जानें क्या होता है 'तलाक-ए-हसन', जिसे रद्द करने की याचिका सुप्रीम कोर्ट में हुई दाखिल
याचिकाकर्ता ने शरियत एप्लिकेशन एक्ट, 1937 की धारा- 2 को रद्द करने की भी मांग की है। डिसॉल्यूशन ऑफ मुस्लिम मैरिज एक्ट, 1939 को पूरी तरह निरस्त करने का आदेश देने की भी मांग की है।
Talaq-e-Hasan : केंद्र की मोदी सरकार के तीन तलाक (Triple Talaq) के फैसले पर तब जमकर बवाल हुआ था। देश में तीन तलाक पर बहस छिड़ गई थी। अब हालिया मामले में मुस्लिम मर्द को तलाक का एकतरफा अधिकार देने वाले 'तलाक-ए-हसन' (Talaq-e-Hasan) सहित अन्य प्रावधानों को सर्वोच्च न्यायालय (Supreme court) में चुनौती दी गई है।
बता दें, गाज़ियाबाद निवासी एक मुस्लिम महिला ने सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका दाखिल की है। याचिका में मांग की गई है, कि मुस्लिम लड़कियों को भी अन्य लड़कियों जैसे अधिकार मिलने चाहिए। गौरतलब है कि याचिकाकर्ता महिला स्वयं भी 'तलाक-ए-हसन' से पीड़ित है। इसीलिए अब वो अन्य मुस्लिम लड़कियों की आवाज बनकर सामने आई है।
सिर्फ 'तलाक-ए-बिद्दत' पर लगी थी रोक
सुप्रीम कोर्ट ने अपने 22 अगस्त 2017 के फैसले में एक साथ तीन तलाक बोलकर शादी खत्म करने को असंवैधानिक करार दिया था। इस व्यवस्था को 'तलाक-ए-बिद्दत' कहा जाता है। हालांकि, अधिकांश मुस्लिम उलेमा भी मानते हैं कि यह व्यवस्था कुरान के अनुसार नहीं है। ज्ञात हो कि, अदालत के फैसले के बाद केंद्र सरकार एक साथ तीन तलाक बोलने को अपराध घोषित करने वाला कानून बना चुकी है
जानें क्या है तलाक-ए-हसन?
यहां आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, तलाक-ए-हसन (Talaq-e-Hasan) तथा तलाक-ए-अहसन जैसी व्यवस्था अब भी पहले की तरह बरकरार है। इसके तहत पति एक-एक महीने के अंतर पर तीन बार लिखित या मौखिक तौर पर तलाक बोलकर शादी रद्द कर सकता है।
याचिका में क्या?
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने वाली बेनजीर के वकील हैं अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay)। इस दायर याचिका में बेनज़ीर कहती हैं, उनकी शादी 2020 में दिल्ली निवासी यूसुफ नक़ी से हुई थी। उन दोनों का एक सात महीने का बच्चा भी है। मगर, दिसंबर 2021 में पति ने एक घरेलू विवाद के बाद बेनजीर को घर निकाल दिया। बीते पांच महीने से पति का उससे कोई संपर्क नहीं है। अब अचानक अपने वकील के जरिए बेनजीर के पति ने एक चिट्ठी भेजी है। इसमें कहा है, कि वह तलाक-ए-हसन के तहत पहला तलाक दे रहा है।
संवैधानिक अधिकारों से वंचित
याचिकाकर्ता मीडिया से बात करते हुए कहती हैं, कि संविधान और कानून जो अधिकार हिंदू, सिख तथा ईसाई महिलाओं को प्रदान करता है, उससे वह वंचित हैं। अगर उन्हें भी कानून का समान संरक्षण हासिल होता तो उसका पति इस तरह एकतरफा तलाक नहीं दे सकता था।
याचिका में क्या है मांग?
बेनजीर की ओर से दायर याचिका में कहा गया है, कि धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर मुस्लिम औरतों को कानून की नजर में समानता (जो अनुच्छेद- 14 प्रदान करता है) और सम्मान से जीवन जीने (अनुच्छेद 21) जैसे मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं रखा जा सकता। अतः सर्वोच्च अदालत 'तलाक-ए-हसन' तथा अदालती तरीके से न होने वाले दूसरे सभी तरह के तलाक को असंवैधानिक करार दे।
'करोड़ों महिलाओं की लड़ाई'
पीड़िता बेनज़ीर आगे कहती हैं, उनकी यह लड़ाई सिर्फ उनकी नहीं बल्कि देश की करोड़ों मुस्लिम लड़कियों की है। उनका कहना है कि कई ऐसी लड़कियां जो दूरदराज के शहरों और गांवों में हैं, वह पुरुषों को हासिल विशेष अधिकारों से पीड़ित तो हैं, लेकिन इसे अपनी नियति मान कर चुप हैं। मगर, उम्मीद है कि उनकी आवाज़ हर उस पीड़ित की आवाज़ बनेगी।
याचिकाकर्ता की मांग, इसे करें निरस्त
याचिकाकर्ता बेनजीर शरियत एप्लिकेशन एक्ट, 1937 की धारा- 2 को रद्द करने की भी मांग की है। साथ ही, डिसॉल्यूशन ऑफ मुस्लिम मैरिज एक्ट, 1939 को पूरी तरह निरस्त करने का आदेश देने की भी मांग की है।