Coronavirus: वैज्ञानिकों ने टेस्टिंग का ढूंढा नया तरीका, सिर्फ 3 घंटे में आएंगे नतीजे
Coronavirus: ICMR ने कोरोना वायरस जांच के नए तरीके यानी सेलाइन गार्गल RT-PCR विधि को मंजूरी दे दी है।
Coronavirus Testing: देशभर में कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर का प्रकोप जारी है। बीते दिनों से कोरोना के मामलों में कमी देखने को मिल रही है। बीते 24 घंटे की बात करें तो इस दौरान 1 लाख 73 हजार से ज्यादा लोग संक्रमित हुए हैं, जबकि 3 हजार 617 लोगों ने इस संक्रमण के चलते अपनी जान गंवा दी है। कोरोना को काबू में करने के लिए केंद्र से लेकर राज्य सरकारें ने सख्त पाबंदियां लागू कीं और साथ ही वैक्सीनेशन और टेस्टिंग बढ़ाने पर भी जोर दिया गया।
महामारी का प्रकोप शुरू होने के साथ ही भारत ने अपने यहां कोविड-19 की जांच के बुनियादी ढांचे और क्षमता को बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं। इस बीच CSIR यानी काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च के तहत नागपुर नेशनल एनवायर्नमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (NEERI) के वैज्ञानिकों ने एक नया रिकॉर्ड बना दिया है।
इस मेथड से होंगे कई फायदे
दरअसल, वैज्ञानिकों ने कोरोना के नमूनों की टेस्टिंग के लिए 'नमक के पानी से गरारे आरटी-पीसीआर विधि' ढूंढी है, जिससे एक साथ कई तरह के लाभ मिलते हैं। नमक के पानी से गगारे (सेलाइन गार्गल) की विधि न केवल आसान, तेज और प्रभावी है, बल्कि इसके परिणाम भी जल्दी आते हैं।
केवल 3 घंटे में मिलेंगे नतीजे
इस विधि के बारे में बताते हुए NEERI में पर्यावरण विषाणु साइंस डिपार्टमेंट के सीनियर वैज्ञानिक डॉ. कृष्णा खैरनार ने कहा कि स्वैब कलेक्शन मेथड के लिए समय की आवश्यकता है। साथ ही इस तकनीक में सम्भावित संक्रमित मरीजों को कुछ असुविधा का भी सामना करना पड़ जाता है और वे कभी कभी इससे असहज भी हो जाते हैं। लेकिन सेलाइन गार्गल की आरटी-पीसीआर विधि आसान, आरामदायक और रोगी के लिए आरामदायक व अनुकूल है। इससे नमूना तुरंत ले लिया जाता है और महज तीन घंटे में ही नतीजे मिल जाते हैं।
डॉ. कृष्णा खैरनार ने कहा कि यह विधि इतनी आसान है कि खुद मरीज भी अपना नमूना इकट्ठा कर सकता है। उन्होंने कहा नमक के पानी से गरारे की आरटी-पीसीआर विधि में नमक के पानी से भरी एक साधारण सी संग्रह ट्यूब का इस्तेमाल किया जाता है। मरीज इस पानी के घोल से गरारे करते हैं और उसे ट्यूब के अंदर डाल देता है।
पर्यावरण के अनुकूल है यह मेथड
इसके बाद सैंपल को लैब ले जाकर एनईईआरआई द्वारा तैयार किए गए एक विशेष बफर घोल यानी सोल्युशन में कमरे के तापमान पर रखा जाता है। फिर इश घोल को गर्म करके एक RNA टेम्प्लेट तैयार किया जाता है, जिसे आगे रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पोलीमरेज चेन रिएक्शन (आरटी-पीसीआर) के लिए संसाधित किया जाता है। डॉ. कृष्णा खैरनार ने कहा इससे लोग अपना सैंपल खुद ले सकते हैं और खुद का टेस्ट भी कर सकते हैं। यह मेथड पर्यावरण के अनुकूल भी है।
आईसीएमआर की भी मिली मंजूरी
बता दें कि इस तकनीक को आईसीएमआर की ओर से मंजूरी भी मिल गई है। वैत्रानिकों को उम्मीद है कि टेस्टिंग का यह अनोखा तरीका ग्रामीण और आदिवासी इलाकों के लिए विशेषतौर पर लाभदायक साबित होगी। डॉ. खैरनार और उनकी टीम को उम्मीद है कि इस विधि को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जाएगा। जिससे तेजी और मरीजों के अनुकूल टेस्टिंग हो सकेगी और महामारी की लड़ाई को जीतने में और मजबूती मिलेगी।
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