थी-शिविर में आ गए थे, लेकिन फिर 27 सितंबर 1947 को धर्मपाल दिल्ली पहुंचे। वहां, उन्होंने एक तांगा (घोड़ा गाड़ी) खरीदा और पर्यटकों को सवारी देने लगे। एमडीएच के मालिक के जीवन पर लिखी एक बुकलेट के मुताबिक, जब उससे भी बात नहीं बनी तो धर्मपाल ने दिल्ली के अजमल खान रोड पर गुड़ बेचना शुरू कर दिया।
धर्मपाल ने भारतीय मसालों के लिए एक आउटलेट शुरू करने के लिए खजूर रोड, कृष्णा गली पर 1948 की शुरुआत में एक जमीन खरीदा और अपना पैतृक व्यवसाय आगे बढ़ने की सोची। धरमपाल ने अपने पिता चुन्नीलाल के साथ दिल्ली के गड़ोदिया मार्केट, कटरा ईश्वर भवन, कटरा हुसैन बख्श और तिलक नगर मार्केट से जमीन पर प्राकृतिक मसाले बेचना शुरू किया। इस तरह एक छोटे उद्योग से नए स्वाद के साम्राज्य की शुरुआत हुई।

पैकेजिंग भी किया शुरु

दिल्ली में अपनी दुकान से, घर पर डिलीवरी करने के लिए धर्मपाल ने मसालों की पैकेजिंग करने का भी भार उठया। अपने उत्पाद को एक अलग पैकेजिंग और ब्रांडिंग देने का निर्णय लिया। इससे उन्हें बाजार में पहली बार आगे बढ़ने में मदद मिली और MDH(एमडीएच) सही अर्थों में एक स्टार्ट-अप की तरह पनप रहा था। पैक्ड मसालों की मांग बढ़ती रही।
जहां सियालकोट में पिसे मसालों का फलता-फूलता बाजार था, वहीं दिल्ली में इसकी भारी कमी थी। इसलिए, लकड़ी की एक छोटी सी दुकान में, धर्मपाल ने पीसने से लेकर पैकिंग से लेकर शिपिंग तक सब कुछ किया। लेकिन यह प्रक्रिया धीमी और श्रमसाध्य थी, इस वजह से कंपनी मसालों की मैकेनिकल ग्राइंडिंग का विकल्प चुनना चाहती थी।
1967 में, धर्मपाल ने दिल्ली के कीर्ति नगर में एक जमीन खरीदा और एक छोटा कारखाना स्थापित किया, जिससे उनका व्यवसाय बढ़ गया। आज, MDH के पास राजस्थान में, दिल्ली, गुड़गांव, नागौर और सोजत में, पूरी तरह से स्वचालित विनिर्माण संयंत्र हैं। उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद और पंजाब के अमृतसर और लुधियाना में शाखाएं बनाई गई हैं।
मसालों की पैकेजिंग, व्यवसाय को बढ़ाना और एक भरोसेमंद आपूर्ति श्रृंखला की स्थापना ने धर्मपाल के लाभ के लिए काम किया और भारतीय मसाला बाजार के राजा के रूप में अपनी जगह बनाई। आज के समय में MDH एवरेस्ट मसालों के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा मसाला उत्पादक और विक्रेता है।

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