इम्युनिटी हुई कमः खतरे में ये लोग, संभल कर कहीं दूसरी बार न हो जाए कोरोना

इन दिनों एक बार फिर से कोरोना वायरस के सामने आ रहे मामलों से पूरे देश की स्थिति हद से ज्यादा खराब होती जा रही है।

Published By :  Vidushi Mishra
Update:2021-04-11 11:42 IST

फोटो-सोशल मीडिया

नई दिल्‍ली। इन दिनों एक बार फिर से कोरोना वायरस के सामने आ रहे मामलों से पूरे देश की स्थिति हद से ज्यादा खराब होती जा रही है। इनमें से कई शहरों में तो संक्रमण तबाही का रूप लेता जा रहा है। जिसके चलते कोरोना के टीकाकरण के अभियान को अब और तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है। लेकिन इस बीच लोगों के दिमाग में ये सवाल बार-बार क्लिक कर रहा है कि कितने लंबे समय के लिए कोरोना वायरस संक्रमण के खिलाफ प्राकृतिक इम्‍युनिटी बनी रहती है। 

वायरस को बेअसर करने की प्रक्रिया खत्‍म

प्राकृतिक इम्युनिटी के बारे में इंस्‍टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्‍स एंड इंटिग्रेटिव बायोलॉजी (IGIB) की तरफ से किए गए एक अध्‍ययन में दावा किया गया है कि कोरोना वायरस के खिलाफ प्राकृतिक इम्‍युनिटी बनी रहती है। लेकिन कुल संक्रमितों में से 20 से 30 प्रतिशत लोगों ने 6 महीने के बाद इस प्राकृतिक इम्‍युनिटी को गंवा दिया है।

इस बारे में आईजीआईबी के डायरेक्‍टर डॉ. अनुराग अग्रवाल ने एक ट्वीट में कहा, 'अध्‍ययन में पाया गया कि 20 से 30 प्रतिशत लोगों के शरीर में वायरस को बेअसर करने की प्रक्रिया खत्‍म होने लगी। ऐसा तब हुआ जब वे सीरोपॉजिटिव थे।'

आगे डॉ. अग्रवाल का कहना है कि 6 महीने का यह अध्‍ययन इस बात का पता लगाने में सहायक होगा कि आखिर क्‍यों मुंबई जैसे शहरों में अधिक सीरोपॉजिटिविटी होने के कारण भी संक्रमण से राहत क्‍यों नहीं मिल रही है।


संक्रमणों से लड़ने और मौत से बचाने में महत्‍वपूर्ण

बता दें, यह शोध काफी महत्‍वपूर्ण है क्‍योंकि इससे ये जाना जा सकता है कि आखिरकार देश में कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर कब तक रहेगी। ऐसे में यह वैक्‍सीन के महत्‍व को भी दर्शाता है। फिलहाल शोध अभी भी जारी है। लेकिन मौजूदा समय में कई ऐसी वैक्‍सीन हैं जो संक्रमणों से लड़ने और मौत से बचाने में महत्‍वपूर्ण मानी जाती हैं।

कई शोधकर्ताओं का कहना है कि इस शोध से यह जानने में मदद मिलेगी कि दिल्‍ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में लोगों के शरीर में अधिक सीरोपॉजिटिविटी होने के बाद कोरोना के अधिक मामले क्‍यों आ रहे हैं।

वहीं आईजीआईबी के वरिष्‍ठ वैज्ञानिक डॉ. शांतनू सेन गुप्‍ता ने बताया, 'सितंबर में हमने सीएसआईआर की लैब में सीरो सर्वे किया था। इसमें केवल 10 प्रतिशत प्रतिभागियों में ही वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी मिली थीं। लेकिन हमने इस पर 3 से 6 महीने तक निगरानी रखी और जांच की।'

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