ड्रैगन का दांवः भारत को होना चाहिए खुश, आखिर चीन की सलाह का क्या है मतलब

हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा पोस्ट में पैट्रोलिंग प्वाइंट 15 और पीपी -17 ए में, चीनी सेना ने पहले सैनिकों को वापस बुलाने पर सहमति व्यक्त की थी लेकिन बाद में इनकार कर दिया।

Written By :  Ramkrishna Vajpei
Published By :  Shivani
Update:2021-04-18 14:50 IST

चीनी सैनिक (Photo Social media)

नई दिल्लीः चीन ने एक बार फिर सेना की वापसी की अनिच्छा दिखाई है। इसी के साथ पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीनी सैनिकों के बीच जारी गतिरोध को एक साल पूरा हो गया है। लेकिन इस महत्वपूर्ण मामले में अभी तक कोई निर्णय नहीं हो सका है। ग्यारह दौर की सैन्य चर्चाओं के बाद भी इसे हल किया जाना बाकी है। जबकि ढिठाई पर आमादा चीन कह रहा है कि भारत को जो मिल गया है उस पर उसे खुश होना चाहिए।

बीते 9 अप्रैल को, कोर कमांडर-स्तर पर अंतिम दौर की वार्ता के दौरान, चीन ने हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा पोस्ट से अपने सैनिकों को वापस बुलाने से इनकार कर दिया, साथ ही डेपसांग भी दोनों देशों के बीच तनाव की वजह बना हुआ है। भारतीय और चीनी सैनिकों ने फरवरी में पैंगोंग त्सो और कैलाश रेंज के उत्तर और दक्षिण तट पर पीछे हटना शुरू किया था।

हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा पोस्ट से पीछे नहीं हटी चीनी सेना

एक उच्च पदस्थ सूत्र ने द संडे एक्सप्रेस को बताया कि हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा पोस्ट में पैट्रोलिंग प्वाइंट 15 और पीपी -17 ए में, चीनी सेना ने पहले सैनिकों को वापस बुलाने पर सहमति व्यक्त की थी लेकिन बाद में इनकार कर दिया। स्रोत के अनुसार, हालिया वार्ता में, चीन ने कहा है कि भारत को "जो हासिल हुआ है उससे खुश होना चाहिए"।

चीन के सैनिक

सूत्र ने कहा कि चीनी सैनिकों की यहां पर मौजूदगी चिंता की बात है क्योंकि यहां पर सेना को आगे बढ़ाने के लिए पक्की सड़कों की आवश्यकता नहीं है, आप बजरी की पटरियों पर जा सकते हैं। सूत्र ने कहा कि यहां पर प्रतिक्रिया क्षमता तेज है। हालांकि पैंगॉन्ग त्सो में, उत्तरी तट पर फिंगर 4 और फिंगर 8 के बीच दोनों पक्षों द्वारा गश्त फिलहाल निलंबित है,लेकिन भारत के लिए फिंगर 8 तक पहुंचना संभव नहीं है, जहां कि एलएसी का चिह्नांकन है और यह स्थिति गतिरोध शुरू होने से पहले से बनी हुई है।

भारत-चीन के बीच तनाव जारी

रिपोर्टस के मुताबिक डेपसांग मैदानों की स्थिति में भी कोई सुधार नहीं है। यहां भी गतिरोध यथावत है। भारतीय सेना 2013 से ही यहां अपनी पारंपरिक गश्त में सक्षम नहीं है। इस मुद्दे को अब बाद में वार्ता करने के लिए छोड़ दिया गया है।
सूत्र का कहना है "इस पूरे संकट के दौरान डेपसांग में कुछ नहीं हुआ। डेपसांग में, वे (चीनी) इन गश्त बिंदुओं पर हमारे गश्ती दल को रोक रहे हैं। चीनी सैनिक हर दिन अपने वाहनों से आते हैं, और वह गश्त मार्ग को अवरुद्ध करते हैं"।
लद्दाख में भारतीय जवान
कई दौर की बातचीत विफल रही

बातचीत में डेपसांग को इस लिए जोड़ा गया ताकि यह मसला हल हो जाए। अप्रैल 2020 तक, डेपसांग में यथास्थिति नहीं बदली। यह एक पुराना मुद्दा है, लेकिन हमने इसे जोड़ा है। शुरू में इस पर चर्चा भी नहीं हो रही थी। चौथे-पांचवें दौर की बातचीत के बाद लगा कि इसे हल कर दिया जाएगा। लेकिन फिलहाल यह मामला अनिर्णीत है। रिपोर्ट में कहा गया है कि एलएसी को लेकर भी हम बहुत मजबूत स्थिति में नहीं हैं। पिछले साल गतिरोध के दौरान भी, चीनी सैनिक वास्तव में डराने की कोशिश कर रहे थे। वह बहुत संगठित नहीं थे।
सूत्र के मुताबिक, शुरू में इस बात पर चर्चा हुई थी कि चीन ने पिछले साल इस क्षेत्र में एलएसी के लिए अपनी सेनाओं को डायवर्ट किया था, भारत ने दारुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी (डीएसडीबीओ) सड़क के साथ अपने बुनियादी ढांचे का निर्माण किया था। हालांकि चीन ने कहा, सैन्य वार्ता के दौरान सड़क के मुद्दे को कभी नहीं उठाया गया। हाल फिलहाल के हालात में चीन से सतर्क रहने की जरूरत है। क्योंकि चीन में फैसले राजनीतिक नेतृत्व द्वारा बहुत अधिक प्रभावित होते हैं।
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