मौद्रिक नीति: 4 दिसंबर को आएगा फैसला, EMI कम होने के आसार नहीं

बैंकों को भी अपने रोजमर्रा के कामकाज के लिए भारी-भरकम रकम की जरूरत पड़ जाती है और वे भारतीय रिजर्व बैंक से कर्ज लेते हैं। इस ऋण पर रिजर्व बैंक जिस दर से उनसे ब्याज वसूल करता है, उसे रेपो रेट कहते हैं।

Update:2020-12-02 18:21 IST
फैसले पर इसका भी दबाव रहता है। अगले कुछ महीने अर्थव्यवस्था के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण हैं। अगर विकास दर सकारात्मक होती हैं तो एमपीसी बैठक में दरें घटाने पर फैसला हो सकता है।

नीलमणि लाल

नई दिल्ली: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने आज से अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा के लिए दो दिन की बैठक शुरू की है। बैठक में हुए फैसलों की घोषणा 4 दिसंबर को की जाएगी। ये तय माना जा रहा है कि इस बार केंद्रीय बैंक नीतिगत दरों में किसी तरह का बदलाव नहीं करेगा। यानी ब्याज दरों और ईएमआई में राहत के आसार नहीं हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि खुदरा महंगाई की दर बढ़ने के कारण मौद्रिक नीति समिति फिर ब्याज दरों में बदलाव नहीं करेगी. बाद में जरूरत महसूस होने पर ब्याज दरों में कटौती की जा सकती है. रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्‍यक्षता वाली छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति की अक्टूबर 2020 में हुई पिछली बैठक में नीतिगत दरों में बदलाव नहीं किया गया था।

 

इसकी वजह महंगाई में बढ़ोतरी

 

रिजर्व बैंक का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान देश की अर्थव्यवस्था में 9.5 फीसदी की गिरावट आएगी। इस साल फरवरी से केंद्रीय बैंक रेपो दर में 1.15 फीसदी की कटौती कर चुका है। मुद्रास्फीति लगातार रिजर्व बैंक के मध्यम अवधि के लक्ष्य 4 फीसदी से ऊपर बनी हुई है। ऐसे में मौद्रिक समीक्षा में ब्याज दरों में कटौती की गुंजाइश बहुत कम है। अक्टूबर महीने में खुदरा महंगाई की दर 7.61 फीसदी पहुंच गई, जो साढ़े छह साल में सबसे ज्यादा है। खुदरा महंगाई लगातार छह महीने से आरबीआई के अनुमानित लक्ष्य छह फीसदी से ऊपर बनी हुई है।

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कोरोना संकट के बीच देश की अर्थव्यवस्था में चालू वित्त वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही जुलाई-सितंबर में 7.5 फीसदी की गिरावट आई है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार इससे पूर्व वित्त वर्ष 2019-20 की इसी तिमाही में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में 4.4 फीसदी की वृद्धि हुई थी। लिहाजा नीतिगत फैसले पर इसका भी दबाव रहता है। अगले कुछ महीने अर्थव्यवस्था के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण हैं। अगर विकास दर सकारात्मक होती हैं तो एमपीसी बैठक में दरें घटाने पर फैसला हो सकता है।

 

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क्या है रेपो रेट

 

बैंक हमें कर्ज देते हैं और उस कर्ज पर हमें ब्याज देना पड़ता है। ठीक वैसे ही बैंकों को भी अपने रोजमर्रा के कामकाज के लिए भारी-भरकम रकम की जरूरत पड़ जाती है और वे भारतीय रिजर्व बैंक से कर्ज लेते हैं। इस ऋण पर रिजर्व बैंक जिस दर से उनसे ब्याज वसूल करता है, उसे रेपो रेट कहते हैं। जब बैंकों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध होगा यानी रेपो रेट कम होगा तो वो भी अपने ग्राहकों को सस्ता कर्ज दे सकते हैं और यदि रिजर्व बैंक रेपो रेट बढ़ाएगा तो बैंकों के लिए कर्ज लेना महंगा हो जाएगा और वे अपने ग्राहकों के लिए कर्ज महंगा कर देंगे।

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