Chhath Puja ka Mahatva: छठ सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि महापर्व है, सूर्य देव की बहन छठी मैय्या की पूजा से हर कष्ट होता दूर

Chhath Puja ka Mahatva: छठ सिर्फ एक पर्व नहीं है, बल्कि महापर्व है, जो पूरे चार दिन तक चलता है और समाज के हर वर्ग के लोग बहुत उत्साह से इसमें हिस्सा लेते हैं।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Vidushi Mishra
Update:2021-11-09 17:52 IST

Chhath Puja ka Mahatva: खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश (UP me Chath Puja)में छठ पर्व का विशेष महत्व है। वास्तव में छठ सिर्फ एक पर्व नहीं है, बल्कि महापर्व है, जो पूरे चार दिन तक चलता है और समाज के हर वर्ग के लोग बहुत उत्साह से इसमें हिस्सा लेते हैं। छठ की शुरुआत नहाए-खाए से इसकी शुरुआत होती है, जो डूबते और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर समाप्त होती है। ये पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में।

चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ और कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए ये पर्व मनाया जाता है। इसका एक अलग ऐतिहासिक महत्व भी है। छत पूजा में सामाजिक संदेश भी छिपा हुआ है।

सूर्यषष्ठीि व्रत में लोग उगते हुए सूर्य की भी पूजा करते हैं, डूबते हुए सूर्य की भी उतनी ही श्रद्धा से पूजा करते हैं। इसमें कई तरह के संकेत छिपे हैं। ये पूरी दुनिया में भारत की आध्यत्मिक श्रेष्ठयता को दिखाता है।

इस पूजा (Chhath Puja) में जातियों के आधार पर कहीं कोई भेदभाव नहीं है, समाज में सभी को बराबरी का दर्जा दिया गया है। सूर्य देवता को बांस के बने जिस सूप और डाले में रखकर प्रसाद अर्पित किया जाता है, उसे सामा‍जिक रूप से अत्यं त पिछड़ी जाति के लोग बनाते हैं। इससे सामाजिक संदेश एकदम स्पपष्टे है।


सूर्य देव की आराधना (surya puja vidhi

ऐसी मान्यता है कि छठ देवी सूर्यदेव की बहन है। इसलिए छठ पर्व पर छठ देवी को प्रसन्न करने के क्रम में सूर्य देव की आराधना की जाती है। किसी भी नदी या सरोवर के तट पर सूर्यदेव की पूजा की जाती है। महाभारत में भी छठ पूजा का उल्लेख किया गया है। पांडवों की माँ कुंती को विवाह से पूर्व सूर्य देव की उपासना कर आशीर्वाद स्वरूप पुत्र की प्राप्ति हुई थी। पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भी उनके कष्ट दूर करने के लिए छठ पूजा की थी।

पौराणिक कथाओं के अनुसार यह भी माना जाता है कि यह भारत के सूर्यवंशी राजाओं के मुख्य पर्वों से एक था। कहा जाता है कि एक समय मगध सम्राट जरासंध के एक पूर्वज का कुष्ठ रोग हो गया था। इस रोग से निजात पाने हेतु राज्य के शाकलद्वीपीय मग ब्राह्मणों ने सूर्य देव (surya puja vidhi) की उपासना की थी। जिससे राजा के पूर्वज को कुष्ठ रोग से छुटकारा मिला और तभी से छठ पर सूर्योपासना की प्रातः आरंभ हुई।

चतुर्थी से सप्तमी तक पूजन (Saptami Puja Vidhi)

कार्तिक माह (Kartik Maah 2021) में ये पर्व शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से आरंभ होकर सप्तमी तक चलता है। प्रथम दिन यानी चतुर्थी तिथि को नहाय-खाय के रूप में मनाया जाता है। इस दिन व्रत करने वाले और घर के सारे लोग चावल-दाल और कद्दू से बने व्यंजन प्रसाद के तौर पर ग्रहण करते हैं। वास्ताव में ये अगले 3 दिनों तक चलने वाली पूजा की शारीरिक और मानसिक तैयारी है।

दूसरे दिन, कार्तिक शुक्ल पंचमी (kartik shukla panchami 2021) को शाम में मुख्यं पूजा होती है. इसे खरना कहा जाता है। प्रसाद के रूप में गन्ने के रस या गुड़ में बनी खीर चढ़ाई जाती है। कई घरों में चावल का पिट्ठा भी बनाया जाता है। लोग उन घरों में जाकर प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिन घरों में पूजा होती है। संध्याकाल में उपासक प्रसाद के रूप में गुड-खीर, रोटी और फल आदि का सेवन करते है और अगले 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखते हैं। मान्यता है कि खरन पूजन से ही छठ देवी प्रसन्न होती है और घर में वास करती है।


तीसरे दिन, कार्तिक शुक्ल षष्ठीे की शाम को अस्तातचलगामी सूर्य को अर्घ्यद दिया जाता है। व्रती के साथ-साथ सारे लोग डूबते हुए सूर्य को अर्घ्यद देते हैं। चौथे दिन, कार्तिक शुक्ल सप्ततमी को उगते सूर्य को अर्घ्यक देने के बाद पारण के साथ व्रत की समाप्ति लो होती है।

मान्यता है कि छठ व्रत पूर्ण नियम तथा निष्ठा से करने से नि:संतान को संतान सुख की प्राप्ति होती हैं और धन-धान्य की प्राप्ति होती है। उपासक का जीवन सुख-समृद्धि से परिपूर्ण रहता है।

पूजा विधि (chhath puja vidhi)

पर्व से दो दिन पूर्व चतुर्थी पर स्नानादि से निवृत्त होकर भोजन किया जाता है।पंचमी को उपवास करके संध्याकाल में किसी तालाब या नदी में स्नान करके सूर्य भगवान को अर्ध्य दिया जाता है। इसके बाद अलोना भोजन किया जाता है।

षष्ठी के दिन सुबह स्नानादि के बाद संकल्प लिया जाता है। पूरा दिन निराहार और नीरजा निर्जल रहकर पुनः नदी या तालाब पर जाकर स्नान किया जाता है और सूर्यदेव को अर्ध्य दिया जाता है।

अर्ध्य देने का तरीका


बांस के सूप में केला एवं अन्य फल, अलोना प्रसाद, ईख आदि रखकर उसे पीले वस्त्र से ढक दें। एक दीप जलाकर सूप में रखें और सूप को दोनों हाथों में लेकर मन्त्र का उच्चारण करते हुए तीन बार अस्त होते हुए सूर्यदेव को अर्ध्य दें।

ऊं एहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते। अनुकम्पया मां भवत्या गृहाणार्ध्य नमोअस्तुते॥


प्रसाद का महत्व (chhath prasad ka mahtav)

छठ पूजा में वैसे तो कई तरह के प्रसाद चढ़ाए जाते हैं लेकिन उसमें सबसे अहम ठेकुए का प्रसाद होता है, जिसे गुड़ और आटे से बनाया जाता है। छठ की पूजा इसके बिना अधूरी मानी जाती है। छठ के सूप में इसे शामिल करने के पीछे वैज्ञानिक तर्क यह है कि छठ के साथ सर्दी की शुरुआत हो जाती है और ऐसे में ठंड से बचने और सेहत को ठीक रखने के लिए गुड़ बेहद फायदेमंद होता है। छठी की पूजा में प्रसाद में केले का पूरा गुच्छ चढ़ाया जाता है। छठ में केले का भी खास महत्व है।

यही वजह है कि प्रसाद के रूप में इसे बांटा और ग्रहण किया जाता है। इसके पीछे तर्क यह है कि छठ पर्व बच्चों के लिए किया जाता है और सर्दियों के मौसम में बच्चों में गैस की समस्या हो जाती है। ऐसे में उन्हें इस समस्याह से बचाने के लिए प्रसाद में केले को शामिल किया जाता है।

प्रसाद में गन्ना भी चढ़ाया जाता है। अर्घ्य देते समय पूजा की सामग्री में गन्ने का होना जरूरी होता है। ऐसा माना जाता है कि छठी मैय्या को गन्ना बहुत प्रिय है। इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। बताया जाता है कि सूर्य की कृपा से ही फसल उत्पन्न होती है और इसलिए छठ में सूर्य को सबसे पहले नई फसल का प्रसाद चढ़ाया जाता है। गन्ना उस नई फसल में से एक है। छठ के सूप में नारियल जरूर होता है और इसके पीछे तर्क यहल है कि मौसम में बदलाव के कारण होने वाले सर्दी जुकाम की समस्या से नारियल हमें बचाने में मदद करता है।


इसके अलावा नारियल कई तरह के अहम पौष्टिक तत्व मौजूद हैं, जो इम्यून सिस्टम को बेहतर रखने में मदद करते हैं और यही वजह है की इसे प्रसाद में शामिल किया जाता है। प्रसाद में डाभ नींबू जो कि एक विशेष प्रकार का नींबू है इसे भी जरूर चढ़ाया जाता है। ये दिखने में बड़ा और बाहर से पीला और अंदर से लाल होता है। आपको बता दें डाभ नींबू हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होता है और ये हमें कई रोगों से दूर रखता है। डाभ नींबू हमें बदलते मौसम में बीमारियों से लड़ने के लिए तैयार करता है।

बिहार से ख़ास सम्बन्ध (chhath puja bihar)

सूर्य की पूजा के साथ-साथ षष्ठीक देवी की पूजा की अनूठी परंपरा बिहार के इस सबसे बड़े लोकपर्व में देखी जाती है। यही बात इस पूजा के मामले में प्रदेश को खास बनाती है। बिहार में सूर्य पूजा सदियों से प्रचलित है। सूर्य पुराण में यहां के देव मंदिरों की महिमा का वर्णन मिलता है। यहां सूर्यपुत्र कर्ण की जन्मस्थली भी है।

अत: स्वाभाविक रूप से इस प्रदेश के लोगों की आस्थार सूर्य देवता में ज्याूदा है। सबसे बड़ी खासियत यह है कि मंदिर का मुख्यथ द्वार पश्चिम दिशा की ओर है, जबकि आम तौर पर सूर्य मंदिर का मुख्यस द्वार पूर्व दिशा की ओर होता है। मान्यता है कि यहां के विशेष सूर्य मंदिर का निर्माण देवताओं के शिल्पीत भगवान विश्वमकर्मा ने किया था। स्थािपत्यब और वास्तुहकला कला के दृष्टिकोण से यहां के सूर्य मंदिर बेजोड़ हैं।

Tags:    

Similar News