SBI Loan Offer: अब SBI देगा तुरंत लोन, बाजार से जुटाए 10 हजार करोड़ रुपये

SBI Loan Offer: आम तौर पर इसकी मैच्योरिटी अवधि 10 साल से अधिक होती है। यहां पर पैसे डूबने की संभावना नहीं होती है, क्योंकि बैंक को इसके कुछ फंड का हिस्सा आरबीआई के पास लिक्विड कैश, गोल्ड या फिर दूसरे सिक्योरिटीज रूप में रखना होता है।

Update: 2023-08-05 01:30 GMT
SBI Loan Offer (सोशल मीडिया)

SBI Loan Offer: देश में अधिकांश लोगों को अपनी बड़ी जररुतें ऋण के माध्यम से पूरा करते हैं, इसके लिए उन्हें बैंक पर निर्भर होना पड़ा है। लोगों को लोन मुहैया करवाने के लिए बैंकों को कापी पूंजी की जरूरत होती है और यह जरूरत केवल जमा राशि से पूरी नहीं हो सकती है तो इसके लिए बैंक अगल-अगल प्रकार के बॉन्ड्स इश्यू करते हैं। इन बॉन्ड्स के माध्यम से बैंक बाजार से पैसा इकठ्ठा करता है और इसके बदले इसमें निवेश करने वाले लोगों को अच्छा ब्याज देते हैं। इससे होता क्या है कि लोगों के दो उद्देश्य पूरे होते हैं। एक बैंक को पूंजी मिल जाती है, जिससे वह अधिक संख्या लोन प्रदान करता है, दूसरा इन बॉन्ड्स में निवेश कर लोग अच्छा लाभ कमाते हैं।

इस कड़ी में देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) ने इंफ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड्स को जारी किया था। इस बॉन्ड के जरिये बैंक ने बाजार से 10,000 करोड़ रुपये जुटाए, जो कि 31 जुलाई तक था। जिन लोगों ने एसबीआई के इंफ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड्स में निवेश किया है, उन्हें 7.54 फीसदी का ब्याज मिलेगा। बैंक ने इनकी मैच्योरिटी अवधि 15 साल की तय की है।

यह लोग जारी कर सकते हैं इंफ्रा बांड्स

इन बॉन्ड के संदर्भ में Fixed Matters ने अपनी रिपोर्ट एक खुलासा किया है और यह बताया कि आखिर बैंक ऐसे बॉन्ड्स क्यों जारी करते हैं? रिपोर्ट में कहा कि यह देखने को मिला है कि पिछले कुछ सालों में लोन की मांग काफी बढ़ी है। ऐसे में बैंकों के पास उपलब्ध जमा राशि से इसको पूरा नहीं किया जा सकता है, इसलिए बैंक पैसों की जरूरतों को पूरा करने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड्स और कैपिटल मार्केट्स के दूसरे इंस्ट्रूमेंट्स के माध्यम से पैसा हासिल करती हैं। रिपोर्ट कहती है कि ऐसे निवेश का मैच्योरिटी पीरियड लंबा होता है। इससे बैंकों को एसेट-लायबिलिटी मिसमैच जैसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है।

निवेशक कभी भी निकाल सकता पैसा

जिन लोगों ने एसबीआई के इंफ्र बॉन्ड में निवेश किया है, किसी प्रकार की समस्या आने पर वह कभी भी पैसा निकाल सकते हैं। आम तौर पर इसकी मैच्योरिटी अवधि 10 साल से अधिक होती है। यहां पर पैसे डूबने की संभावना नहीं होती है, क्योंकि बैंक को इसके कुछ फंड का हिस्सा आरबीआई के पास लिक्विड कैश, गोल्ड या फिर दूसरे सिक्योरिटीज रूप में रखना होता है। यह नियम इसलिए तैयार किया गया है कि अगर बैंक के पास अचानक फाइनेंशियल क्राइसिस आ जाए तो इससे निपटा जा सके। ऐसे फंड्स या रिजर्व को कैश रिजर्व रेशियो और स्टैचुटरी लिक्विडिटी रेशिया कहा जाता है।

बॉन्ड्स पर लागू नहीं होती ये शर्त

दरअसल, बैंकों को रिजर्व का कुछ हिस्सा केंद्रीय बैंक के पास रखना होता है। इससे कर्ज के लिए उन्हें फंड की कमी होती है। हालांकि इंफ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड्स से जुटाए गए पैसे पर CRR या SLR की शर्तें लागू नहीं होती हैं। इससे जुटाए पैसों का उपयोग बैंक लोन देने के लिए कर पाता है।

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