Communal Violence: भगत सिंह 92 साल पहले बता चुके थे दंगों का कारण और उसका निदान

Communal Violence: भगत सिंह ने कहा है कि सांप्रदायिक दंगों का बुनियादी कारण आर्थिक है। कार्ल मार्क्स को रेफर करते हुए कहते हैं कि दुनिया में हर एक क्राइसिस की वजह आर्थिक कारण है।

Written By :  Krishna Chaudhary
Published By :  Shashi kant gautam
Update:2022-04-23 23:02 IST

शहीद–ए–आजम भगत सिंह-सांप्रदायिक दंगों की वजह और उसके निदान: Photo - Social Media

Violence In India: देश में हालिया दिनों एक सांप्रदायिक घटनाओं (communal incidents) की एक नई लहर देखी जा रही है। आप भारत के मानचित्र से देश का कोई भी कोना या कोई भी राज्य उठा लिजिए, आपको यहां पर सांप्रदायिक घटनाओं की खबर जरूर मिल जाएगी। उत्तर में यूपी (Uttar Pradesh), बिहार (Bihar) हो या पूर्व में बंगाल (West Bengal), झारखंड (Jharkhand), पश्चिम में गुजरात, महाराष्ट्र हो या दक्षिण का केरल, कर्नाटक हर जगह सांप्रदायिकता ने गहरी जड़ें जमा लीं है।

ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि जब आधुनिक दुनिया इतनी तेज रफ्तार वाली हो चुकी है तब आखिर लोगों के पास एक दूसरे से नफरत के लिए इतना समय कैसे मिल जाता है। महान स्वतंत्रता सेनानी शहीद –ए –आजम भगत सिंह (Great freedom fighter Shaheed-e-Azam Bhagat Singh) ने आज से 92 साल पहले सांप्रदायिक दंगों की वजह और उसके निदान (Causes and solutions of communal riots) को लेकर जून 1928 में किरती अखबार में एक विस्तृत लेख लिखा था।

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क्यों होते हैं सांप्रदायिक दंगे

शहीद –ए –आजम भगत सिंह लाहौर में हुए दंगे (riots in lahore) से काफी व्यथित थे। दंगों में मची मारकाट से वे इतने दु:खी हो गए थे कि उन्होंने यहां तक कह दिया था कि 'अगर ऐसी स्थिति रही तो हिंदुस्तान का भविष्य बहुत अंधकारमय है। इन 'धर्मों' ने हिंदुस्तान का बेड़ा गर्क़ कर दिया है। इन दंगों ने संसार की नज़रों में भारत को बदनाम कर दिया है।' वे कहते हैं 'ऐसी स्थिति में हिंदुस्तान का ईश्वर ही मालिक है।' भगत सिंह के अनुसार, सांप्रदायिक दंगों का बुनियादी कारण आर्थिक है। वे कार्ल मार्क्स को रेफर करते हुए कहते हैं कि दुनिया में हर एक क्राइसिस की वजह आर्थिक (Economic) कारण है।

भगत सिंह कहते हैं कि इतिहास गवाह है जब लोगों के पास काम करने के लिए नौकरी नहीं होती है और खाने के लिए रोटी नहीं होती है तब समाज में अशांति फैलने लगती है। लोग एक दूसरे के खून के प्यासे होने लगते हैं और फिर सांप्रदायिक दंगे होने लगते हैं। वे आगे कहते हैं कि विश्व में जो भी काम होता है, उसकी तह में पेट का सवाल ज़रूर होता है।

आर्थिक सुधार से रोके जा सकते हैं दंगे

भगत सिंह का मानना है कि भारत में दंगे इसलिए बढ़ रहे हैं क्योंकि यहां की आर्थिक हालत बेहद खराब होती जा रही है। इसलिए जबतक देश की आर्थिक सेहत दुरूस्त नहीं होगी, लोगों के पास करने को काम नहीं होंगे तब तक इस चुनौती से पार पाना मुश्किल है। उनका मानना है कि लोगों के आर्थिक दशा में सुधार (improvement in economic condition) आने से दंगें रूक जाएंगे। वे कहते हैं कि भारत के लोगों की हालत इतनी खराब है कि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को चवन्नी देकर किसी को अपमानित करा सकता है। भगत सिंह तत्कालीन ब्रिटिश सरकार का उल्लेख करते हुए कहते हैं इनके रहते हुए भारत के लोगों की आर्थिक दशा में सुधार लाना मुमकिन नहीं है। इसलिए हमें तबतक चैन से नहीं बैठ चाहिए, जबतक सरकार न बदल जाए।

अपने असली दुश्मन को पहचानें

वामपंथी सोच से प्रभावित भगत सिंह सांप्रदायिक दंगों को रोकने के लिए लोगों में वर्ग चेतना के उभार को जरूरी मानते हैं। वे गरीब, मेहनतकशों औऱ किसानों को समझाने की कोशिश करते हैं कि उनका असली दुश्मन पूंजीपति है। इसलिए वे उनके हथकंडों से बचने की सलाह देते हैं। वे संसार के सभी गरीबों से धर्म, रंग, नस्ल और राष्ट्रीयता व देश के भेदभाव मिटाकर एकजुट होने और सरकार की ताक़त अपने हाथों में लेने का प्रयत्न करने की अपील करते हैं। उनका तात्पर्य़ था कि सत्ता श्रमिक वर्ग के हाथ में हो।

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भगत सिंह, रूस में हुए बोल्शेविक क्रांति (Bolshevik Revolution in Russia) का जिक्र करते हुए कहते हैं कि जार के शासनकाल में वहां हर समय दंगे हुआ करते थे, लेकिन जिसदिन श्रमिक का शासन (साम्यवाद) हुआ, वहां का नक्शा ही बदल गया। अब वहां कभी दंगे नहीं हुए। अब वहां सभी को इंसान समझाता है न कि धर्मजन। वे कहते हैं कि जार के समय रूसियों की आर्थिक दशा बेहद खराब थी, इसलिए वहां दंगे –फसाद हुआ करते थे, मगर अब रूसियों की आर्थिक दशा सुधर गई है और उनमें वर्ग-चेतना आ गई है इसलिए अब वहां से कभी किसी दंगे की ख़बर नहीं आती।

दंगे अक्सर गरीब बस्तियों में

दरअसल भगत सिंह के लेख को हमें वर्तमान परिपेक्ष्य में समझने की जरूरत है। इतने सालों में जहां भी दंगे हुए, हमने ये कभी नहीं देखा और सुना कि दंगे किसी जगह के पॉश इलाके में हुए और दंगों में कोई व्यापारी य़ा कोई सर्विस करने वाला आदमी शामिल हुआ। न ही हमने किसी धार्मिक या सियासी नेता को इन दंगों का नेतृत्व करते हुए पाया। ये दंगे अक्सर गरीब बस्तियों में होते आए हैं, जहां ज्यादातर बेरोजगार और अशिक्षित आबादी निवास करती है। दंगों का शिकार अक्सर यही गरीब वर्ग होता है। यही वजह है कि भगत सिंह अपने लेख में गरीबों पर विशेष फोकस रखते हुए उन्हें अपने हक के लिए एकजुट होने की अपील कर रहे हैं।

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