सावधान! बड़ा खुलासा कोरोना रोगियों में हो रही बोन डेथ, कई अन्य तरह की बीमारियां भी बना रहीं शिकार, एम्स ने बड़ी स्टडी की मांग की

कोरोना वायरस महामारी दुनिया में आने के बाद से ही इसके संक्रमण से जीवन का जोखिम तो बना ही हुआ है। वहीं इसके अलावा इस संक्रमण से ठीक हुए लोगों को बाद में कई तरह की अन्य बीमारियां हो जा रही हैं।

Published By :  Bishwajeet Kumar
Written By :  Neel Mani Lal
Update: 2022-01-30 14:26 GMT

प्रतीकात्मक तस्वीर

नई दिल्ली। कोरोना (corona) की दूसरी लहर में जो लोग संक्रमित हुए और ठीक भी हो गए, उनमें कोई न कोई स्वास्थ्य संकट अब भी जारी है। बहुत से ऐसे लोगों में एवस्कुलर नेक्रोसिस (एवीएन) या बोन डेथ की समस्या देखी जा रही है। दिल्ली एम्स ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research) से कहा है कि कोरोना से ठीक हो चुके रोगियों में एवीएन के मामलों की जांच के लिए एक व्यापक स्टडी की जानी चाहिए।

बोन डेथ क्या है?

ओस्टियोनेक्रोसिस, एवीएन या बोन डेथ (Bone Death) कोई नई बीमारी नहीं है। कोरोना आने से पहले यह धूम्रपान, शराब और स्टेरॉयड के उपयोग के कारण पाई जाती थी। एवीएन युवाओं में कूल्हों के दर्द का एक आम कारण है। यह हड्डी में ब्लड की सीमित सप्लाई के कारण होता है, जिसके परिणामस्वरूप हड्डी का घनत्व और भार वहन करने की क्षमता कम हो जाती है। हड्डी खराब हो कर छोटे टुकड़ों में टूट भी जाती है जिसमें रोगी को असहनीय दर्द होता है और पूरी तरह से गतिशीलता खो देता है। कूल्हे की हड्डियों में इस अवस्था का खतरा अधिक होता है।

एम्स ने कोरोना से ठीक हुए 50 मरीजों में एवीएन का पता लगाया है। इसमें से पांच की हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी हुई। मुंबई के नानावती अस्पताल (Nanavati Hospital) में भी ऐसे दस रोगियों ने कोरोना से उबरने के बाद हिप रिप्लेसमेंट कराया है। महाराष्ट्र, दिल्ली, कर्नाटक और केरल जैसे राज्यों के प्रमुख निजी अस्पतालों ने पिछले साल गंभीर कोरोना के रोगियों में औसतन ऐसे 10 मामले सामने आए हैं। दूसरी लहर में डेल्टा वेरिएंट (Delta Variants) की वजह से गंभीर संक्रमण के चलते मरीजों को स्टेरॉयड (Steroids) की भारी खुराकें भी दीं गईं थीं। ये भी बोन डेथ का एक कारण माना जा रहा है। लेकिन एम्स में बोन डेथ 50 मरीजों में से 12 ऐसे थे जिनको स्टेरॉयड नहीं दिया गया था। ला। एक्सपर्ट्स का ये भी कहना है कि कोरोना वायरस के कारण इंट्रावास्कुलर रक्त के थक्के भी फेमर में बोन डेथ का कारण बनते हैं।

खून के थक्कों से ब्लड सप्लाई बाधित हो जाती है और हड्डी नरम हो कर मरने लगती है। हृदय को रक्त की आपूर्ति कम हो जाती है तो रोगी को दिल का दौरा पड़ सकता है। मस्तिष्क में ये स्ट्रोक का कारण बन सकती है। यह कंधे, घुटने, हाथ और पैर को भी प्रभावित कर सकता है।

ऑर्थोपेडिक एक्सपर्ट्स (orthopedic experts) के अनुसार, कोरोना से ठीक होने वाले मरीजों में एवीएन के लक्षण विकसित होने में महीनों लग जाते हैं। एक साल बाद भी लक्षण आ सकते हैं।

मई 2021 में मुंबई के हिंदुजा अस्पताल (Hinduja Hospital) ने केवल तीन मामलों के अध्ययन के साथ एवस्कुलर नेक्रोसिस पर एक शोध पत्र प्रकाशित किया था। इसके मुख्य निष्कर्षों में से एक यह था कि पोस्ट स्टेरॉयड एक्सपोजर डेवलप होने में आम तौर पर छह महीने से एक वर्ष तक का समय लगता है। लेकिन जिन लोगों पर अध्ययन किया गया उनमें कोरोना के निदान के 58 दिनों के बाद ही एवीएन सामने आ गया।

बोन डेथ और कोरोना पर व्यापक स्टडी की जरूरत इसलिए समझी जा रही है ताकि इल्ज, जोखिम और पूर्वानुमान संबंधी कारकों का पता लग सके। हालांकि, इस तरह के एक अध्ययन का संचालन करना मुश्किल होगा। कोविड के बाद की जटिलताओं के लिए, मरीज अलग-अलग अस्पतालों में जाते हैं, इसलिए व्यापक अध्ययन के लिए इस तरह के डेटा को इकट्ठा करना चुनौतीपूर्ण होगा।

एवीएन के लक्षण और इलाज

एवीएन के रोगी को कूल्हे और जोड़ों के आसपास दर्द होता है और उसकी गतिविधियां प्रतिबंधित हो जाती हैं। मरीजों को चलना मुश्किल लगता है और लंगड़ा सकते हैं। इसके अलावा, घुटने के आसपास और पीठ के निचले हिस्से में दर्द होता है।

आम तौर पर कोरोना से ठीक हुए मरीजों में 4-5 महीनों के बाद एवीएन लक्षण आ जाते हैं। इसका निदान एमआरआई (ICMR) से किया जा सकता है। जब रोग पहले या दूसरे चरण में बढ़ता है, तो कोर डीकंप्रेसन सर्जरी की जाती है। जब यह तीसरे और चौथे चरण में पहुंच जाता है तो जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी की जाती है।

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