Babasaheb Dr. Bhimrao Ambedkar: अंबेडकर की सही कहानी, नई नस्लों को है बतानी

Babasaheb Dr. Bhimrao Ambedkar: डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने दलित चेतना समेत तमाम विषयों पर महत्वपूर्ण साहित्यिक योगदान दिया है। उन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं और उनकी निजी लाइब्रेरी में 50 हजार से भी ज्यादा पुस्तकें थीं।

Written By :  Yogesh Mishra
Published By :  Shashi kant gautam
Update:2021-12-06 21:21 IST

परिनिर्वाण दिवस : बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर: photo - social media

Babasaheb Dr. Bhimrao Ambedkar: जब जब बाबा साहब भीमराव अंबेडकर (Babasaheb Dr. Bhimrao Ambedkar) का परिनिर्वाण दिवस (Parinirvana Diwas) आता है, तब तब कई अनुत्तरित सवाल अपना उत्तर माँगने के लिए उठ खड़े होते हैं। यह दुर्भाग्य है कि हम सब उन सवालों का उत्तर देने की जगह नये नये मोड़ पर ले जाकर उन सवालों को छोड़ आना चाहते हैं। पर यह भूल जाते हैं कि सवालों को भटकाने की जगह उनका समीचीन उत्तर दे देना ज़्यादा ज़रूरी है, क्योंकि इन सवालों के जवाब जब बहुत दिनों बाद आयेंगे तब कई पीढ़ियाँ अविश्वास की जद में आ चुकी होंगी।

संविधान से बेनेगल नरसिम्हा राव (Benegal Narasimha Rao) व सच्चिदानंद सिन्हा (Satchidanand Sinha) का क्या रिश्ता था? क्या केवल डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने ही संविधान लिखा था? क्या संविधान (Constitution) लिखने के अलावा देश व समाज के लिए उनका कोई अन्य योगदान नहीं है? जिस संविधान पर हम इतना इतरा रहे हैं , उसमें हमारा मौलिक अंश कितना है? क्या वजह है कि संविधान में 105 संशोधन हो चुके हैं? इतने संशोधनों के बाद क्या संविधान का पुनरावलोकन नहीं होना चाहिए? समाज संविधान से सुधरता है या फिर संस्कृति से?

बेनेगल नरसिम्हा राव: photo - social media

राजनीति (Politics) समाज को बांटती है

राजनीति (Politics) समाज को बांटती है । जबकि संस्कृति समाज को सहेजती है। वर्तमान पीढ़ी (current generation) को इतिहास परम्परा, संस्कृति व संस्कारों से परिचित कराना क्या हमारी ज़िम्मेदारी नहीं है? जिस संविधान के आधार पर हमारे देश की शिक्षा नीति,प्रशासन व न्याय व्यवस्था चल रही है । उसका पुनरावलोकन होना चाहिए? संविधान वास्तव में हमारा नहीं है। हिन्दी राजभाषा के रूप में स्वीकार की गयी । लेकिन आज भी न्यायालयों की भाषा अंग्रेजी बनी हुई है। महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) हिन्द स्वराज में लिखते हैं हम अंग्रेजियत को स्वीकार नहीं करेंगे।

अंग्रेजों ने भारत में जो संस्कृति फैलायी उसने हमारे देश की एकता, अखण्डता व बहुलता को नष्ट किया। 1857 के संघर्ष को अंग्रेजों ने सिपाहियों का विद्रोह करार दिया। वीर सावरकर ने पहली बार इसे स्वाधीनता संग्राम नाम दिया। महात्मा गांधी ने कहा था कि हमको ग्राम समाज चाहिए। हमारा विकास का रास्ता गांव से होकर जायेगा और हुआ उसके उल्टा। लोकतंत्र पश्चिम की नक़ल है। लोकतंत्र से लोक गायब हो गया।आज भी बहुत सारे कानून 1947 के पहले के बने हैं । उनमें संशोधन होना चाहिए। भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में स्वराज,स्वधर्म,स्वदेशी व स्वभाषा की बात थी। ये प्रयोग में कहा हैं?

सच्चिदानंद सिन्हा: photo - social media

डॉ. भीमराव अम्बेडकर का साहित्यिक योगदान

डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने दलित चेतना समेत तमाम विषयों पर महत्वपूर्ण साहित्यिक योगदान दिया है। उन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं और उनकी निजी लाइब्रेरी में 50 हजार से भी ज्यादा पुस्तकें थीं। माना जाता है कि अपने समय कि यह दुनिया की सबसे बड़ी निजी लाइब्रेरी थी। डॉ. अम्बेडकर हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, फ्रेंच, पाली, जर्मन, मराठी, पर्शियन और गुजराती जैसी 9 भाषाओँ के ज्ञाता थे। वे कुल 64 विषयों के ज्ञाता थे। उन्होंने करीब 21 साल तक सभी धर्मों का गहन अध्ययन किया था। यह कितने लोग जानते हैं? इसे क्यों नहीं बताया जाता है?

भारत में जातियां - उनका मशीनीकरण, उत्पत्ति और विकास। अंबेडकर की यह किताब मई, 1917 में प्रकाशित हुई थी। उसी साल कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने अंबेडकर को डॉक्टरेट की डिग्री दी थी। इस पुस्तक का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ। 'भगवान बुद्ध और उनका धम्म' - अंबेडकर ने अपने जीवन के आखिरी दिनों में इस किताब को पूरा किया था। उनकी यह किताब साल 1957 में उनके निधन के बाद प्रकाशित हुई। यह किताब बौद्ध धर्म पर की गई उनकी समीक्षा और विश्लेषण के लिए जानी जाती है।'शूद्र कौन थे?' - डॉ अंबेडकर की यह ऐतिहासक पुस्तक 1946 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अंबेडकर ने शूद्र वर्ण की उत्पत्ति की चर्चा की है। अंबेडकर ने इस किताब को ज्योतिराव फुले को समर्पित किया है।


अम्बेडकर की सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली पुस्तकों

'बुद्ध या कार्ल मार्क्स' - अंबेडकर की यह सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली पुस्तकों में से एक है। इस किताब में उन्होंने मार्क्सवाद के मूल सिद्धांतों की व्याख्या की है। उन्होंने इस किताब में इस सवाल का भी उल्लेख किया है कि यह कुछ साफ नहीं है कि मार्क्सवादियों के बीच तानाशाही कब तक चलेगी। इस किताब में अंबेडकर ने समाज में फैली छूआछूत और भेदभाव को मिटाने के लिए बुद्ध धर्म अपनाने पर जोर दिया और इसकी व्याख्या की है। 'जातियों का विनाश / संहार' - डॉ अंबेडकर की यह पुस्तक भारतीय राजनीति पर लिखी गई सबसे महत्वपूर्ण पुस्तकों में से एक है। इस पुस्तक को डॉ. अंबेडकर ने साल 1936 में लिखा था। इसमें उन्होंने हिन्दू धर्म और इसकी जाति-व्यवस्था की कठोर निंदा की है।'पाकिस्तान या भारत का विभाजन' – यह पुस्तक 1945 में मूल रूप से प्रकाशित हुई थी। यह किताब पाकिस्तान, हिन्दू - मुस्लिम आदि तमाम मुद्दों पर आधारित है। 'रुपये की समस्या: इसका मूल और इसका समाधान' - अंबेडकर की यह किताब अर्थशास्त्र पर लिखी उनकी सर्वश्रेष्ठ किताबों में से एक है। उनकी यह किताब ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में चलाए जाने वाली मुद्रा पर सवाल खड़े करती है।

डा. अम्बेडकर ने कई पत्र-पत्रिकाएं भी निकालीं। 'मूक नायक' : अम्बेडकर ने इस मराठी पाक्षिक पत्र का प्रकाशन 31 जनवरी, 1920 को शुरू किया। इसके संपादक पाण्डुराम नन्दराम भटकर थे। अम्बेडकर इस पत्र के अधिकृत संपादक नहीं थे। 'मूक नायक' पत्रिका सभी प्रकार से दलितों की ही आवाज थी। इस पत्र ने दलितों में एक नयी चेतना का संचार किया गया तथा उन्हें अपने अधिकारों के लिए जागरूक किया। यह पत्र आर्थिक अभावों की वजह से बहुत दिन तक नहीं चल सका। 'मूक-नायक' बन्द हो जाने के बाद डा. अम्बेडकर ने 3 अप्रैल, 1927 को अपना दूसरा मराठी पाक्षिक अखबार 'बहिष्कृत भारत' शुरू किया। यह पत्र तब के बांम्बे से प्रकाशित होता था। इसका संपादन डा. अम्बेडकर खुद ही करते थे। इसके माध्यम से वे अस्पृश्य समाज की समस्याओं और शिकायतों को सामने लाने और अपने आलोचकों को जवाब भी देने का काम करते थे। इस पत्र के एक सम्पादकीय में उन्होंने लिखा,"यदि तिलक अछूतों के बीच पैदा होते तो यह नारा नहीं लगाते कि 'स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है' बल्कि वह यह कहते कि 'छुआछूत का उन्मूलन मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है।"

मुख पत्र 'समता' पत्रिका का प्रकाशन 29 जून, 1928 को शुरू हुआ

डा. अम्बेडकर द्वारा समाज सुधार के लिए स्थापित संस्था 'समता संघ' का मुख पत्र 'समता' था। इस पत्रिका का प्रकाशन 29 जून, 1928 को शुरू हुआ था। इसके संपादक थे देवराव विष्णु नाइक। यह पत्र भी कुछ ही दिन चल सका।

'जनता' का प्रवेशांक 24 नवम्बर, 1930 को आया था। यह फरवरी 1956 तक कुल 26 साल तक चलता रहा। इस पत्रिका के जरिये डा. अम्बेडकर ने दलित समस्याओं को उठाने और दलित शोषित लोगों को जाग्रत करने का काम किया।14 अक्टूबर, 1956 को बाबा साहेब डा. अम्बेडकर ने लाखों लोगों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था। इसके क्रम में उन्होंने 'जनता' पत्र का नाम बदलकर 'प्रबुद्ध भारत' कर दिया। डा. अम्बेडकर के सभी पत्र मराठी भाषा में ही प्रकाशित हुए क्योंकि बाबा साहेब का कार्य क्षेत्र महाराष्ट्र ही था। मराठी वहां की जन भाषा थी।

डा. अम्बेडकर लिखी गईं कुछ अन्य महत्वपूर्ण किताबें

कुछ अन्य महत्वपूर्ण किताबें-'भारत का राष्ट्रीय अंश', 'वेटिंग फॉर ए वीजा', ' हिन्दू धर्म के दर्शन', 'प्राचीन भारत में क्रांति' , 'भारत में बौद्ध धर्म का पतन', 'संघ बनाम स्वतंत्रता', 'जाति विच्छेद', 'गांधी एवं अछूतों की विमुक्ति', 'भारत में लघु कृषि और उनके उपचार', 'द अनटचेबलस: ए थीसिस ऑन द ओरिजन ऑफ अनटचेबिलिटी, 'रनाडे', 'गांधी और जिन्ना', 'द कॉन्सटीट्यूशन ऑफ इंडिया', 'एडमिनिस्ट्रेशन एंड फाइनेंस ऑफ द ईस्ट इंडिया कंपनी', 'पाकिस्तान पर विचार', 'ब्रिटिश भारत में साम्राज्यवादी वित्त का विकेन्द्रीकरण', 'ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त का अभ्युदय' आदि। डॉ अंबेडकर अपने समय के भारत के पहले आदमी थे जिन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय व लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स दोनों से तालीम पाई थी।

भारत में रिज़र्व बैंक ऑफ और बिजली के पारेषण व्यवस्था के जनक भी हैं। पर अंबेडकर के समर्थक, उनके अनुयायी व अंबेडकर की फ़ोटो लगाकर दलित मतदाताओं को लुभाने वालों के लिए यह ज़रूरी है कि वे डॉ. भीमराव अंबेडकर की इन विशेषता को भी बताते व रेखांकित करते चलें। क्यों कि जिस दिन हमारी आने वाली पीढ़ी को यह पता लगेगा कि संविधान सभा के अध्यक्ष देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे, संविधान का पहला प्रारूप भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी व अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश रहे बेनेगल नरसिम्हा राव व सच्चिदानंद सिन्हा ने तैयार करके दिया था। डॉ. अंबेडकर प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। तब नई नस्लों में गुजरी हुई पीढ़ियों से अविश्वास के हालात के सिवाय कुछ नहीं होगा।

( लेखक पत्रकार हैं ।)

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