कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति पर असर डालेंगे चुनावी नतीजे,पांच राज्यों में अच्छा प्रदर्शन नहीं रहा तो पार्टी में बढ़ेगी कलह

विधानसभा चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए काफी अहम माना जा रहे हैं। इन राज्यों के चुनाव नतीजों में हार या जीत दोनों ही स्थितियों में कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति पर काफी असर पड़ने वाला है।

Written By :  Anshuman Tiwari
Published By :  Vidushi Mishra
Update:2022-03-07 16:32 IST

कांग्रेस (फोटो-सोशल मीडिया)

New Delhi: पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए काफी अहम माना जा रहे हैं। इन राज्यों के चुनाव नतीजों में हार या जीत दोनों ही स्थितियों में कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति पर काफी असर पड़ने वाला है। यूपी में तो कांग्रेस पहले ही ज्यादा मजबूत स्थिति में नहीं दिख रही है मगर यदि पार्टी पंजाब की सत्ता बरकरार रखने में कामयाब रही और उत्तराखंड व गोवा में पार्टी के लिए सकारात्मक नतीजे निकले तो पार्टी नेतृत्व के लिए आगे की राह निश्चित तौर पर आसान होगी।

दूसरी ओर यदि पार्टी इन तीन राज्यों में अपेक्षा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर सकी तो निश्चित रूप से कांग्रेस के असंतुष्ट खेमे की आवाज को और दम मिल जाएगा। सियासी जानकारों का मानना है कि ऐसी हालत में नेतृत्व के लिए आगे चलकर और चुनौतियां खड़ी होंगी।

उत्तर प्रदेश में ज्यादा सक्रिय नहीं दिखे राहुल

हाल के वर्षों में कई राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को लगातार हार का सामना करना पड़ा है। पार्टी के ऐसे राज्यों में भी भाजपा को मजबूत चुनौती देने में सक्षम नहीं हो सकी जहां पार्टी का संगठन मजबूत माना जाता है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस नेतृत्व के लिए चुनाव नतीजे काफी असरकारक साबित होंगे। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य के चुनाव में भी राहुल गांधी ने वह सक्रियता नहीं दिखाई जिसकी उम्मीद उनसे की जा रही थी।

प्रदेश में चुनावी कमान पूरी तरह प्रियंका गांधी ने अपने हाथों में संभाल रखी थी और उन्होंने काफी मेहनत भी की। हालांकि उत्तर प्रदेश में पार्टी का संगठनात्मक ढांचा काफी लचर होने के कारण प्रियंका की मेहनत के बावजूद आशाजनक परिणाम मिलते नहीं दिख रहे हैं।

पंजाब के चुनाव नतीजे पार्टी के लिए अहम

पंजाब का चुनाव पार्टी के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है। कैप्टन अमरिंदर सिंह की मुख्यमंत्री पद से विदाई के बाद भी मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के बीच ट्यूनिंग बैठाने में नेतृत्व कामयाब नहीं हो सका।

हालांकि राहुल गांधी ने मुख्यमंत्री चन्नी को पार्टी का सीएम चेहरा जरूर घोषित कर दिया मगर उसके बाद सिद्धू भी ज्यादा सक्रिय नहीं दिखे। जानकारों का कहना है कि वे भीतर ही भीतर पार्टी नेतृत्व के फैसले से नाराज थे और इसी कारण चुनाव प्रचार के आखिरी दिनों में उन्होंने ज्यादा सक्रियता नहीं दिखाई।

पंजाब के चुनाव में इस बार कांग्रेस को आम आदमी पार्टी से तगड़ी चुनौती मिलती दिख रही है और ऐसी स्थिति में यदि पार्टी अपनी सरकार बचाने में कामयाब नहीं हो सकी तो निश्चित रूप से नेतृत्व पर सवाल उठेंगे। पंजाब से कांग्रेस सांसद और असंतुष्ट खेमे के मुखर नेता मनीष तिवारी इसके लिए तैयार बैठे हैं। मुख्यमंत्री पद के करीब पहुंचकर भी कुर्सी न पाने वाले सुनील जाखड़ भी मन ही मन नाराज बताए जा रहे हैं।

विपक्ष में घट जाएगा रुतबा

दूसरा सबसे अहम सवाल विपक्ष में कांग्रेस की कमजोर पड़ती आवाज का है। अगर चुनावी नतीजे कांग्रेस के अनुरूप नहीं रहे तो विपक्ष में कांग्रेस का रुतबा और कमजोर हो जाएगा। हाल के दिनों में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी गैर भाजपाई और गैर कांग्रेसी विपक्ष का मोर्चा बनाने की कोशिश में जुटी हुई है। हाल के दिनों में उन्होंने इस बाबत तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन से संपर्क भी साधा है।

वे कांग्रेस पर लगातार हमला भी बोलती रही हैं। उत्तर प्रदेश के चुनाव में भी ममता ने समाजवादी पार्टी को समर्थन दिया मगर कांग्रेस की पूरी तरह अनदेखी कर दी। उन्होंने अखिलेश यादव के समर्थन में लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद वाराणसी में चुनावी सभा को भी संबोधित किया। इससे समझा जा सकता है कि वे कांग्रेस को किनारे करके विपक्ष का बड़ा मोर्चा बनाने की कोशिश में जुटी हुई हैं। ऐसे हालात में अगर चुनावी नतीजे कांग्रेस के पक्ष में नहीं रहे तो ममता की आवाज और मजबूत हो जाएगी।

दूसरे राज्यों पर भी पड़ेगा असर

हाल के दिनों में कांग्रेस छोड़कर जाने वाले नेताओं की फेहरिस्त लगातार लंबी होती जा रही है। चुनाव से पहले भी कई नेताओं ने पार्टी से किनारा किया है। नतीजों में पार्टी के मजबूत न होने पर पार्टी छोड़ने वालों की संख्या और बढ़ सकती है। पांच राज्यों में चुनाव के बाद कांग्रेस को गुजरात और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव भी लड़ना है।

अगर चुनावी नतीजे कांग्रेस को मजबूती देने वाले रहे तो निश्चित रूप से आने वाले दिनों में चुनावी राज्यों में कांग्रेस को मजबूती मिलेगी। कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव भी सितंबर-अक्टूबर में होने वाला है और चुनावी नतीजों का असर कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव पर भी पड़ेगा।

असंतुष्ट खेमा फिर हो सकता है सक्रिय

कांग्रेस में एक बड़ा असंतुष्ट खेमा है जो पार्टी संगठन में आमूलचूल परिवर्तन और स्थायी अध्यक्ष की मांग करता रहा है। गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, मनीष तिवारी, कपिल सिब्बल, राज बब्बर और भूपिंदर सिंह हुड्डा जैसे तमाम नामचीन चेहरे असंतुष्ट खेमे से जुड़े हुए हैं।

अगर चुनावी नतीजे कांग्रेस को मजबूती देने वाले नहीं रहे तो इन असंतुष्ट नेताओं की गतिविधियां पार्टी नेतृत्व को और बेचैन बना सकती हैं। यदि कांग्रेस अपनी मजबूती दिखाने में कामयाब रही तो निश्चित रूप से राहुल गांधी की पार्टी पर पकड़ मजबूत होगी और उनके फैसलों को लेकर सवाल उठाने वाले नेपथ्य में चले जाएंगे।

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