Independence Day 2021: आजादी के एक साल बाद भारत में शामिल हुआ हैदराबाद, जानें पूरी कहानी
Independence Day 2021: आजादी के बाद एक साल बाद हैदराबाद बना भारत का हिस्सा
Independence Day 2021: आजादी के बाद एक साल बाद हैदराबाद बना भारत का हिस्सा। आज आपको हम हैदराबाद की पूरी कहानी बताएंगे। जब भारत आजाद हो रहा था और विभाजन कि प्रक्रिया चल रही थी। तब हैदराबाद के निजाम 'ओसमान अली खान आसिफ' (Usman Ali Khan Asif) ने फैसला किया कि उनका रजवाड़ा न तो पाकिस्तान शामिल करेंगे और न ही भारत में।
भारत छोड़ने के समय अंग्रेजों ने हैदराबाद के निजाम को पाकिस्तान या फिर भारत में शामिल होने का प्रस्ताव दिया था। इसी के साथ अंग्रेजों ने हैदराबाद को स्वतंत्र राज्य बने रहने का भी प्रस्ताव दिया था। हैदराबाद में निजाम और सेना में वरिष्ठ पदों पर मुस्लिम थे। लेकिन वहां की अधिक संख्या करीब 85% आबादी हिंदू थी। शुरुआत में निजाम ने ब्रिटिश सरकार से हैदराबाद को राष्ट्रमंडल देशों के अंतर्गत स्वतंत्र राजतंत्र का दर्जा देने का आग्रह किया था। लेकिन ब्रिटिश निजाम के इस प्रस्ताव को सहमत नहीं दी।
ब्रिटिश वकील ने अंग्रेजी हूकूमत से हैदराबाद को आजाद रखने की बात कही
जब अली खान आसिफ ने बाकी रियासतों का हाल जाना तो उन्होंने एक ब्रिटिश वकील को अपनी पैरवी करने के लिए रखा। इस वकील ने अंग्रेजी हुकूमत से हैदराबाद आजाद रखने की बात कही। इसी के साथ वकील ने निजाम को यह सलाह भी दी कि वह अपनी सेना को बढ़ा ले। जिससे वह भारत से युद्ध के लिए तैयार रहें।
उस वक्त के वकील और हैदराबाद के निजाम चाहते थे कि वह अपने रियासत का दायरा बढ़ाकर समुद्र तट तक का इलाका जीत लें। जिससे उन्हें पाकिस्तानी सेना की मदद भी मिले। क्योंकि वकील ने हैदराबाद को आजाद रखने के लिए जिन्ना से भी सहयोग मांगा था। यह बात म मुंशी ने अपनी किताब 'ऐंड ऑफ एन एरा' में लिखी है।
निजाम ने 15 अगस्त 1947 को हैदराबाद को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित किया
मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (MIM) के पास उस वक्त 20 हजार रजाकार (निजाम के शासन को बनाई गई निजी सेना) थ। यह सभी रजाकार निजाम के लिए काम करते थे। यह रजाकार भी हैदराबाद का विलय पकिस्तान में करना या उसे स्वतंत्र रखना चाहते थे। लेकिन भारत के तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने हैदराबाद के निजाम से भारत में विलय का आग्रह किया। पर निजाम ने पटेल के आग्रह को खारिज कर दिया। इसके बाद 15 अगस्त 1947 को हैदराबाद को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित किया।
निजाम इस आजादी को बरकरार रखना चाहते थे
निजाम इस आजादी को बरकरार रखना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने हथियार खरीदने और पाकिस्तान का सहयोग लेने की पूरी कोशिश की हैदराबाद के हथियार इकट्ठा करने की बात सरदार वल्लभ भाई पटेल को पता लग गई। तब उन्होंने कहा था कि हैदराबाद भारत के पेट में कैंसर के समान हो गया है। जिसका इलाज केवल सर्जरी है। यह वह समय था जब भारत और हैदराबाद के बीच विलय की बातचीत बंद हो चुकी थी। और भारत ने हैदराबाद पर हमले की पूरी तैयारी कर ली थी।
हैदराबाद में पास के इलाकों में कम्युनिस्ट विद्रोह फैलने लगा
उस वक्त हैदराबाद में बहुत कुछ बदलने लगा। हैदराबाद के आसपास के इलाकों में कम्युनिस्ट विद्रोह फैलने लगा। इस कम्युनिस्ट विद्रोह के चलते बंधुआ मजदूरी खत्म हो गई। गरीबों में जमीन भी बांटी गई। लोग बहुत तेजी से निजाम के खिलाफ होने लगे। यह सब देख कर नवंबर 1947 में निजाम ने हिंदुस्तान के साथ स्टैंड स्टिल एग्रीमेंट करने के लिए राजी हो गए।
13 सितंबर 1948 को भारत में शामिल हुआ हैदराबाद
11 सितंबर 1948 के दिन मोहम्मद जिन्ना का निधन हो गया सरदार पटेल को यही सही मौका लगा और उन्होंने 13 सितंबर 1948 को भारत की सेना की एक टुकड़ी हैदराबाद भेज दी। इस ऑपरेशन को 'ऑपरेशन पोलो' नाम दिया गया। युद्ध हुआ और 4 दिन से भी कम समय में भारत में हैदराबाद पर कब्जा कर लिया। इस कार्रवाई में 1373 रजाकार और हैदराबाद के 807 जवान मारे गए। भारतीय सेना ने भी अपने 66 जवानों को खो दिया। जबकि 97 जवान घायल हुए. 13 सितंबर 1948 को निजाम ने सरदार पटेल के सामने हाथ जोड़े और भारत में विलय कर लिया.